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Monday, August 2, 2021

वास्तविक ज्ञान मन मस्तिष्क के सोच समझ में बुद्धि विवेक का इस्तेमाल करना सब के लिए मान मर्यादा हो मन बुध्दी विवेक सक्रिय हो

वास्तविक ज्ञान

 

वास्तविक ज्ञान को देखा जाय तो आज के समय में लोग एक दूसरे के लिए कुछ नहीं कर पता है और कही न कही एक दूसरे से जलष की भावना रहता है। ऐसा लगता है की इस संसार में हर कोई प्रत्योगिता के दौर में एक दूसरे से आगे निकलने की कोर्शिस में एक दूसरे की मान मर्यादा जैसे भूल ही गये है। वास्तव में ऐसा नहीं होना चाहिए।

वास्तविक ज्ञान मन में स्थिरता और करुणा की भावना से कुछ करे तो सफलता जरूर मिलेगी। संसार सब के लिए है। सभी का बराबर अधिकार है। कोई कम तरक्की करता है, कोई ज्यादा पर इससे कोई बात नहीं होना चाहिए। यदि लोग एक दूसरे से मिलजुलकर रहे। एक दूसरे के साथ दे तो जो कमजोर लोग है उनको थोड़ा सहारा मिल सकता है। 

वास्तविक ज्ञान में दया करुणा की भावना जब तक अपने मन के अंदर नहीं आयेगी, तब तक ये सब संभव नहीं है। दया करुणा से ही मन को अशीम शांति मिलती है।  जिसके पीछे इंसान भागता है। जब तक लोग एक दूसरे के लिए नहीं सोचना सुरु नहीं करेंगे।  तब तक जीवन में शांति नहीं मिलेगी।  जिस दिन ऐसी भावना जागेगा।  उस दिन से शांति महशुश होना सुरु हो जाइएगा। क्योकि शांति एक महशुस है। शांति एक आभाष है। शांति कोई कितनी भी धन संपत्ति से नहीं खरीद सकता है। वो स्वतः ही प्राप्त होता है।

वास्तविक ज्ञान कि परिभाषा भी कुछ ऐसे ही बाना है। जब तक हमारा मन मस्तिष्क शांत नहीं होगे। तक शांति नहीं मिलेगी।  जब तक एक दूसरे से आत्मीयता से नही जुड़ेंगे। तब तक विचार का अदन प्रदान नही होगा। जब एक दूसरे के लिए नहीं सोचेंगे। तब तक कुछ संभव नहीं है।  मुख्य अशांति का कारण यही है। एक दूसरे को ठीक से नहीं समझना।  जिस दिन हम एक दूसरे को मन से ठीक से समझने लगेंगे। शांति अपने आप मिलने सुरु हो जाएगी।

वास्तविक ज्ञान मन के कल्पना सोच समझ में जिस दिन से शांति मिलनी सुरु हो जाएगी। फिर नही कोई वाद न विवाद होगा। न झगड़ा न लड़ाई होगा। क्योकि तब तक सब एक दूसरे से जुड़ चुके होंगे। एक सम्पूर्ण परिवार की तरह। जहा एक सम्पूर्ण परिवार होता है। वहाँ लोग सजग और जानकार भी होते है। तभी वो परिवार चलता है। कोई गलती करता है। तो बड़े बुजुर्ग उसकी सहायता कर के उसकी गलती सुधाने में मदद करते है। जिससे उसका ज्ञान बढ़ता है। तरक्की करता है। 

वास्तविक ज्ञान जिस दिन होगा हम स्वयं शांति महशुस करने लगेंगे। अच्छा महाशुस करने लगेंगे। उस दिन से सब शांति महशुस करने लग जायेगा। सब अच्छ लगने लगेंगा। यही वास्तविक ज्ञान है।

वास्तविक ज्ञान में जीवन की कल्पना में सुख शांति होना चाहिये। मन मस्तिष्क के सोच समझ में बुद्धि विवेक का पूरा इस्तेमाल करना चाहिये। जिसमे सब के लिए मान मर्यादा हो। स्वयं अपने मन पर पूरा नियत्रण हो। जो जरूरी हो। जरूरी विषय और कार्य को करना चाहिये जिससे मन, बुध्दी, विवेक सक्रिय हो।


Thursday, July 29, 2021

अहंकार क्या होता है? यह एक ऐसी प्रवृत्ति है जिसमे इंसान खुद को डुबो कर अपना सब कुछ ख़त्म करने के कगार पर आ जाता है इसका परिणाम जल्दी तो नहीं मिलता है

अहंकार मनुष्य के एकाग्रता सूझ बुझ समझदारी सरलता सहजता विनम्रता स्वभाव को ख़त्म कर सकता है 


अहंकार क्या होता हैयह एक ऐसी प्रवृत्ति है  जिसमे इंसान खुद को डुबो कर अपना सब कुछ ख़त्म करने के कगार पर  जाता है  इसका परिणाम जल्दी तो नहीं मिलता है. पर मिलता जरूर है.  जब इसका परिणाम मिलता है.  तब तक बहुत देर हो चुकी होती है  फिर कोई रास्ता नहीं बचता है.  इस अहंकार के वजह से पहले तो उनके अपना पराया उनसे छूट जाते है.  क्योकि वो कभी किसी की क़द्र नहीं करता है.  अपने घमंड में समाज में वो आपने  को सबसे बड़ा समझता है  तो वाहा से भी लोग उससे किनारा कर लेते है  भले ताकत और हैसियत के वजह से कोई उनके सामने तो कुछ नहीं कहता है. पर उनसे किनारा जरूर कर लेता है.  इसका परिणाम घर में भी नजर आता है.  जैसा स्वभाव उनका होता है. वैसे ही घर के सभी लोगो का भी होता जाता है.  तो उनसे भी लोग किनारा करने लग जाते है.  ये हकीकत है.  समाज में इस प्रकार के स्वभाव के लोगो को देखा गया है.  हम किसी  ब्यक्ति विशेष का जिक्र नहीं कर रहे हैं.  अहंकारी स्वभाव का जिक्र कर रहे है।  


ये अहंकारी स्वभाव का एक परिभाषा है.  

जो जीवन के राह में देखते आया हूँ.  ऐसे लोगों के बारे में सुनता हूँ.  समझता हूँ.  कि ऐसे लोगों का आखिर होगा क्यासब कुछ तो है. उनके पास सिर्फ सरलता नहीं,  सहजता नहीं,  मिलनसार नहीं,  एक दूसए के दुःख दर्द में साथ देने वाला नहीं  जो सिर्फ अपने मतलब के लिए जीता है। 

जीवन में सब कुछ करे, खूब तरक्की करे, नाम बहुत कमाए  लोगो से खूब जुड़े जरूरतमंद की मदत करे.  जिनके पास कुछ नहीं है.  उनके लिए   मददगार बने ऐसा करने से ये भावना ख़त्म हो जाएगा.  जीवन की निखार सहजता और सरलता से आते है.  इससे मन प्रसन्न होता है.  उदारता बढ़ता है.  उदारता से जीवन का आयाम में विकास होता है.  जिससे आत्मिक उन्नति होता है। 


वास्तव में मन का सीधा संपर्क तो आत्मा से होता  है. 

बाहरी उन्नति के साथ  आत्मिक विकास में बहुत अंतर होता है. दोनों साथ साथ चलता है.  अंतर्मन में घमंड जैसी कोई भवन घर कर ले तो  जीवन में खलबली ला देता है.  इससे मन की ख़ुशी समाप्त होने लगता  है. वाहा पर सब कुछ होते हुए भी जीवन निराश लगने लगता है.  इसलिए निराश जीवन को सही करने के लिए सरलता और अहजता की जरूरत होता है.  ईस से मन और आत्मा दोनों प्रसन्न होता वही वास्तविक ख़ुशी और प्रसन्नता है। 

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