जिंदगी (Life)
जन्म से मृतु तक समय को जीवन (Life) कहते है
बचपन में हस खेल कर बच्चे पढाई लिखाई करके मस्ती सरारत करते हुए रहते है।
अपना जीवन बिताते हुए आगे बढ़ते है। किशोरावस्था में सही, गलत, अच्छा, बुरा सब
प्रकार के ज्ञान को समझते हुए आगे बढ़ते है। शिक्षा प्राप्त करते है। जीवन के रंग
को समझते है। जिंदगी में आगे बढ़ाते है। युवावस्था में जीवन के जिम्मेवारी को समझते
है। घर परिवार के देख रेख, काम काज, लोग समाज में उठना बैठना सब प्रकार के ज्ञान
और शिक्षा प्राप्त करते है। अपने जीवन के साथ जीवन संगिनी को प्राप्त कर के साथ
साथ जीवन बिताते है। नए पीढ़ी के साथ आगे बढ़ते है। प्रौढ़ावस्था में जीवन के उतर
चढ़ाव को समझते है। अपने अग्रज को अपने ज्ञान और अनुभव से शिक्षा देते है। समाज घर
परिवार के देख रेख करते है। जीवन ब्यतित करते हुए आगे बढ़ते है। वृद्धावस्था में सब
प्रकार के दुःख सुख का अनुभव करते है। एक एक कर के अपने ज्ञान और अनुभव को दूसरो
को देकर अपने जीवन के समापन की और बढ़ते है। बाद में मृतु को प्राप्त करते है। इस
तरह से जन्म से मृतु तक जीवन ब्यतित होता है।
आप जीवन (Life) को कैसे देखते हैं?
जीवन को सबसे पहले ज्ञान के माध्यम से समझना चाहिए। जीवन का सबसे बड़ा मूल्य शिक्षा और ज्ञान ही होता है। जिसपर जीवन का विकाश तरक्की उन्नति आधारित होता है। जीवन में शिक्षा और ज्ञान यदि भरा हुआ है तो सफलता उससे कभी दूर नहीं रहेगा। समझदारी जीवन में लोगो के बिच में कार्य ब्यवस्था में अनुभव को दर्शाता है। सरलता सहजता जीवन में सुख दुःख के समय अपने जीवन को किस तरह ब्यतित करते है। मुस्किल के समय और हार्स उल्लास में जीवन को सहज और सजग कैसे रखना है। बहूत ही उपयोगी गुण दर्शाता है। जीवन में अपने कार्य ब्यवस्था के तरफ सक्रियता जिम्मेवारी को दर्शाता है। घर परिवार बच्चो बुजुर्गो के प्रति जिम्मेवारी बहूत जरूरी है। मनुष्य के जीवन के लिए, सदाचार सद्भाव जीवन के संरचना में बहूत अहेमियत रखता है।
जीवन (Life) की मुख्य मात्रा क्या हैं?
जीवन के मुख्य मात्र १० प्रतिशत ही होते है। आध्यात्मिक ज्ञान के अनुसार मनुष्य सक्रीय चेतन मन १० प्रतिशत होते है। बाकि ९० प्रतिशत अचेतन होते है। सचेतन मन की सक्रियता जीवन के लिए विकाश और सफलता का कारण है। इसलिए जीवन की मुख्य मात्रा १० प्रतिशत सक्रिय मन हैं।