सच्चे मन की कल्पना अस्तित्व की पहचान कराता है और यथार्थ से परिचय करता है.
सच्चे मन की कल्पना स्वतः होते है.
इसमें किसी प्रकार का कोई जोर जबरदस्ती नहीं होता है. ये तब प्रकाश में आता है जब मन शांत हो एकाग्र हो. किसी प्रकार का कोई उथल पुथल का भाव नही हो. कर्म को प्रधानता देता हो. स्वबलंबी हो. कर्मठ हो. आदर्शवादी हो. ब्यक्ति का मन पवित्र होता है. उनके समझदारी में निष्पछता होन चाहिए है. इसलिए ऐसे ब्यक्ति अपने नियम के दायरे के बहार कभी नहीं जाते है. चाहे यथार्थ में या कल्पना. वे जो भी सोचते है या है वास्तविकता से परे नहीं होता है. इसलिए उनका कल्पना सोच समझ सच्चे होते है. जो आगे चलकर पुरे भी होते है.
सच्चे मन की कल्पना की सोच में अस्तित्व की पहचान एक मर्यादित ब्यक्ति के लिए है. जो वही करता जो सोचता है.
उनका सोचना या कल्पना वही तक होता है. जो पूरा हो सके. इससे उनको अपने जीवन का पूरा ज्ञान होता है. ऐसे ब्यक्ति के जीवन में एक तो कार्य क्षमता बहुत होते है. जिससे वो अपने वर्त्तमान को संभलकर रखते है. भविष्य की कल्पन ऐसे ब्यक्ति न के बराबर करते है. वर्त्तमान को सही रखने के लिए उनके पास संतुलित विवेक बुद्धि होते है. जिससे वो मन से नियंत्रण में रखते हुए स्वयं में संतुलित होकर संतुष्टि से रहते है. इसलिए उनका अस्तित्व की पहचान होते रहता है.
सच्चे मन की कल्पना में सोच समझ से यथार्थ से परिचय के लिए संतुलित जीवन का होना बहुत जरूरी हैं.
संतुलित ब्यक्ति को पता होता है. की सब कुछ सोच समझ पर निर्भर होता है. अपने सोच समझ के बहार जाने का मतलब विवेक बुद्धि को ख़राब करना होता है. जब जरूरी विषय विमर्श करते है. तो परिणाम निश्चित ही मिलता है. अपने जरूरी क्रिया कलाप करने से ही यथार्थ से परिचय होता है.