धनतेरस का महत्त्व
दिपावली के दो दिन पूर्व आने वाला त्योहार धनतेरस होता है
कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष के त्रयोदसी के दिन ये त्यौहार मनाया जाता है. इस दिन धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है और इनके लिए दीपक मंदिर में स्थापित किया जाता है.
यमराज के लिए दीपक जलाया जाता है
मृतु के देवता यमराज के लिए भी दीपक जलाया जाता है पर ये दीपक घर में सबके खाना खाने के बाद सोने से पहके घर के गृहिणी घर के बहार इस दीपक को जलाते है और सोने चले जाते है.
कुबेर के लिए दीपक जलाया जाता है
मान्यता है की धनतेरस का दीपक घर के अन्दर कुबेर के लिए और घर के बहार यमराज के लिये दरवाजे पर जलाया जाता है.
धन्वन्तरी का अवतार और अमृत कलश
इसी दिन धन्वन्तरी का अवतार हुआ था. जिस समय देवता और असुर दोनों मिलकर बिच समुद्र में मंथन कर रहे थे. जिस दिन धन्वन्तरी जो विष्णु के अंश अवतार मने जाते है. महान वैद्य के तौर पर स्वस्थ लाभ के लिए उनका अवतरण हुआ था. उस दिन भी कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष के त्रयोदसी के दिन ही थे.
अमृत कलश के साथ धनवंती अवतरित हुए
शास्त्र में वर्णित कथा के अनुसार धन्वन्तरी का अवतार जो एक कलश ले कर प्रगट हुए थे स्वस्थ लाभ के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. अमृत कलश जिसमे अमरता का वरदान सिद्ध था. १३ १४ आखरी रत्न के तौर पर समुद्र मंथन के तेरहवे साल में अमृत कलश के साथ धनवंती अवतरित हुए थे.
समुद्र मंथन के लिए कुर्म अवतार कछुए के ऊपर मन्दराचल पर्वत को स्थापित किया गया
मन्दराचल पर्वत को मथानी बनाकर समुद्र मंथन हुआ था. जिसको कुर्म अवतार कछुए के ऊपर मन्दराचल पर्वत को स्थापित किया गया था. समुद्र मंथन में शेषनाग वासुकी के जरिये मंथन किया गया था. कहा जाता है की समुद्र मंथन १३ साल चला था.
सौभाग्य और समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन चांदी या धातु के वस्तु ख़रीदना सौभाग्य करक और लाभ दायक होता है.