अन्तः अनुशासनात्मक का अर्थ
अन्तः मन से बाहरी मन को उद्घोसित करता है।
अंतर मन बाहरी मन को प्रभावित करने के लिए क्रिया कलाप को प्रेरित करता है।
सहज जीवन जीने के लिए बाहर से अनुशासन होने के साथ अंतर मन मे भी अनुशासन होना बहूत जरूरी है।
बाहरी मन का क्रिया कलाप अन्तर्मन से ही प्रभावित होकर बढ़ता है।
जब तक अंतर मन अंदर से साफ सुथरा नहीं रहेगा तब तक बाहरी मन को शांति और एकाग्रता नहीं मिलेगा।
अच्छे चीज को ग्रहण करने के लिए मन का किताब साफ सुथरा होना चाहिए।
एक ऊर्जा का प्रभाव दूसरे ऊर्जा पर पड़ता है।
ज्ञान ऊर्जा के माध्यम से अंतर मन मे जाता है।
ऊर्जा को निरी आँख से नहीं देख सकते है पर मन पर होने वाला प्रभाव समझ मे आने लगता है।
जीवन को संतुलित और अनुशासित रखने के लिए बाहरी मन के साथ अन्तःकरण को भी साफ रखना चाहिए।
अंतर मन मे वही चिजे रहना चाहिए जो जीवन के लिए जरूरी है। व्यर्थ और नकारात्मक क्रिया कलाप बाहरी मन के साथ अन्तर्मन को भी गंदा करता है जो जीवन के अनुशासन के विपरीत होता है। इसका प्रभाव जल्दी और अनिस्तकारी होता है। मन बहूत तेजी से नकारात्मक चिजे सोचने लग जाता है। सही दिशा मे चलता हुआ कार्य भी बिगड़ने लगता है। इन सभी का कारण अंतर मन के गंदा होने से होता है।
जीवन का संतुलन बाहरी मन को नियंत्रित करने के लिए अंतरमन पर अनुशासन करने से होता है।
अन्तः अनुशासनात्मक का अर्थ अंतरमन मे हो रहे हर प्रकार के विचार को समझ कर उचित और अनुचित का निर्णय लेकर अपने मन को नियंत्रण मे रख सकते है। एक बार अंतर मन मे नियंत्रण प्राप्त हो जाने पर मन को सहज भाव मिलता है जिससे प्रसन्नता बना रहता है। बाहरी जीवन को नियंत्रित करने के लिए अन्तः अनुशासन होना जरूरी है। यही अन्तः अनुशासनात्मक है।