जीवन का ज्ञान ही आत्म ज्ञान है
Life knowledge is Self Knowledge
जीवन का ज्ञान
समय-समय पर होने वाले
परिवर्तन और उसके
प्रभाव लोगों के जीवन को प्रभावित करते
हैं। जीवन का ज्ञान परिभाषित करता है। कल हम सब बचपन में थे। आज हम युवा हैं।
और कल हम बूढ़े हो जाएंगे। अपना जीवन बीच में फंस हुआ है। यह सब पढाई
लिखाई, बचपन में खेलकूद, मौज मस्ती और ऊपर से खिलौनों के बीच बीता
हुआ जीवन आगे बढ़ते हुए नए रूप लेता है। दिन-ब-दिन अपने जीवन में कुछ न कुछ विकास
होता ही रहता है। यही जीवन का ज्ञान
है। जीवन के ज्ञान से हम सब आगे बढ़ते रहते
हैं। वास्तविक जीवन
के व्यक्तिगत सोच में सकारात्मक तरीके से जीते हैं।
ज्ञान के पवित्र तरीके जीवन के स्रोत आत्मज्ञान
Sacred Ways of Knowledge is Always Source of Life Enlightenment in Life
जीवन के ज्ञान स्रोतों के भी कई रूप रंग होते हैं। कभी हँसना, कभी मज़ाक करना, उदास होना, कभी रोना, रोते हुए भाग जाना, इन सब वातावरण के बीच अपना बचपन गुजरता है। ज्ञान के पवित्र तरीकों में स्कूल जीवन, आत्म ज्ञान हम सब अपने माता-पिता और शिक्षकों से प्राप्त करते हैं। बाकी स्कूल और कॉलेज से ज्ञान प्राप्त करते हैं। हमें पढ़ने-लिखने की शिक्षा मिलता है। इसी ज्ञान से अपना विकास होता है। इस तरह धीरे-धीरे बचपन के पिंजरे से बाहर आते है।
जीवन के स्कूल में मिलनेवाला आत्म ज्ञान
The School of Life Self Knowledge in Our Life
बचपन के बाद जीवन में स्कूल से आत्म ज्ञान
प्राप्त होता है। आम तौर पर अपने जीवन में एक ऐसा समय होता
है। जिसमें हम सभी बार-बार गलती
करते हैं। जीवन
में ज्ञान प्राप्त
करते हैं। जब तक किशोरावस्था
गलतियाँ नहीं करता है। तब तक वास्तविकता का एहसास नहीं
होता है। इसलिए
माता पिता गुरुजन अपनी
गलतियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
आमतौर पर ज्यादातर मामलों में उन बच्चों को उनके माता-पिता और शिक्षकों द्वारा
दंडित भी किया
जाता है। लेकिन
उन्हें उनके अधिकार
पर गलत होने
के लिए दण्डित
किया जाता है। लेकिन वह भी स्कूल
में या घर में अपने
आत्म ज्ञान के विकास के लिए ही होता है। ताकि
अपने को
इस बात का एहसास होता
रहे। गलती की सजा होती
है। जिससे सही और गलत का समझ बढ़ जाता है। वास्तव
में मन जीत जाता है। यह समय एक तरह से दुविधाओं से भरा समय होता है। मन कुछ और सोचता
है। होता कुछ और ही है। आत्मज्ञान जीवन की पाठशाला में सोच और समझ विकसित
होता है। ताकि
सही सोच और समझ का निर्माण हो और क्या
सही है। विचार
को लागू किया
जा सके। यह समय ज्ञान
को पूरी तरह से प्रकट
कराता है। जिसके कारण
किशोरावस्था आत्मज्ञान प्राप्त करता है। अपने
नए जीवन में युवावस्था में प्रवेश करता है।
जीवन का आत्मज्ञान
Self knowledge of life
युवावस्था में आत्मज्ञान का माध्यम और भी बढ़ जाता है। जब तक हम युवावस्था
में आते हैं।
क्या सही है? और क्या
गलत है? इसका आभास
होने लगता है। यह जीवन
जिम्मेदारी से भरा
हुआ है। सहज, सरल, एकाग्रता, जीवन,
मृतु, प्रगति, पतन,
दुःख, आनंद से भरा है। विवाह
का समय आता है। यौवन
का विकास होता है। जिसमें ऐसा जीवन
साथी मिले जो सुख-दुःख
का साथी हो। परिवार के पालन-पोषण
और बसने में बहुत बड़ा
योगदान होता है। जिसके साथ जीवन भर बिताना होता है। जिसमें काम करने की जिम्मेदारी होता
है। समाज में कैसे बैठते
है। किससे कैसे बात करते है। यह सारी
जानकारी इस युवावस्था में मौजूद
है। जिससे जीवन का आत्मज्ञान विकसित
करना है। परिपक्वता विकसित होती है। जीवन के आत्म ज्ञान
में परिवार चलाने
और देखभाल करने
की जिम्मेदारी बढ़ जाता है। बालक
को माता-पिता
से और गुरुजन
से ज्ञान स्वयं अपने
जीवन जीने का ज्ञान अपने
बच्चे को सीखाते
है। फिर वह ज्ञान अपने
बच्चों को देकर
उनका विकास करते है।
जीवन के आत्म ज्ञान में विशेष ज्ञान का बहुत महत्व होता है
Particular Knowledge in Self Knowledge of Life
युवावस्था के बाद जीवन
के ऐसे आत्मज्ञान में बच्चे की शादी ब्याह, तीज त्यौहार समय समय होते है। सब लोग एक साथ आते हैं।
परिवार के साथ-साथ समाज
और लोगों के प्रति जिम्मेदारी भी बढ़ जाता है। ऐसे समय में सभी जिम्मेदारी और अस्तित्व को एक साथ संभालना होता है। कभी-कभी ऐसे जीवन में हमें शोक का भी सामना करना
पड़ता है। यह जीवन का एक रंग ही होता है। जो हर किसी के जीवन में कभी न कभी आता है। हो सकता है ऐसे समय में घर के बुजुर्ग अपने
समय को पूरा कर रहे हों। समय पूरा करने
के बाद वह अपने निवास
को लौट जात है। उनके जाने
का प्रभाव व्यक्ति
के पूरे परिवार
पर पड़ता है। उस समय घर के सभी सदस्यों को
सँभालते हुए ध्यान रखते
हुए आगे बढ़ना
होता है। इन सभी इकाइयों
को पार करते
हुए व्यक्ति आगे बढ़ना पड़ता है। जीवन
और अंधविश्वास में गुजर बसर करते हुए समय व्यतीत होता है। जीवन का आत्म ज्ञान उन सभी तथ्य से ऊपर होता है।
जीवन के ज्ञान का अनुभव ही जीवन का अस्तित्व है
Experience of knowledge of life and Self Knowledge
जीवन के आत्मज्ञान का एक ऐसा अनुभव जीवन के युद्ध से दूर हो जाता है। जब जाने वाले अपने आश्रितों को सारी जिम्मेदारी देकर धीरे-धीरे उस धाम की ओर बढ़ता है। जहां से वह आया है। उसके लिए जीवन का माध्यम केवल ईश्वर की भक्ति ही होता है। फिर कोई जिम्मेदारी नहीं होता है। कर्म का बोध हो तो कर्म होता है। जो उसके वाहन में होता है। आश्रितों और अपने परये को को अपना जीवन का ज्ञान देने के बाद अपने वास्तविक ज्ञान को विकसित करने के बाद वे अपने निवास पर लौट जाते हैं। एक अबोध बालक के सामान कुछ समय के लिए बुध्दी विवेक हो जाता है। वाही बुढ़ापा के बाद माहाप्रनायम को प्राप्त करते हुए अपने भौतिक देह का त्याग कर अपने लोक को जाते है। मृतु को प्राप्त होते है।
यह जीवन का एक आदर्श जीवन का आत्म ज्ञान है।
बचपन किशोरावस्था जवानी की उम्र जवानी की उम्र सबसे कम उम्र बुढ़ापा एक पूर्ण जीवन का आत्म ज्ञान है
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