वास्तविक कल्पना
वास्तविक जीवन ज्ञान
कल्पना और यथार्थ में बहुत अंतर होता है। मन की उड़ान ज्यादा हो तो अंतर और बढ़ जाता है।अपने इच्छ और मन पर नियंत्रण होना चाहिए। सकारात्मक सोच से इच्छा शक्ति काम करने लग जाता है। सकारात्मक सोच से मन की कल्पना यथार्थ में परिवर्तित होने लग जाता है।
कल्पना कैसे होता है?
कल्पना क्या है? मन के सकारात्मक कल्पना जीवन के महत्वपूर्ण करि है। कल्पना मनुष्य को अंतर मन से बाहरी मन को और बाहरी मन को अंतर मन से जोड़ता है। मन के बाहरी हाव भाव से अंतर मन को संकेत मिलता है। जिसके कारण बाहरी मन के भाव गहरी सोच से मन में कल्पना घटित होता है। कल्पना से अंतर मन प्रभावित होता है। जिससे मनुष्य का कल्पन बढ़ जाता है। कल्पना को सही और सकारात्मक रहने के लिए मन का भाव सकारात्मक और संतुलित रहना चाहिए। जिससे अंतर्मन अपने कल्पना को सही ढंग से स्थापित करे। कल्पना में कोई नकारात्मक भाव प्रवेश करता है। तो उससे अपने मन की भावना में परिवर्तन आता है। जिससे गतिशील कल्पना बिगड़ने लगता है। इसलिए कल्पना के दौरान या मन में कभी कोई नकारात्मक भावना उत्पन्न नही होने देना चाहिए।
कल्पना कैसे काम करता है?
मन एकाग्र करके जब कुछ सोचते है। कल्पना का भाव अंतर मन अवचेतन मन तक जाता है। बारम्बार किसी एक बिषय पर विचार करने से वह विचार सोच कल्पना के धारणा बन जाते है। कुछ दिन के बाद उससे जुड़े विचार स्वतः आने लग जाते है। उस दौरान अपने कल्पना को साकार करने के के लिए मन में सोचने लगते है। कुछ नागतिविधि भी शुरू कर देते है। कल्पना और कर्म साथ साथ चलने लगता है। मन में नकारात्मक भाव भी उत्पन्न होते है। मन नकारात्मक भव के तरफ भी गतिविधि करता है।
दिमाग का समझ क्या है?
सही और गलत का ज्ञान अपने दिमाग से प्राप्त होता है। तब दिमाग के सकारात्मक पहलू को अनुशरण कर के आगे बढ़ना चाइये। दिमाग के समझ दो प्रकार के होते है। एक सकारात्मक दूसरा नकारात्मक दिमाग के समझ है। उसमे से सकात्मक समझ को ग्रहण कर के आगे बढ़ना चाहिये। नकारात्मक भाव भी दिमाग में रहते ही है। दिमाग हर विचार भाव को दो भाग में कर देते है। तब मन को निर्णय लेना होता है। कौन से भव, कल्पना, समझ सकारत्मक है। सकारात्मक समझ की ओर बढना चाहिए।
कल्पना के दौरान दिमाग के समझ कैसे होते है?
कल्पना और दिमाग के समाज बहुत जटिल होते है। कल्पना के दौराम दिमाग हर वक्त समझ को दो भाग में कर देता है। एक सकारात्मक समझ दूसरा नकारात्मक समझ। कभी कभी दोनों समझ साथ में चलते है तो मन में उत्पीड़न होने लगता है। लाख चाहने के बाद भी नकारात्मक समझ को हटाना मुश्किल पड़ जाता है। ज्ञान के दृस्टी से देखे तो समझ एक बहुत बड़ा ज्ञान। जो कल्पना कर रहे होते है। वह कल्पना संतुलित न हो कर कल्पनातीत होता जाता है। तब नकात्मक समझ बारम्बार आते है। संतुलित कल्पना के लिए एकाग्रता शांति, निश्चल मन, संतुलित दिल और दिमाग, मन में किसी व्यक्ति विशेष के प्रति कोई बैर भाव न हो। गलत धारणाये पहले से मन में बैठा न हो। स्वयं पर पूरा नियंत्रण हो। बहुत सजग रहना पड़ता है। तब कल्पना सकारात्मक होते है। कल्पना साकार होते है। कल्पना फलित होते है। कर्म का भाव जागता है। मन के सकारात्मक सोच कल्पना के भाव कि ओर बढ़ता है। तब कल्पना साकार होता है। कल्पना फलदायक होता है।
सकारात्मक कल्पना और सकारात्मक सोच समझ के लिए क्या करना चाहिए ?
बहुत सजग रहने की आवश्यकता है।
बड़े हो या छोटे, अपने हो या पराये, सब के लिए एक जैसा भाव होना होता है।
मन में कोई गन्दगी, गलत भावनाए, धारणाये पड़े हुआ है तो निकलना पड़ता है।
मन में दया का भाव होना चाहिए।
हर विषय वस्तु के प्रति सजग रहना चाहिए।
सक्रिय रहना चाइये।
किसी भी काम को अधूरा नहीं रखना चाहिए।
कर्म के भाव मन में होना चाहिए।
रात के समय पूरा नींद लेना चाहिए , देर रात तक जागना नहीं चाइये, दिन में कभी सोना नहीं चाहिए।
लोगो के साथ आत्मीयता से जुड़ना चाहिए।
सकारात्मक बात विचार करना चाहिए।
हर बात के प्रति सजग रहना चाहिए।
किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए।
सकारात्मक कल्पना के दिल और दिमाग पर क्या प्रभाव पड़ता है?
मन सकारात्मक हो कर प्रफुल्लित होता है।
मन के भाव सकारात्मक होते है।
सोच समझ सकारात्मक होते है।
विचार उच्च होते है।
अध्यात्मिल शक्ति बढ़ते है।
मन शांत और एकाग्र होता है।
जीवन से अंधकार दूर होता है।
आत्म प्रकाश और आत्मज्ञाम बढ़ता है।
नकारात्मक भाव समाप्त हो जाते है।
मन सकारात्मक रहता है।
सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होता है।
दिमाग शांत और सक्रिय रहता है।
वास्तविक जीवन ज्ञान प्राप्त होता है।