Showing posts with label अधिक तपस्या. Show all posts
Showing posts with label अधिक तपस्या. Show all posts

Sunday, August 29, 2021

विचार (Thought) विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ सोच से अधिक तपस्या क्यों पसंद हैं विचार हर संभव विषय वस्तु के बारे में कुछ न कुछ क्रिया या प्रतिक्रिया करता है

विचार (Thought)

 

विचार मन में उठाने वाला एक ऐसा क्रिया है जो हर संभव विषय वस्तु के बारे में कुछ न कुछ क्रिया या प्रतिक्रिया करता है। 

मन में उठाने वाले उचित और अनुचित ख्यालो को भी विचार कह सकते है। मन के अभिब्यक्ति को भी विचार कहते है। मन में उठने वाले बात को भी विचार कहते है। किसी को मन ही मन याद करते है वो भी विचार के माध्यम ही बनता है। वह हर समय मन मस्तिष्क में उठाने वाले सवाल जवाब जो स्वयं अपने मन में अविरल चलता रहता है विचार ही है। स्वयं के मन में उठाने वाला शब्द या दूसरो के बारे में अपने मन में उठाने वाला शब्द भी विचार ही है। 

 

विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ विचार

विचार मन के सोच और कल्पना के अनुसार ही चरितार्थ होता है। ब्यक्ति जो सोच समझ रखता है, उसके अनुसार मन में कल्पना अपने कर्तब्य या कार्य के प्रति करता है। सोच समझ बाहरी मन से उत्पन्न होता है। जैसा सांसारिक भाव को मन स्वीकार करता है। जो जीवन में हासिल करना चाहता है। उस सांसारिक भाव को अंतर मन में कल्पना के जरिये मन में नवनिर्माण करता है। ताकि विषय वस्तु जीवन में स्थापित हो सके जिससे जीवन के निवाह का नया मार्ग मिले सके। विचार उसी कल्पना के अनुसार परिलक्षित होता है। विचार बहूत कुछ सिखाता भी है। ब्यक्ति अपने विचार के प्रति सजग हो जाए तो कल्पना से निर्मित विषय वस्तु के परिणाम को ही उजागर करते है। बाहरी मन की बात कहे तो क्या सही और क्या गलत जिव्हा बाहरी मन के तौर बोल जाता है। समझ नहीं पते है बाद में परिणाम कुछ अलग निकलता है तो परिणाम में भी विचार आने लग जाते है। उस विचार से भी सजग हो जय तो जो कुछ बिगड़ रहा है या बिगड़ गया है। उसको ठिक करने का रास्ता मिल जाता है। मन लीजिये की कोई नकारात्मक विचार उत्पन्न हो रहा है तो सोचे की नकारात्मकता कहाँ उत्पन्न हुई है। विचार ही ज्ञान दिलाता है। मन कभी कभी ऐसा हो जायेगा की विचार क्यों आ रहे है? मै नहीं चाह रहा हूँ की ऐसा विचार आये तब मन उस विचार से पीछा छुड़ाना चाहता है। विचार से भागना नहीं है, विचार में उत्पन्न हुए सवाल का जवाब खोजना है। परिणाम तब कुछ ऐसा निकलेगा की मन जो प्राप्त करना चाह रहा है। उसमे क्या मुस्किल उत्पन्न होने वाला है? वो दर्शाता है। संघर्ष, करी मेहनत कर के सकारात्मक कार्य और कर्तब्य तो पूरा हो सकता है। नकारात्मक कार्य, नकारात्मक धारना, अनर्गल कार्य को सक्रिय करने से मन मस्तिष्क पर कुथाराघात भी पड़ सकता है। जिसका परिणाम लम्बे समय तक मन के विचार में रह सकता है। जिससे पीछा चुराना बहूत मुस्किल भी पर सकता है, इसलिए विचार हमेशा सकारात्मक ही होना चाहिए               

 

मनुष्य सोच से अधिक तपस्या क्यों पसंद करते हैं?

सोच समझकर से कुछ करे तो ठिक है। सोच बहूत ज्यादा है तो कलपना भी ज्यादा होगा स्वाभाविक है। कल्पना के द्वारा अंतर मन को सोच के अनुसार कार्य और कर्तब्य के लिए प्रेरित किया जाता है। सोच बहूत ज्यादा है और कार्य कुछ नही कर रहे है तो कल्पना निरर्थक की होता रहेगा। सोच बाहरी मन की देन है, कल्पना अंतर मन में होता है। वर्त्तमान समय में सोच बहूत ज्यादा सक्रीय है। क्योकि कार्य ब्यवस्था को सक्रीय करने में प्रतिस्पर्धा का दौर चल रहा है। सब एक दुसरे से आगे निकलना चाह रहे है। स्वाभाविक है की प्रतिस्पर्धा के दौर में सब तो एक जैसा आगे नहीं जायेगा। कोई न कोई तो पीछे जरूर होगा। हो सकता है ऐसे ब्यक्ति सरल हो सांसारिक क्रिया कलाप उनको पसंद न हो, मगर जीवन जीने के लिए ब्यापार, सेवा, कार्य ब्यवस्था में सफल न हो तो अपने जीवन में कुछ परिवर्तन करना उनके लिए उचित लगता है। संसार में सब कोई एक जैसा नहीं होता है। प्रयास में जरूरी नहीं की सबको एक जैसा सफलता मिले। सफलता तो सोच समझ, बुध्दी विवेक, मन, काल्पन, कभी कभी चतुराई, साम, दाम, दंड, भेद सब के मिश्रण से प्राप्त होता है। सिधान्तवादी ब्यक्ति हर रास्ते को नहीं अपनाता है। जो उनके लिए उचित हो वो उसी रास्ते पर चलेंगे।


सिधान्तवादी ब्यक्ति सोच को कम परिणाम पर ज्यादा ध्यान देते है। 

तपस्या योग ध्यान होता ही है। कर्म के रास्ते पर चलना भी एक तपस्या ही है। जीवन के लिए नित्य कर्म होता है जिसमे सब कुछ समाहित होता है। जो जीवन से ज़ुरा हुआ होता है, सोच मिश्रित हो सकता है। कर्म अपने जीवन के सिधान्त पर चलना तपस्या होता है। ऐसे ब्यक्ति सोचने से अच्छा कर्म करना पसंद करते है। कर्म निस्वार्थ भाव होता है। ऐसे ब्यक्ति न सिर्फ अपने लिए बल्कि अपने से जुड़े  लोगो के हित का भी ख्याल रखते है। उनके ख़ुशी में अपना ख़ुशी समझते है। इसलिए ऐसे ब्यक्ति सोच से ज्यादा तपस्या पसंद करते है।


आमतौर पर ब्यक्ति कर्म रूपी तपस्या करे तो जीवन में भले कुछ हो न हो पर आतंरिक ख़ुशी अवस्य मिलता है। 

स्वयं के मन में झाकने से जीवन के परेशानियो से छुटकारा मिल सकता है। जीवन में सबकुछ प्राप्त करना ही ख़ुशी नहीं होता है। सांसारिक भोग विलाश में मनुष्य जीवन के वास्तविक रंग को भूल जाते है। जीवन में सबकुछ होते हुए भी लोग वास्तविक ख़ुशी से कभी कभी दूर हो जाते है। अंतर मन की ख़ुशी ही वास्तविक ख़ुशी है। इसलिए सिधान्तवादी ब्यक्ति सोच से अधिक तपस्या पसंद करते हैं।    

 

आप कैसे पहचानते हैं कि अगर कोई पक्षपाती या स्थिर तरीके से सोच रहा है तो आप बदलाव को कैसे प्रभावित करते हैं?

सोच जब किसी ब्यक्ति विशेष से जुड़ा हो और उसके हित को ध्यान में रख कर कार्य किया जा रहा हो भले वो अनैतिक कार्य ही क्यों न हो वो पक्षपात के दायरे में आता है। स्थिर तरीके के सोच से जो कार्य होता है उसमे स्वयं के साथ साथ अपने से जुड़े लोगो के हित का भी ख्याल रखा जाता है। जिस कार्य के करने से किसी का कोई नुकसान नहीं होता है तो उसको स्थिर सोच कहते है। जीवन में बदलाव को प्रभावित करने के लिए अपने से जुड़े लोगो के हित के बारे में जरूर सोचे। कुछ भी कार्य कर्तब्य करे तो लोगो के मान सम्मान का जरूर ख्याल रखे। कभी किसी की निंदा नहीं करे। स्वयं खुश रहे दूसरो को भी खुश रहने दे। कुछ कार्य निस्वार्थ भाव से भी करे तो जीवन में बदलाव को प्रभावित कर सकते है।       





Baby Care

Post

   What can we do with valid knowledge?   General knowledge is there in everyone, general knowledge can also be acquired through a book. In ...