जीवंत कल्पना
जीवंत कल्पना खुशहाल जीवन के कल्पना में मनुष्य अपने अस्तित्व
में आना ।
खुशहाल जीवन के कल्पना में। जब मनुष्य अपने अस्तित्व में आता
है। अपने जीवन के विकास के लिए कुछ योजना बनता है। वर्त्तमान में क्या चल रहा है।
बिता हुआ समय कैसा था? आने
वाला भविष्य कैसा होगा? तरक्की, उन्नति और
विकास कैसे हो? जब ब्यक्ति ऐसा कुछ विचार कर के सोचता है। भविष्य के जीवन के लिए खुशहाली की कामना करता
है। जीवंत कल्पना मनुष्य को करना ही चाहिये। जब तक मनुष्य सोचेगा नहीं तब तक कुछ
करने का भावना जागेगा नहीं। सोचना कल्पना करना किसी निर्माण के बुनियाद से काम
नहीं होता है।
जीवंत कल्पना जिस विषय या कार्य पर सक्रिय होते है। कार्य की सफलता के लिए। जब सक्रीय हो कर विचार करते है। जीवंत कल्पना होता है। जीवंत कल्पना करना ही चाहिए।
जीवंत कल्पना में युवावस्था में अक्सर लोग जीवन में आकर्षण के
लिए जीवंत कल्पना करते है ।
जीवंत कल्पना में युवावस्था में अक्सर लोग सकारात्मक सोच रखते है। जीवन में आकर्षण के लिए खासकर ऐसे युवा जीनके कोई प्रेमिका हो प्रसन्नचित मन के लिए युवा जीवंत कल्पना करते है। हालाकि कल्पना की दृस्टि से देखा जाए। तो उचित नहीं है। सोच समझ और कल्पना में जितना मनुष्य सरल और सहज हो कर संतुलित कल्पना करेगा। उतना ही अच्छा है। मन को जीवंत कल्पना में मनोरंजक करना। उतना ही तक ठीक है। बस वो कल्पना हो। कल्पनातीत नही होना चाहिए। क्योकि ये सब जीवंत कल्पना के दायरे में ही आते है। बहुत ज्यादा सक्रीय होते है। बहुत तेज गति से दिल और दिमाग पर प्रभाव डालते है।
जीवंत कल्पना सबसे अच्छा है। अपने मन, दिल, दिमाग, विवेक, बुद्धि, सोच, समझ के विकास और संतुलन के लिए करे। तो जीवंत कल्पना उपयोगी है।