ज्ञान के स्रोत के रूप में पाठ्यपुस्तक के चयन के लिए मानदंड.
ज्ञान तो किसी भी पुस्तक से मिल सकता है. विद्वानों सिर्फ और सिर्फ ज्ञान के लिए ही लिखते है ताकि उनके अन्दर जो भी ज्ञान है वो दूसरो के लिए मिले. ज्ञान आदान प्रदान के लिए भी होता है. ऐसा नहीं की ज्ञान अपने पास है और वो दूसरो को दिया नहीं जाए तो वो ज्ञान किसी काम का नहीं होता है. ज्ञान जब तक उजागर नहीं होगा, तब तक न हमें फायदा होगा और नहीं दूसरो को ही. मान लीजिये की हमें कुछ करने या बनाने का ज्ञान है. और हम दूसरो से बचा कर रखे है. ताकि दूसरो को पता ही नहीं चले की हम क्या क्या कर सकते है. तो फिर वो ज्ञान अपने लिए भी कोई काम का नहीं होगा. अपने पास ज्ञान है और उसका उपयोग ही नहीं कर रहे है. तो फिर वो किस काम का होगा. अच्छा ज्ञान होने के बाबजूद भी वो परिपक्व नहीं होगा. अपने पास कोई ज्ञान छुपा कर रखेंगे तो न वो किसी वस्तु के निर्माण में काम आएगा, न किसी को उसके उपयोग के बारे में पता चलेगा. इसलिए अपने पास कोई भी ज्ञान है तो उसका उपयोग जरूर करना चाहिए.
शिक्षा और ज्ञान के लिए आध्यात्मिक पुस्तक, धार्मिक पुस्तक, प्रेरणा दायक पुस्तक जिसमे बड़े बड़े विद्वानों के विचार और ज्ञान लिखे होते है जो शिक्षा और ज्ञान को बढाता है.
निति नियम के लिए क़ानूनी पुस्तक, संवैधानिक पुस्तक, एतिहासिक पुस्तक जिसमे बड़े बड़े राजा और उनके विचारक के विचार और ज्ञान को समझने का मौका मलता है. जिससे अपने दायरे और निति नियम के बारे में पता चलता है.
विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाले के लिए या ज्ञान हासिल करने के लिए रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, जिव विज्ञान और प्राणी विज्ञान के पुस्तके बहूत उपयोगी होते है.
लेखक के लिए भाषा का ज्ञान बहूत जरूरी है कम से कम क्षेत्रीय भाषा, राज्य की भाषा, देश की भाषा, और अंतररास्ट्रीय का अच्छा ज्ञान आवाश्यक है तभी सभी शब्द का चयन लेखक सही ढंग से कर सकता है. निति नियम, ज्ञान, अच्छा विचार, बात करने का तरीका और सलीका बहूत जरूरी है. इसके लिए उचित पुस्तकों का अध्ययन बहूत जरूरी है. किसी भी भाषा में लेखनी के लिए आदर और अदब जरूर होना चाहिए.
खाते के लेखनी और ज्ञान के लिए, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, पुस्त्पालन, सचिव अध्ययन और गणित का अच्छा ज्ञान बहूत जरूरी है. जिससे लेखनी का काम और उससे जुड़े हर प्रकार का ज्ञान इन विषयों के पुस्तकों से मिलता है और ज्ञान बढ़ता है.
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