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Tuesday, August 31, 2021

विचार (Thought) बाल दिवस भाषण के लिए विचारोत्तेजक प्रश्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के बारे में बताना चाहिए

विचार (Thought)

 

विचार जीवन में ज्ञान सोच समझ विषय, वस्तु के भावनाओ पर आधारित होता है। सोच समझ से विचार उत्पन्न होता है। विचार से सोच समझ प्रभावित होता है। सोच समझ कर विचार करने से किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने का ज्ञान प्राप्त करने में बहुत सहूलियत होता है। क्योकि ऐसा करने से मन में एकाग्रता का विकास होता है। मन की एकाग्रता जीवन में बहूत कुछ देता है। जो की जीवन के लिए सकारात्मक हो। विचार को कई पहलू से समझ सकते है।

 

बाल दिवस भाषण के लिए विचारोत्तेजक प्रश्न

बाल दिवस पर बच्चो को सबसे पहले डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के बारे में बताना चाहिए। जिनका जन्म ०५ सितम्बर १८८८ को तिरुत्तानी में हुआ था। उनकी मृतु १७ अप्रैल १९७७ चेन्नई में हुआ था। मुख्या विषय जो बाल दिवस पर जिक्र होना चाहिए। बाल दिवस क्यों मनाया जाता है? बाल दिवस का महत्त्व क्या है? डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी कौन थे? डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी अध्यापक होते हुए कैसे वो भारत देश के राष्ट्रपति बने? शिक्षा और ज्ञान का क्या महत्त्व है? शिक्षा और ज्ञान  जीवन में क्या महत्त्व रखता है? जीवन के हर आयाम में शिक्षा के ज्ञान का महत्त्व क्या है? शिक्षा और ज्ञान जीवन के लिए क्यों जरूरी है? जीवन में शिक्षा और ज्ञान के साथ संस्कार का क्या अहेमियत रखता है? माता पिता, बड़े बुजुर्ग, गुरुजनो को क्यों आदर करना चाहिए? भूतकाल से शिक्षा और ज्ञान लेकर वर्त्तमान में कैसा परिवर्तन करना चाहिए और भविष्य की बुनियाद कैसे रखना चाहिए? भविष्य में शिक्षा और ज्ञान का स्तर कैसा हो? शिक्षा और ज्ञान कैसे मनुष्य के एकजुटता को बढाता है? शिक्षा और ज्ञान के द्वारा लोग कैसे महान बने? कार्य ब्यवस्था के क्षेत्र में शिक्षा और ज्ञान का क्या महत्त्व है?    

 

विभिन्न प्रकार की सोच विकसित करने के क्या अवसर हैं?

जीवन में हर सफलता का कारण कोई न कोई असफलता जरूर होता है। ब्यक्ति प्रयास करता है। प्रयास अवसर प्रदान करता है। जब तक ब्यक्ति प्रयास नहीं करेगा तब तक न अवसर मिलेगा न सफलता ही मिलेगा। प्रयास ही सफलता और अवसर की कुंजी है। कोई भी विषय या वस्तु सिर्फ एक बार प्रयास करने से प्राप्त नहीं होता है। हो सकता है सुरुआत में असफलता नहीं मिले पर असफलता दोबारा सफलता के लिए सोच को अवसर भी देता है की प्रयासशील इन्सान आगे सफल हो। सोच को विकसित करना है तो हर उस कार्य के लिए प्रयास करे जिसके बारे में कुछ सोच समझ रखते है। जीवन में सफल होना है तो अपने कार्य और कर्तब्य को जिम्मेदरी से करे। कोई भी कार्य कर्तब्य करने का प्रयास सोच को बढ़ता है। स्वाभाविक है की जब कुछ करते है तो उसके बारे में कोई रूप रेखा तयार करते है। कुछ सोचते है, कुछ समझते है, तब कोई निर्णय पर पहुचाते है। तब कुछ करने के लिए आगे बढ़ते है। जब तक कुछ नया प्रयास नहीं करेंगे तक तक सोच को नया अवसर नहीं मिलेगा। इसलिए विभिन्न प्रकार की सोच विकसित करने के लिए प्रयास से ही अवसर मिलता हैं।





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विचार (Thought) प्रोग्राम राइटिंग के दौरान अपनी तार्किक सोच को कैसे बढ़ाएं

विचार (Thought)


विचार लोगो के बिच होने के साथ साथ स्वयं में भी मन ही मन विचार उत्पन्न होते है। 

जब किसी कार्य या व्यवस्था में व्यस्त रहते है, विचार हमारे कार्य प्रणाली को बना भी सकता है और बिगार भी सकता है। विचार से सदा सचेत रहे और उनकी विचार को हवा दे जो सक्रीय कार्य से जुदा हुआ हो। एकाग्रता में थोडा सा भी अचेतन विचार को बिगाड़ सकता है। अच्छे विचार के लिए अपने कार्य प्रणाली में एकाग्रता से सचेत होकर पूरा ख्याल रखे। विचार सकारात्मक और सक्रिय कार्य के लिए ही होने चाहिए।

 

प्रोग्राम राइटिंग के दौरान अपनी तार्किक सोच को कैसे बढ़ाएं?

प्रोग्राम राइटिंग बेहत संवेदनशील कार्य है। इस में किसी भी प्रकार के कमी की गुंजाइश नहीं होने चाहिए। कुछ कम रह गया तो पृष्ठ का प्रदर्शन ही नहीं होगा। इसलिए प्रोग्राम राइटिंग के दौरान तर्क वितर्क कर के हर प्रकार से असुध्दी को निकाल कर त्रुटी को कम से कम कर के पृष्ठ का प्रदर्शन किया जाता है। प्रोग्राम राइटिंग के दौरान अपनी तार्किक सोच विचार को बढाने के लिए, अपने प्रोग्राम राइटिंग में उभरते सोच विचार को अधिक से अधिक समझने का प्रयास करना चाहिए। हर शब्द के जितना ज्यादा मतलब निकल सकता है उसे प्रोग्राम राइटिंग में उतारने का प्रयास करना चाहिए। प्रोग्रामिंग के दौरान हर उस पहलू का अध्ययन करना चाहिए जो जरूरी है। ज्यादा से ज्यादा अध्ययन करना चाहिए जिससे ज्ञान भी बढेगा साथ में तार्किक सोच में भी विकाश होगा। जब तक कई विषयो का तुलनात्मक अध्ययन नहीं करेंगे तब तक तार्किक सोच को नहीं बढ़ा पाएंगे। जब भी किसी विषय पर अध्ययन कर के प्रोग्राम राइटिंग करे तो उसके हरेक पहलू को कायदे से समझने का प्रयास करे। प्रोग्राम राइटिंग के कई तरीके से समझे विषय की तुल्नातक अध्ययन भी करे। परिणाम मिलाने पर उसके गहराई में छिपे हर पहलू को समझे तो प्रोग्राम राइटिंग के दौरान अपनी तार्किक सोच को बढ़ा सकते है।  

 

रचनात्मक सोच के साथ अलग तरीके से कैसे जिएं?

रचनात्नक सोच विचार जीवन में ख़ुशी और रोमांच के उल्लास को जीवन के रंग को भर देता है। एक तो जीवन में जारी क्रियाकलाप के और उद्देश्य तो होते ही है। जिसमे इन्सान जीवन ब्यतित करता है। रचनात्मक सोच को समझे तो आम जीवन से बहूत कुछ हटकर होता है। इन्सान अपने जीवन को जीता ही है जिस माहौल ब्यवस्था को अपनाकर जीता रहा है, उससे अलग चाहता है। जिसमे जीवन के और रंग को भरा जा सके। रचनात्मक सोच को पूरा करने के लिए प्रयास भी करके कुछ सफलता भी प्राप्त किया जा सकता है। रचनात्मक सोच के साथ जीने के लिए जीवन के तरीके को बदलता होता है। भले जीवन में सब कुछ हर किसी को प्राप्त नहीं होता है। लोग प्रयास तो करते ही है। अपने जीवन में रचनात्मक सोच को स्थापित भी करते है। वास्तविक जीवन से रचात्मक जीवन बहुत अलग होता है। इन्सान को चाहिए की सोचे विचार करे जीवन में पहले से क्या है? वास्तविक जीवन किस तरीके से चल रहा है? रचनात्मक सोच तो जीवन के लिए जरूरी ही है। जब तक इन्सान सोचेगा नहीं समझेगा नहीं तब तक आगे नहीं बढेगा। इसलिए रचनात्मक सोच को हमेशा सकारात्मक बना कर रखे। जीवन जिस तरीके से चल रहा है चलने दे। अपने रचनात्मक सोच विचार के बारे में कल्पना भी करे। अपने इच्छा को कभी भी ब्यर्थ नहीं जाने दे। मन है तो इच्छा होगा ही कभी भी इच्छा पूर्ति न होने पर मन को कभी दुखी नहीं करे। एक कहाबत है समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी किसी को कुछ नहीं मिलता है। आशा का दामन थामे रखे। जीवन को सकरात्मका बना कर रखे। उम्मीद पर तो पूरी दुनिया काबिज है। इस तरीके से रचनात्मक सोच के साथ जिया जा सकता है।  





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Sunday, August 29, 2021

विचार (Thought) विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ सोच से अधिक तपस्या क्यों पसंद हैं विचार हर संभव विषय वस्तु के बारे में कुछ न कुछ क्रिया या प्रतिक्रिया करता है

विचार (Thought)

 

विचार मन में उठाने वाला एक ऐसा क्रिया है जो हर संभव विषय वस्तु के बारे में कुछ न कुछ क्रिया या प्रतिक्रिया करता है। 

मन में उठाने वाले उचित और अनुचित ख्यालो को भी विचार कह सकते है। मन के अभिब्यक्ति को भी विचार कहते है। मन में उठने वाले बात को भी विचार कहते है। किसी को मन ही मन याद करते है वो भी विचार के माध्यम ही बनता है। वह हर समय मन मस्तिष्क में उठाने वाले सवाल जवाब जो स्वयं अपने मन में अविरल चलता रहता है विचार ही है। स्वयं के मन में उठाने वाला शब्द या दूसरो के बारे में अपने मन में उठाने वाला शब्द भी विचार ही है। 

 

विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ विचार

विचार मन के सोच और कल्पना के अनुसार ही चरितार्थ होता है। ब्यक्ति जो सोच समझ रखता है, उसके अनुसार मन में कल्पना अपने कर्तब्य या कार्य के प्रति करता है। सोच समझ बाहरी मन से उत्पन्न होता है। जैसा सांसारिक भाव को मन स्वीकार करता है। जो जीवन में हासिल करना चाहता है। उस सांसारिक भाव को अंतर मन में कल्पना के जरिये मन में नवनिर्माण करता है। ताकि विषय वस्तु जीवन में स्थापित हो सके जिससे जीवन के निवाह का नया मार्ग मिले सके। विचार उसी कल्पना के अनुसार परिलक्षित होता है। विचार बहूत कुछ सिखाता भी है। ब्यक्ति अपने विचार के प्रति सजग हो जाए तो कल्पना से निर्मित विषय वस्तु के परिणाम को ही उजागर करते है। बाहरी मन की बात कहे तो क्या सही और क्या गलत जिव्हा बाहरी मन के तौर बोल जाता है। समझ नहीं पते है बाद में परिणाम कुछ अलग निकलता है तो परिणाम में भी विचार आने लग जाते है। उस विचार से भी सजग हो जय तो जो कुछ बिगड़ रहा है या बिगड़ गया है। उसको ठिक करने का रास्ता मिल जाता है। मन लीजिये की कोई नकारात्मक विचार उत्पन्न हो रहा है तो सोचे की नकारात्मकता कहाँ उत्पन्न हुई है। विचार ही ज्ञान दिलाता है। मन कभी कभी ऐसा हो जायेगा की विचार क्यों आ रहे है? मै नहीं चाह रहा हूँ की ऐसा विचार आये तब मन उस विचार से पीछा छुड़ाना चाहता है। विचार से भागना नहीं है, विचार में उत्पन्न हुए सवाल का जवाब खोजना है। परिणाम तब कुछ ऐसा निकलेगा की मन जो प्राप्त करना चाह रहा है। उसमे क्या मुस्किल उत्पन्न होने वाला है? वो दर्शाता है। संघर्ष, करी मेहनत कर के सकारात्मक कार्य और कर्तब्य तो पूरा हो सकता है। नकारात्मक कार्य, नकारात्मक धारना, अनर्गल कार्य को सक्रिय करने से मन मस्तिष्क पर कुथाराघात भी पड़ सकता है। जिसका परिणाम लम्बे समय तक मन के विचार में रह सकता है। जिससे पीछा चुराना बहूत मुस्किल भी पर सकता है, इसलिए विचार हमेशा सकारात्मक ही होना चाहिए               

 

मनुष्य सोच से अधिक तपस्या क्यों पसंद करते हैं?

सोच समझकर से कुछ करे तो ठिक है। सोच बहूत ज्यादा है तो कलपना भी ज्यादा होगा स्वाभाविक है। कल्पना के द्वारा अंतर मन को सोच के अनुसार कार्य और कर्तब्य के लिए प्रेरित किया जाता है। सोच बहूत ज्यादा है और कार्य कुछ नही कर रहे है तो कल्पना निरर्थक की होता रहेगा। सोच बाहरी मन की देन है, कल्पना अंतर मन में होता है। वर्त्तमान समय में सोच बहूत ज्यादा सक्रीय है। क्योकि कार्य ब्यवस्था को सक्रीय करने में प्रतिस्पर्धा का दौर चल रहा है। सब एक दुसरे से आगे निकलना चाह रहे है। स्वाभाविक है की प्रतिस्पर्धा के दौर में सब तो एक जैसा आगे नहीं जायेगा। कोई न कोई तो पीछे जरूर होगा। हो सकता है ऐसे ब्यक्ति सरल हो सांसारिक क्रिया कलाप उनको पसंद न हो, मगर जीवन जीने के लिए ब्यापार, सेवा, कार्य ब्यवस्था में सफल न हो तो अपने जीवन में कुछ परिवर्तन करना उनके लिए उचित लगता है। संसार में सब कोई एक जैसा नहीं होता है। प्रयास में जरूरी नहीं की सबको एक जैसा सफलता मिले। सफलता तो सोच समझ, बुध्दी विवेक, मन, काल्पन, कभी कभी चतुराई, साम, दाम, दंड, भेद सब के मिश्रण से प्राप्त होता है। सिधान्तवादी ब्यक्ति हर रास्ते को नहीं अपनाता है। जो उनके लिए उचित हो वो उसी रास्ते पर चलेंगे।


सिधान्तवादी ब्यक्ति सोच को कम परिणाम पर ज्यादा ध्यान देते है। 

तपस्या योग ध्यान होता ही है। कर्म के रास्ते पर चलना भी एक तपस्या ही है। जीवन के लिए नित्य कर्म होता है जिसमे सब कुछ समाहित होता है। जो जीवन से ज़ुरा हुआ होता है, सोच मिश्रित हो सकता है। कर्म अपने जीवन के सिधान्त पर चलना तपस्या होता है। ऐसे ब्यक्ति सोचने से अच्छा कर्म करना पसंद करते है। कर्म निस्वार्थ भाव होता है। ऐसे ब्यक्ति न सिर्फ अपने लिए बल्कि अपने से जुड़े  लोगो के हित का भी ख्याल रखते है। उनके ख़ुशी में अपना ख़ुशी समझते है। इसलिए ऐसे ब्यक्ति सोच से ज्यादा तपस्या पसंद करते है।


आमतौर पर ब्यक्ति कर्म रूपी तपस्या करे तो जीवन में भले कुछ हो न हो पर आतंरिक ख़ुशी अवस्य मिलता है। 

स्वयं के मन में झाकने से जीवन के परेशानियो से छुटकारा मिल सकता है। जीवन में सबकुछ प्राप्त करना ही ख़ुशी नहीं होता है। सांसारिक भोग विलाश में मनुष्य जीवन के वास्तविक रंग को भूल जाते है। जीवन में सबकुछ होते हुए भी लोग वास्तविक ख़ुशी से कभी कभी दूर हो जाते है। अंतर मन की ख़ुशी ही वास्तविक ख़ुशी है। इसलिए सिधान्तवादी ब्यक्ति सोच से अधिक तपस्या पसंद करते हैं।    

 

आप कैसे पहचानते हैं कि अगर कोई पक्षपाती या स्थिर तरीके से सोच रहा है तो आप बदलाव को कैसे प्रभावित करते हैं?

सोच जब किसी ब्यक्ति विशेष से जुड़ा हो और उसके हित को ध्यान में रख कर कार्य किया जा रहा हो भले वो अनैतिक कार्य ही क्यों न हो वो पक्षपात के दायरे में आता है। स्थिर तरीके के सोच से जो कार्य होता है उसमे स्वयं के साथ साथ अपने से जुड़े लोगो के हित का भी ख्याल रखा जाता है। जिस कार्य के करने से किसी का कोई नुकसान नहीं होता है तो उसको स्थिर सोच कहते है। जीवन में बदलाव को प्रभावित करने के लिए अपने से जुड़े लोगो के हित के बारे में जरूर सोचे। कुछ भी कार्य कर्तब्य करे तो लोगो के मान सम्मान का जरूर ख्याल रखे। कभी किसी की निंदा नहीं करे। स्वयं खुश रहे दूसरो को भी खुश रहने दे। कुछ कार्य निस्वार्थ भाव से भी करे तो जीवन में बदलाव को प्रभावित कर सकते है।       





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Wednesday, August 11, 2021

मन भी बहुत खुश होता है कहा जाता है अच्छाइयों के साथ रहने से अच्छाई बढ़ती है लोगो के बीच अच्छी बाते करते और विचार अनुभव करते है

जीवन में अच्छाइयों के तरफ बढ़ने के लिए मन में अच्छे चीजों को ग्रहण करना चाहिए


जीवन में अच्छाइयों के तरफ बढ़ने के लिए अच्छे चीजों को ग्रहण करना चाहिए। जिन लोगो से मिलते है। जिनके बारे में अच्छा सुनते है। अच्छा लगता है। इससे अपना मन भी बहुत खुश होता है। इसे ही कहा जाता है अच्छाइयों के साथ रहने से अच्छाई बढ़ती है। जहाँ   लोगो के बीच अच्छी बाते करते और विचार अनुभव करते है। तो वाहा अच्छा सिद्धांत उत्पन्न होता है। जो अच्छाइयों को बढ़ता है। सबसे बुरा तब होता है। जहाँ लोग एक दूसरे से बाते करते है। और सामने वाले की कमज़ोरी पकड़कर उनका फायदा उठाते है। और सामने वाले का नुकसान करते है। ये अच्छी बात नहीं है। ऐसा नहीं करना चाहिए ऐसा करना अपराध भी है। अक्सर ऐसा होता है।  किसी से बात करते करते उस पर क्रोधित भी हो जाते है। तब ये नहीं पता चलता है। की क्या कर रहे है। क्या नहीं कर रहे है। क्या करना है। क्रोध के दौरान सब ज्ञान मस्तिष्क से गायब हो जाता है। तब सिर्फ और सिर्फ गुस्सा ही रहता है। इसलिए ऐसा तो कभी नहीं करना चाहिए।  चुकी ऐसा करने से सब ख़त्म होने का दर रहता है। उससे भविष्य में विक्छिप्तता के वजह से नुकसान ही होता है। ऐसा करना सर्वनाश करने के बराबर होता है। इसलिए ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। होना तो ये चाहिए की भले सामने वाला कुछ कहता है। भले उसके मुँह से कुछ बुरा बात निकल जाता है। तो हो सकता है उसके पास ज्ञान की कमी हो सकता है इसके वजह से ही कुछ बुरा बोला होगा। इसलिए उसे माफ़ करना ही सबसे अच्छा है। इससे उसको भी ज्ञान होगा की अरे मुझसे तो गलती हो गई है मान लिजिए कोई आपको कुछ दे रहा है। और आप उसे स्वीकार नहीं कर रहे है। तो होगा क्या वो वापस ले कर चला जायेगा। यदि किसी ने बुरा बात बोले तो हमें उसे स्वीकार करके बुरा बात बोलने की कोई जरूरी नहीं है। इससे हमारा ऊर्जा ही ख़राब होगा। जो खतरनाक है। इससे अच्छा है। सब से अच्छा बोले। अच्छा रहे। अच्छा बने रहे। अच्छाई बिखेरते रहे। इससे सब ठीक रहेगा। 

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