कल्पना के साथ किस मॉडल का प्रयोग किया जाता है ?
कल्पना में जब तक कोई मॉडल या प्रतिबिम्ब
नही हो तो कल्पना घटित ही नहीं हो सकता है। कल्पना एक घटना ही हो सकता है। जब तक
की कल्पना स्वतः घटित नहीं होता है। तब तक कल्पना को कल्पना नहीं कह सकते है। जब
तक कल्पना में स्वतः प्रतिबिम्ब के धुन्दले चित्र नजर नहीं आ जाते है। कल्पना को
प्रभावशाली बनाने के लिए कल्पना के मॉडल या प्रतिबिम्ब के अनुरूप कार्य सुरु करना
पड़ता है। कल्पना के एक एक इकाइयों के अनुसार जीवन में कार्य को आरंभ करना पड़ता है।
जब तक की कही न कही से कुछ न कुछ सुरुआत नहीं करेंगे। तब तक कल्पना का कोई मतलब ही
नहीं रहेगा। फिर कल्पना निरर्थक ही साबित होगा। कल्पना जब कभी भी घटित होता है। तब
कल्पना मन को क्रियाशीलता के तरफ प्रेरित करता है। कल्पना के अनुरूप मन को सक्रिय
होना बहूत आवश्यक है। कल्पना पूर्वानुमान घटना है। क्रियाशीलता वर्तमान में घटित
होने वाला घटना है। कार्य की सक्रियता कल्पना का परिणाम है। कल्पना घटित होता है
तो उससे जुड़े हुए कार्य का पृष्ठभूमि तयार होता है। सोच कल्पना को घटित करता है,
इसलिए जीवन के विकाश में सकारात्मक सोच होना ही चाहिए, सोचना मन का प्रकृति है,
सोच का आरंभ बाहरी मन में विवेक बुध्दी से होता है, सोच यदि सकारात्मक है। तो अंतर
मन काल्पन के रूप में घटित करता है। सोच के लिए प्रयाश करना पर सकता है। कल्पना
में पूर्वानुमान को देखते ही मन वर्त्तमान में महशुश करता है। सब कुछ ठीक रहा तो
कल्पना गतिशील हो जाता है। मन को प्रतिबिम्ब दिखाना शुरु कर देता है। कार्य के
सक्रियता कल्पना के प्रतिबिम्ब मॉडल के अनुसार काम करना सुरु कर देता है। इसलिए
सफलता के लिए सोच और काल्पन से ज्यादा कार्य में सक्रियता अतिअवश्यक है।