Thursday, July 29, 2021

जीवन में छोटी चीज़ें का बहुत महत्वपूर्ण होता है छोटी चीज़ें को कभी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। मान लिजिये की कोई काम कर रहे हैं।

छोटी चीज़ें


जीवन में छोटी चीज़ें का बहुत महत्वपूर्ण होता है  छोटी चीज़ें को कभी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। मान लिजिये की कोई काम कर रहे हैं। या कोई उपकरण बना रहे हैं।  जिसमे बहुत सारे समान लगते हैं। उसमे से कोई छोटी चीज़ें भी बाकी रह जाता है  तो वो काम पूरा नहीं होता है।

बात सिर्फ उपकरण बनाने का नहीं है।  घर में रोजमर्रा में भी बहुत से ऐसे काम होते हैं।  जिनके छोटी चीज़ें बहुत होते हैं।  उनको एक कर के मिलाकर उस काम को पूरा किया जाता है।  उसमे से कोई वस्तु या कोई छोटी चीज़ें छुट जय तो दिमाग खराब हो जाता है। किया धरा सारा काम बेकार हो जाता है। बहुत जरूरी कम हो तो उसके लिए छोटी चीज़ें के वजह से वो काम ही खराब हो जाता है।  नौकरी या सेवा  में है तो छोटी चीज़ें के कारण से नौकरी जाने का भी खतरा रहता है।  क्योकी उससे उनका ब्यापार जुड़ा होता है।

छोटी चीज़ें का जीवन में या कल्पना में सोच समझ में जो सोचने में उसके बारे में विचार करने में भी कोई न कोई छोटी चीज़ें होता ही है। इसलिए कल्पना में भी बात का ख्याल रखा जाता है। की कोई भी महत्वपूर्ण  छोटी चीज़ें छूटे नहीं चाहे वो कोई बड़ा चीज़ें हो या छोटी चीज़ें हो। कल्पना में भी छोटी चीज़े बहुत महत्वपूर्ण स्तान रखता है। क्योकी मनुष्य जैसा  कल्पना करता है।  उसके अनुरुप ही कार्य करता है। सही कहा गया है।  जैसी सोच होते हैं  वैसा वर्ताव भी होता है। और वैसा काम काज भी होता है। सकारातमक मन की उपज सकारातमक ज्ञान को बढ़ावा देता है। जिससे जीवन सार्थक होता है।  काम काज व्यवहार और लेने दें में हर जगह किसी भी प्रसार का कोई भी अनुभव बाकी नहीं रहना चाहिए।  भले उससे जुड़ा हुआ कोई छोटी चीज़ें या बड़ी चीज़ें हो। इस बात का ख्याल रखना चाहिए।


सच्चे मन की कल्पना में सोच समझ से यथार्थ से परिचय के लिए संतुलित जीवन का होना बहुत जरूरी हैं.

सच्चे मन की कल्पना अस्तित्व की पहचान कराता है और यथार्थ से परिचय करता है.


सच्चे मन की कल्पना स्वतः होते है. 

इसमें किसी प्रकार का कोई जोर जबरदस्ती नहीं होता है. ये तब प्रकाश में आता है जब मन शांत हो एकाग्र हो. किसी प्रकार का कोई उथल पुथल का भाव नही हो. कर्म को प्रधानता देता हो. स्वबलंबी हो. कर्मठ हो. आदर्शवादी हो. ब्यक्ति का मन पवित्र होता है. उनके समझदारी में निष्पछता होन चाहिए है. इसलिए ऐसे ब्यक्ति अपने नियम के दायरे के बहार कभी नहीं जाते है. चाहे यथार्थ में या कल्पना. वे जो भी सोचते है या है वास्तविकता से परे नहीं होता है. इसलिए उनका कल्पना सोच समझ सच्चे होते है. जो आगे चलकर पुरे भी होते है.


सच्चे मन की कल्पना की सोच में अस्तित्व की पहचान एक मर्यादित ब्यक्ति के लिए है. जो वही करता जो सोचता है. 

उनका सोचना या कल्पना वही तक होता है. जो पूरा हो सके. इससे उनको अपने जीवन का पूरा ज्ञान होता है. ऐसे ब्यक्ति के जीवन में एक तो कार्य क्षमता बहुत होते है. जिससे वो अपने वर्त्तमान को संभलकर रखते है. भविष्य की कल्पन ऐसे ब्यक्ति न के बराबर करते है. वर्त्तमान को सही रखने के लिए उनके पास संतुलित विवेक बुद्धि होते है. जिससे वो मन से नियंत्रण में रखते हुए स्वयं में संतुलित होकर संतुष्टि से रहते है. इसलिए उनका अस्तित्व की पहचान होते रहता है.


सच्चे मन की कल्पना में सोच समझ से यथार्थ से परिचय के लिए संतुलित जीवन का होना बहुत जरूरी हैं. 

संतुलित ब्यक्ति को पता होता है. की सब कुछ सोच समझ पर निर्भर होता है. अपने सोच समझ के बहार जाने का मतलब विवेक बुद्धि को ख़राब करना होता है. जब जरूरी विषय विमर्श करते है. तो परिणाम निश्चित ही मिलता है. अपने जरूरी क्रिया कलाप करने से ही यथार्थ से परिचय होता है.

सुबह सुबह ताजा स्वास के साथ नए बिचार और नए धारणाओं के साथ अच्छी सोच नए दिन के शुरुआत के साथ नए तरो ताजगी के साथ जीवन में आनंद भर देता है. मनो जैसे जीवन का आनंद ज्ञान का सागर हो

सुबह सुबह ताजा स्वास के साथ नए बिचार और नए धारणाओं के साथ अच्छी सोच सदा  उपलब्धि दिलाता है 

जो ब्यर्थ मन में पड़े भाव है. जिनका कोई उपयोग नहीं है. उसको बहार निकाल कर मन को शांत और आत्मा को तृप्त करता है.


नए दिन के शुरुआत के साथ नए तरो ताजगी के साथ जीवन में आनंद भर देता है.  

मनो जैसे जीवन का आनंद ज्ञान का सागर हो, बुनियादी तौर पर ताजे स्वाश के साथ नया  ऊर्जा का प्रवाह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा भर देता है. जिससे ब्यर्थ भावनाये और विचार निकल जाते है, दबी हुई भावनाये समाप्त हो कर नए तारो  ताजगी से दिल दिमाग में सक्रियता भर देते है. जिससे मन मस्तिष्क शांत हो कर सक्रिय होता है. मन ख़ुशी से प्रफुल्लित होता है. सकारात्मक ऊर्जा सबसे पहले हमारे बुनियादी ज्ञान को बढ़ाता है जिससे जो कार्य जरूरी है सकारात्मक ऊर्जा उसको बढ़ता है.


सकारात्मक क्रिया स्वास लेना बहूत जरूरी है. 

सुबह सुबह जल्दी उठकर ढीला ढला वस्त्र पहनकर खली पैर हरी हरी घास पर चलने और नाक के दोनो भाग से एक साथ हौली हौली स्वास लेने से तन मन में तरोताजगी का प्रवाह होता है. ये प्रवाह सकारात्मक होना चाहिए. उस समय किसी भी प्रकार के काम काज का या कोई तनाव नहीं होना चाहिए. सुबह सुबह मन निश्चल होता है. इसलिए सुबह सुबह किसी भी प्रकार का तनाव नहीं लेना चाहिए. खुशिया और प्रशन्नता के लिए तरोताजगी के लिए सुबह सुबह खली पैर हरी हरी घास पर चलन चाहिए.   


सकारात्मक सोच समझ और सकारात्मक कल्पना से बढ़ता है. एकाग्रता ज्ञान को बढाता है. ज्ञान से बुध्दी विवेक सकारात्मक और सक्रीय होता है. इसलिए विवेक बुद्धि से किया गया हर कार्य सफल होता है।

विवेक बुद्धि से किया गया हर कार्य सफल होता है. मन को सकारात्मक पहलू के तरफ ले जाए और सकारात्मक ही सोचे तो हर कार्य सफल होगा।  


विवेक बुद्धि बुनियादी ज्ञान है. 

जो की मस्तिष्क में ज्ञान के विकास से विवेक बुद्धि बढ़ता है. सही सोचन, सही करना, धरना को सकारात्मक रखना, मन में सेवा का भाव रखना, दुसरो के लिए सम्मान और हित का ख्याल रखें तो मन सकारात्मक होता है. सकारात्मक मन मस्तिष्क में सकारात्मक तरंगे उठाते है. जिससे मस्तिष्क शांत और सक्रीय होता है. सकारात्मक सोच विवेक बुध्दी को मजबूत बनता है. सकारात्मक सोच के साथ जो भी  कार्य होता है. उस कार्य को करने से मन में हर्स और उल्लास का महल पैदा होता है. जिससे कार्य को करने में मन लगा रहता है. किसी भी कार्य के सफलता के पीछे सबसे पहले मन का स्थिर होना अति आवश्यक है. मन के स्थिर रहने से से काम काज में मन लगता है. मन को स्थिर रखने के लिए सकारात्मक होना जरूरी है. सकारात्मक होने के लिए सोच को सकारात्मक रखना ही पड़ेगा तभी मन स्थिर होगा. एक तो सबसे बड़ी बिडम्बना है की मनुष्य का अचेतन मन, सचेतम मन से ज्यादा सक्रीय है. अवचेतन मन अचेतन मन और सचेतम मन से कही ऊपर होता है जिसका सीधा संपर्सक कल्पना से होता है. सचेतन को बढ़ाने का एक मात्र तरीका है. मन को एकाग्र भाव में स्थिर रखना. जब तक सोच और कल्पना सकारात्मक नहीं होगा. तब तक किसी एक विषय पर काफी समय रुकन बहूत मुश्किल है. इसलिए बेहतर है की अपने सोच को सकारात्मक करे तभी एकाग्रता का विकास होगा और जीवन में उन्नति होगी. एकाग्रता का मतलब है किसी एक विषय पर लम्बे समय तक रुकना. एकाग्रता एक सकारात्मक भाव है.


सकारात्मक सोच समझ और सकारात्मक कल्पना से बढ़ता है. 

एकाग्रता ज्ञान को बढाता है. ज्ञान से बुध्दी विवेक सकारात्मक और सक्रीय होता है. इसलिए विवेक बुद्धि से किया गया हर कार्य सफल होता है.

 

अहंकार क्या होता है? यह एक ऐसी प्रवृत्ति है जिसमे इंसान खुद को डुबो कर अपना सब कुछ ख़त्म करने के कगार पर आ जाता है इसका परिणाम जल्दी तो नहीं मिलता है

अहंकार मनुष्य के एकाग्रता सूझ बुझ समझदारी सरलता सहजता विनम्रता स्वभाव को ख़त्म कर सकता है 


अहंकार क्या होता हैयह एक ऐसी प्रवृत्ति है  जिसमे इंसान खुद को डुबो कर अपना सब कुछ ख़त्म करने के कगार पर  जाता है  इसका परिणाम जल्दी तो नहीं मिलता है. पर मिलता जरूर है.  जब इसका परिणाम मिलता है.  तब तक बहुत देर हो चुकी होती है  फिर कोई रास्ता नहीं बचता है.  इस अहंकार के वजह से पहले तो उनके अपना पराया उनसे छूट जाते है.  क्योकि वो कभी किसी की क़द्र नहीं करता है.  अपने घमंड में समाज में वो आपने  को सबसे बड़ा समझता है  तो वाहा से भी लोग उससे किनारा कर लेते है  भले ताकत और हैसियत के वजह से कोई उनके सामने तो कुछ नहीं कहता है. पर उनसे किनारा जरूर कर लेता है.  इसका परिणाम घर में भी नजर आता है.  जैसा स्वभाव उनका होता है. वैसे ही घर के सभी लोगो का भी होता जाता है.  तो उनसे भी लोग किनारा करने लग जाते है.  ये हकीकत है.  समाज में इस प्रकार के स्वभाव के लोगो को देखा गया है.  हम किसी  ब्यक्ति विशेष का जिक्र नहीं कर रहे हैं.  अहंकारी स्वभाव का जिक्र कर रहे है।  


ये अहंकारी स्वभाव का एक परिभाषा है.  

जो जीवन के राह में देखते आया हूँ.  ऐसे लोगों के बारे में सुनता हूँ.  समझता हूँ.  कि ऐसे लोगों का आखिर होगा क्यासब कुछ तो है. उनके पास सिर्फ सरलता नहीं,  सहजता नहीं,  मिलनसार नहीं,  एक दूसए के दुःख दर्द में साथ देने वाला नहीं  जो सिर्फ अपने मतलब के लिए जीता है। 

जीवन में सब कुछ करे, खूब तरक्की करे, नाम बहुत कमाए  लोगो से खूब जुड़े जरूरतमंद की मदत करे.  जिनके पास कुछ नहीं है.  उनके लिए   मददगार बने ऐसा करने से ये भावना ख़त्म हो जाएगा.  जीवन की निखार सहजता और सरलता से आते है.  इससे मन प्रसन्न होता है.  उदारता बढ़ता है.  उदारता से जीवन का आयाम में विकास होता है.  जिससे आत्मिक उन्नति होता है। 


वास्तव में मन का सीधा संपर्क तो आत्मा से होता  है. 

बाहरी उन्नति के साथ  आत्मिक विकास में बहुत अंतर होता है. दोनों साथ साथ चलता है.  अंतर्मन में घमंड जैसी कोई भवन घर कर ले तो  जीवन में खलबली ला देता है.  इससे मन की ख़ुशी समाप्त होने लगता  है. वाहा पर सब कुछ होते हुए भी जीवन निराश लगने लगता है.  इसलिए निराश जीवन को सही करने के लिए सरलता और अहजता की जरूरत होता है.  ईस से मन और आत्मा दोनों प्रसन्न होता वही वास्तविक ख़ुशी और प्रसन्नता है। 

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