क्या कल्पनाशील एक सकारात्मक या नकारात्मक गुण है?
कल्पनाशील गुण सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के होते है।
सोच समझ और मन की क्रियाओ पर
पूर्ण आधारित होता है। जैसा मन का भाव होता है। सोच समझ भी वैसा ही प्रभाव देता है।
जिसका परिणाम कल्पना पर पड़ता है। कल्पना आतंरिक मन का भाव होता है। जिसको बाहरी मन
के भाव को कल्पना के माध्यम से अंतर्मन को संकेत देता है। कल्पना का प्रभाव बाहरी
मन पर पड़ता है। कल्पना के अनुसार बाहरी मन कार्य करता है। कल्पना सकारात्मक हो रहा
है या नकारात्मक मन के क्रियाओ पर आधारित होता है। मनुष्य बाहरी मन सचेत मन में
रहता है। सचेत मन सक्रीय होता है। बाहर के समस्त घटनाओ का प्रभाव बाहरी सचेत मन पर
पड़ता है। मनुष्य के जीवन में प्रभाव ज्ञान के अनुसार पड़ता है। जैसा मनुष्य का
ज्ञान होता है, जो उसका बाहरी सचेत मन स्वीकार करता है, उसी के अनुरूप उसका भाव हो
जाता है। समय के अनुसार सकारात्मक या नकारात्मक भाव दोनों हो सकता है। बाहरी सचेत
मन के भाव से मन कार्य करता है। कल्पना गतिशील कार्य को बढ़ने का कार्य करता है। जब
ब्यक्ति कल्पना करता है तो बाहरी मन का प्रभाव कल्पना पर भी पड़ता है। जिससे कल्पना
में रुकावट या बारम्बार विषय का बदलना मन को न अच्छा लगनेवाला विषय सामने आना। इस
प्रकार के बहूत से प्रभाव कल्पना में बारम्बार होता है। जो की नकारात्मक गुण है।
कल्पना के दौरान हो रहे घटना से सचेत रहने वाला ब्यक्ति जिसके अन्दर ज्ञान होता है।
क्या सही क्या गलत है? तो हो रहे घटना से सचेत रहकर घटना को देखते हुए आगे बढ़ता
जाता है। उसे पता है क्या स्वीकार करना है। और क्या छोड़ते जाना है। तभी वो संतुलित
और सकारात्मक कल्पना होता है। ऐसे ब्यक्ति के बाहरी घटना से मन को सचेत कर के रखते
है। कल्पना को साफ और संतुलित रखने के लिए मन को संतुलित होना अति आवश्यक है। चाहे
बाहरी मन हो या अंतर मन सक्रीय दोनों होते है, कार्य तभी सफल होता है जब बाहरी मन
और अंतर मन एक जैसा होते है। तो उस कार्य में कोई रुकावट नहीं होता है। निरंतर
चलता रहता है। अंतर्मन और बाहरी मन का असंतुलन कार्य में रुकावट पैदा करता है।
कल्पना अंतर मन और बाहरी मन का संपर्क सूत्र जो सोच से उत्पन्न होता है। जिससे
दोनों मन को नियंत्रित करने का प्रयाश जो क्रिया और घटना के अनुसार होता है। इसलिए
ज्ञान के माध्यम से बाहरी मन को सचेत रखा जाता है। जिससे कल्पना में कोई रुकावट या
बाधा न आये। ज्ञान से बाहरी मन को नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए मनुष्य को सदा
ज्ञान के तरफ बढ़ना चाहिए। इस प्रकार से कल्पनाशील एक सकारात्मक और नकारात्मक दोनों गुण हो
सकते है।
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