बाल पेन
सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है पहले नरकट के कलम या साही के काटे, कबूतर, मोर के पंख इत्यादि उपयोग में लिए जाते थे जिसे स्याही के में डुबोकर लिखा जाता था. परंपरा बदला उसके स्थान पर जीभ वाले कलम आ गए. जिसके पीछे एक लम्बी डब्बी लगी रहती थी. आज के समय में जज इस पेन का उपयोग करते है.
समय बदला कलम के स्थान पर बाल पेन ने अपना जगह बना लिए. नित्य नए खोज से पहले के मुकाबले बाल पेन पहले से बहूत पतला लिखने में सफल हो गया है. आमतौर पर प्लास्टिक के बने छरिनुमा पेन आता है. जिसमे रिफिल भरा जाता है. उससे भी अविष्कारक आगे बढ़ कर अब लिखो फेको पेन बना दिया है. जो पतले होने साथ साथ बहुत सस्ता भी होता है. इसमे न रिफिल की जरूरत न कोई ढक्कन के सिबाय तीसरा कोई वस्तु. यदि पास में पेन नहीं तो अब ये किसी भी दुकान पर आराम से मिल जाता है. भले किराणे की दुकान हो या छोटा मोटा कोई भी कटलेरी की दुकान सब जगह उपलब्ध है.
समय के अनुसार परंपरा बदला पर लिखाई के लिए अब भी पेन ही है पहले वो कोई अब पंख या नरकट का न हो कर लिखो फेको हो गया है.
बात पेन के लीड की बनावट कहे तो वो मेटल का होकर स्टील पलिस किये होते है इसके शिर्ष पर एक बेहद छोटा छर्रा होता है. जो पेन से लिखने के समय लगातार घूमता रहता है. पीछे से इंक उसमे लगकर लिखने वाले जगह पर निशान बनता जाता है. जिसे बाल पेन का लिखावट कहते है.