जीवन से समझौता
वास्तविक जीवन के आयाम में समझौता.
मानव जीवन में कई प्रकार के ख्वाइश होते
है पर वो अपने जिम्मेवारी के तहत सभी इच्छा को पूरा नहीं करता है. मानव जीवन का
उद्देश्य कभी भी अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए नहीं है. यदि ऐसा वो करते है तो
सबसे बड़ी विडम्बना है की उनके स्वार्थ कभी भी पुरे नहीं होंगे. खुद के लिए सोचना
ठीक है पर स्वार्थवश कुछ सोचना बिलकुल भी उचित नहीं है. जब मानव के इच्छा पुरे
नहीं होते है तो वो घृणा और दुःख के सागर में डूबने लग लग जाता है जिससे जो
जिम्मेवारी उसके ऊपर होते है उसको भी नहीं पूरा कर पाता है और असफलता ही अंत में
हाथ लगता है.
जीवन की वास्तविक ख़ुशी तो जो जिम्मेवारी अपने ऊपर है उसको निभाने से मिलता है.
जिम्मेवारी से जो प्राप्त होता है वही
सच्चा ख़ुशी है इस ख़ुशी में आनंद और हर्ष भी महशुश होता है. जीवन के कला में ख़ुशी
के पल को धून्दाने वाले अपने कर्तव्य में ख़ुशी को खोजते ही तो उनको सालता के साथ
साथ मान, सम्मान, इज्जत, प्रतिस्था सबसे बड़ी बात आदर सब जगह से मिलता है. इतना
पाने मात्र से ही जिम्मेदार इन्सान ख़ुशी से उत्साहित हो कर अच्छा करने का प्रयाश
करता है दुनिया में वो अपना पहचान बनता है. जीवन में कुछ प्राप्त करना ही है तो
दूसरो के लिए कुछ न कुछ अच्छा करने के बारे में सोचने से सफलता जल्दी मिलता है.
जीवन के आयाम को ठीक से समझे तो यदि हम है और दुनिया में कोई नहीं है तो क्या होगा?
सब व्यर्थ ही होगा, कोई उद्देश्य ही
नहीं होगा, न मन होगा, न सुख होगा, न दुःख होगा, न बोलने वाला कोई होगा, न जानने
वाला कोई होगा, तब न कोई कुछ खरीदने वाला होगा, तब न कोई कुछ बेचनेवाला होगा. तव
कैसा जीवन होगा? सोच सकते है. ऐसे माहोल में एक पल भी नहीं टिक पाएंगे और खुद का
अकेलापन ही खुद को खाने लग जायेगा. चाहे तो किसी शुनसान जगह पर एक दिन बिताकर देख
सकते है.
वास्तविक जीवन के ज्ञान में सभी के साथ और सभी के विकाश से ही जीवन में ख़ुशी और आनंद मिलता है.