ज्ञानी माइंड (Gyaani Mind)
मन को जब भी समझने का प्रयास करता हूँ।
सवाल पर सवाल खड़ा हो जाता है।
मन कभी ऐसा सोचता है! मन कभी वैसा
सोचता है! जितना मन में उतरने का प्रयास करता हूँ। उलझने लग जाता हूँ।
ये सोचकर आगे बढ़ता हूँ की क्या जरूरी है और क्या जरूरी नहीं है। जितना तेज मै नहीं
हूँ, उससे ज्यादा तेज तो मन होता है। मै ये सोचकर मन का पीछा नहीं करता हू की उससे
मै जीत नहीं पाउँगा। जब मै अपने जरूरी क्रिया कलाप को नहीं पूरा कर पता हूँ। जो मै
सोचता हूँ वो होता नहीं है और जो नही सोचता हूँ वो हो रहा होता है। तब क्या मै इस
मन का पीछा कर के अपने उम्मीद पर खड़ा उतर पाउँगा? सुबह उठकर अपने
दिनचर्या को पूरा करने में लग जाता हूँ। नित्य कर्म और काम काज जब आज तक समय पर मेरे
पुरे हुए ही नहीं है। तो क्या मन के इच्छा को कभी पूरा कर सकता हूँ। जो चीज सोचता
हूँ की आज पूरा कर लू कुछ न कुछ बाकि रह ही जाता है। तो दुसरे दिन ही जा कर पूरा
होता है। और कुछ कम को पूरा करने में कई दिन भी लग जाता है। तो क्या मन के इच्छा
को कब पूरा करुगा। मै ये सोचकर मन की इच्छा को नहीं हवा देता हूँ की जितनी चादर है
उससे ज्यादा पैर क्या फैलाना। कही कुछ उच् नीच हो गया तो मन के मारा मै तो कही फस ही
जाऊंगा। ऐसा मै कभी नहीं चाहूँगा की आ बैल मुझे मार। मैं मन की बात वहा तक मानता
हूँ जहा तक जायज़ है। मैं वही करता हूँ, जिसके बारे में मुझे पूरी जानकारी और ज्ञान
होता है। ज्यादा से ज्यादा प्रयास करता हूँ की नित्य कुछ नया सीखते रहूँ। अछी
ज्ञानवर्धक पुस्तके पढना मै अच्छा समझता हूँ। ब्यर्थ का समय बर्बाद नही कर के मैं
अपने कार्य और कर्तब्य पर ज्यादा ध्यान देता हूँ। अपने जिम्मेवारी को निभाने का
प्रयास करता हूँ। इसलिए मै खुश हूँ, प्रसन्न हूँ, आनंदित हूँ।
सुपर चेतन मन प्राप्त करने के लिए कितने महीनों
की आवश्यकता होती है?
सुपर चेतन मन प्राप्त करने के लिए समय की नहीं एकाग्रता की
आवश्यकता होती है। सुपर चेतन मन को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मन को निर्मल
करना होता है। हर घटना के प्रति सजग रहना पड़ता है। ताकि किसी भी प्रकार के भाव का
प्रभाव मन पर रंच मात्र भी नही पड़े और मन हमेशा किसी भी स्तिथि या परिस्तिथि में सरल
और सजग रहे। मन को ऐसा बनाये की दुःख में न दुःख महशुस हो और सुख में न सुख महशुस
हो तो सुपर चेतन मन के सफलता के लिए आगे बढ़ सकते है। मन का भाव जब सजग रहते हुए
सरल हो जाता है। तब मन प्रफुल्लित हो कर हर्स और उल्लास से भर जाता है। तब ऐसे
ब्यक्ति को चाहे जितना भी सुख या दुःख हो तो कोई एहसास नहीं होता है। मन के भाव
में किसी भी प्रकार के परिवर्तन की कोई उम्मित नहीं रहता है। सुपर चेतन मन प्राप्त
करने के लिए मन बुध्दी सोच विचार पर पूर्ण नियंत्रण के साथ योग साधना शवासन बहूत
जरूरी है। साधना में सहजावस्था प्राप्त कर के अवचेतन मन के माध्यम से सुपर चेतन मन
प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ा जाता है। अपने मन में झक कर मन के जो भी अन्दर पड़ा
हुआ है सब कुछ निकलकर मन को निर्मल किया जाता है। ताकि मन में बाहरी किसी भी प्रकार
के भाव का कोई प्रभाव नहीं पड़े। तब साधक मन में नहीं अपने आत्मा में वास करता है।
तब निर्मल अवस्था में कोई भाव नहीं होता है। जैसे मन की मृतु हो चुकी हो। फिर साधक
के अन्दर अपने शारीर के लिए भी कोई मोह नहीं होता है। मोह समाप्त हो जाने के बाद
ही मन को शक्ति प्राप्त होती है। तब मन नहीं होता है मन की शक्ति होता है। इच्छा नहीं
होता है इच्छा शक्ति होता है। तब साधक मन के शक्ति के माद्यम से अपना नया निर्माण
करता है। जिसमे नकारात्क कोई विषय वस्तु के लिए जगह नहीं होता है। संसार में
कल्याण के उद्देश्य से ऐसा प्रयास करे तो सफलता मिल सकता है। किसी विषय वास्तु के
प्राप्ति के उद्देश्य करने पर सफलता की उम्मित बहूत कम रहता है। चुकी विषय वस्तु
की प्राप्ति मन का भाव है। सुपर चेतन मन प्राप्त करने से मन समाप्त हो जाता है। मन
की शक्ति ही रहता है। इच्छा समाप्त हो जाता है। सिर्फ इच्छा शक्ति रह जाता है। फिर
से मन का भाव लाने पर सब शक्ति समाप्त होने लग जाते है। इससे बुध्दी भ्रस्त होने
का डर रहता है। पागल भी हो सकते है। साधना के माध्यम से सुपर चेतन मन प्राप्त करने
के लिए स्वयं अकेले प्रयास कभी नही करे। योग्य जानकर आत्मज्ञानी के निगरानी में ही
ऐसा प्रयास करे।