सांसारिक जीवन वास्तव में उतना आसन नहीं होता है जितना समझा जाता है.
समझकर जीवन को जीने से ही जीवन में उन्नति होता है. घर बैठे मखमली बिस्तर पर आराम करने से कुछ प्राप्त नहीं होता है. जीवन संघर्स के नाम होना चाहिए. संसारिक जीवन नश्वर है ये एक न एक दिन स्वयं के मृतु के बाद कुछ बचने वाला नहीं है. मृतु तो इस पंचतत्व के बने शारीर का होता है आत्मा कभी नहीं मरता है. मन का भाव भी मृतु के साथ ही ख़त्म हो जाता है. प्राण पखेरू उड़ जाने के बाद शारीर ब्यर्थ होने लग जाता है. घर वाले और रिश्तेदार को भले तकलीफ होता है पर वो भी अपने प्रिय जो मृतु को प्राप्त होने के बाद उसको एक दिन भी नहीं रखना चाहता है. ये सृष्टि का नियम है. जो ख़त्म हो गया है वो व्यर्थ है उसका मोह करने से कुछ नहीं मिलाने वाला है.
सांसारिक जीवन में सुख प्राप्त करने के लिए मानव बहूत कुछ करता है. सच्चे ह्रदय वाले व्यक्ति हमेशा अच्छे कार्य करते है. लोगो की भलाई करते है. अपने कर्मो को करते हुए जगत कल्याण का भी कार्य करते है. उनको पता है की ऐसा करने से कोई भौतिक सुख प्राप्त नहीं होता है पर मन को अतुलित आनंद मिलता है. भले ऐसा करने से लोग उसको मना भी करते है पर संसार में ऐसे लोग किसी की परवाह किये बगैर अपने सत्कर्म को नहीं छोड़ते है. ऐसे ही व्यक्ति अपने जीवन में आगे बढ़कर जीवन के आयाम में आध्यात्मिक उन्नति करते है. भक्ति भावना में लीन व्यक्ति जब तक सत्कर्म नहीं करता है तब तक उसको वास्तविक आध्यात्मिक उन्नति नहीं मिलाता है.