Showing posts with label वीरभद्र मंदिर. Show all posts
Showing posts with label वीरभद्र मंदिर. Show all posts

Monday, January 24, 2022

नाग लिंगम शेषनाग वाला शिवलिंग लेपाक्षी मंदिर जो वीरभद्र मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है सात मुह वाला लिंगम लेपाक्षी मंदिर की मुख्या विशेषता है

लेपाक्षी मंदिर अनंतपुर आन्ध्र प्रदेश

 

अनेको रहस्य से भरा लेपाक्षी मंदिर जो की वीरभद्र मंदिर है. 

जो लेपाक्षी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. लेपाक्षी गाँव अनंतपुर आन्ध्र प्रदेश में स्थित है. नजदीक प्रसिद्ध शहर बंगलौर से लगभग १४० किलोमीटर पर स्थित है. आंध्र प्रदेश के अनंतपुर के पेनुकोंडा हिन्दुपुर से भी वीरभद्र मंदिर जाया जा सकता है. वहा से लगभग ३५ किलोमीटर है.

 

वीरभद्र मंदिर का निर्माण १६ शताब्दी में किया गया था. 

लेपाक्षी मंदिर के नाम से भी नाना जाता है. मंदिर का निर्माण १५३० और १५४० दोनों समय का जिक्र है. जिसे पेनुकोंदा में रहने वाले दो भाई विरुपन्ना नायक और वीरन्ना जो मूल रूप से कर्णाटक के निवासी थे. उन्होंने मंदिर का निर्माण करवाया था. जो राजा अच्युतराय के विजयनगर के सामाज्य में पेनुकोंदा में कार्यरत थे. राजा के द्वारा उन्हें मंदिर के निर्माण का कार्य सौपा गया था.

 

लेपाक्षी मंदिर विजयनगर स्थापत्य कला और शैली के सबसे बड़ा उदाहरण है.

लेपाक्षी मंदिर प्रचीन मूर्तियों के लिए बहूत प्रसिद्ध है. विजयनगर साम्राज्य के कारीगरों और कलाकारों द्वारा बनाए गए  वीरभद्र, शिव जी, भद्रकाली, गणेश जी, विष्णु जी, लक्ष्मी जी नाग लिगम और नंदी की मूर्तियां हैं. यहां भगवान शिव के अन्य रूप अर्धनारीश्वर, कंकाल मूर्ति, दक्षिणमूर्ति और त्रिपुरातकेश्वर भी मौजूद हैं.


लेपाक्षी मंदिर के पास स्थित जटायु के मूर्ति का रहस्य. 

रामायण में वर्णित कथा के अनुसार रावन के द्वारा सीता जी के हरण करने के बाद जटायु पक्षी ने रावन से युद्ध करते हुए इसी जगह लेपाक्षी मंदिर से १.२ किलोमीटर दूर पूरब के तरफ अपने प्राण त्याग दिए थे. जटायु पक्षी सीता जी को बचाने के लिए बहूत प्रयास में असफल के बाद रावन दे द्वारा उसके तलवार से मारा गया था. सीता जी के खोज करते हुए भगवन राम, भय्या लक्षमण और हनुमन जी को अधमरे हालत में जटायु पक्षी यही मिले. करुनावश भगवान राम जी ने उस समय एक शब्द बोले थे. जटायु के लिए वो था "ले पाक्षी" जिसके नाम पर उस गाँव का नाम लेपाक्षी पड़ा.

 

जटायु पक्षी के रूप में बहूत बड़ा पत्थर के उड़ाते हुए पक्षी की मूर्ति 

उड़ाते हुए पक्षी की मूर्ति  ठीक उसी जगह पर आज बना हुआ है. एक उथली पहरी पर एक बड़ा सा चट्टान है जिसपर जटायु पक्षी पत्थर का बना हुआ है. जिसपर जाने के लिए लोहे के सीरी बने हुए है. जो रास्ते में लेपाक्षी मंदिर से १२०० मीटर पहले पड़ता है.  

 

नाग लिंगम शेषनाग वाला शिवलिंग लेपाक्षी मंदिर जो वीरभद्र मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है.

 

सात मुह वाला लिंगम लेपाक्षी मंदिर की मुख्या विशेषता है. पुरे वीरभद्र मंदिर में कुल ५ लिंग है. जिसमे से २ मंदिर के बहार है और ३ मंदिर के अन्दर है. उसमे से ये विशेष महत्त्व वाला ७ मुह वाला शेष नाग पर विराजमान लिंग है. बाहर वाला दूसरा लिंग मंदिर के पीछे विराजवान है. जो आकर्षण का केंद्र भी बना हुआ है. छात्तेनुमा ७ नाग के फन के निचे लिंग स्थापित है. इस लिंगम के बारे में कहा जाता है की जब कलाकार दोपहर के भोजन के लिए अपमे माँ का इंतजार कर रहे थे. तब इस दौरान इस नाग लिंगम प्रतिमा का निर्माण हुआ था. लिंगम प्रतिमा एक ही पत्थर को तरास कर बनाया गया है.

 

नंदी की पत्थर की मूर्ति शिवलिंग लेपाक्षी मंदिर जो वीरभद्र मंदिर के नाम से भी जाना जाता है यहाँ से १२०० मीटर दूर पशिम में है.

 

जटायु पक्षी के मूर्ति के ठीक सामने रोड के दुसरे किनारे पर नंदी का एक विशाल प्रतिमा बना हुआ है. जो एक ही पत्थर को तरास कर बना हुआ है. विश्व में इससे बड़ा कोई इकलौते पत्थर की मूर्ति नहीं है. २७ फीट लम्बा और १५ फीट चौड़ा ये प्रतिमा एक बगीचे के बिच में मंदिर की ओर मुह कर के नंदी बैठा हुआ है. बगीचा बहूत बड़ा है जो एक उद्यान की तरह है. स्थापत्य कला ये एक अनूठा नमूना है. समय बिताने और शान को टहलने के लिए उद्यान बहूत अच्छा है.


लेपाक्षी मंदिर सदियों से एक टंगा हुआ पत्थर का स्तम्भ मंदिर वीरभद्र मंदिर के नाम से भी विख्यात है.

लेपाक्षी मंदिर में मुख्या मंदिर वीरभद्र जी का है साथ में भगवन विष्णु जी और भगवन शिव जी भी मंदिर में विराजवान है. मंदिर ७० खम्बे का बना हुआ है. जिसे पंक्तिबद्ध तरीके से सजाया गया है. बाहर से दूसरी पंक्ति में स्थित ८ फीट का स्तम्भ जो मंदिर के सतह से तकरीबन आधा इंच सदियों से ऊपर है. जानकार का कहना है की लटकते हुए स्तम्भ को समजने के लिए ब्रिटिश काल में इनलैंड से आये ब्रिटिश इंजिनीयर यहाँ आये थे. परिक्षण के दौरान इस स्तम्भ को हथौरे से मरकर थोडा हिलाया जिससे पूरी मंदिर की बुनियर और स्तम्भ में कम्पन पैदा हो गया था. जीस के बाद वो ब्रिटिश इंजिनीअर यह समझकर की पुरे मंदिर का बुनियाद इसी स्तम्भ पर टिका है. यह समझकर वो वहा से भाग गया. बाद में फिर इस रहस्य का पता लगाने की किसी के अन्दर क्षमता नहीं हुई की ऐसा दोबारा किया जाये.


लेपाक्षी के वीरभद्र मंदिर में कल्याण मंडप.

लेपाक्षी के वीरभद्र मंदिर के प्रांगन में एक खुले जगह में कुछ स्तम्भ खड़े है जो अधुरा जैसा दीखता है. इसके पीछे एक दर्द भरी रहस्यमई कहानी है. बात उन दिनों की है. जब विजयनगर के राजा देशाटन पर थे. उनके अनुपस्थिति में उस समय के कल्याण मंडप के निर्माणकर्ता लेखाकार ने कल्याण मंडप का निर्माण सुरु कर दिया था. जिसमे राज्यकोस के बहूत सारा पैसे खर्च हो गए थे. वापस आने के बाद जब राजा को इस अनुचित खर्च के बारे में बात का पता चला तो उन्होंने तत्काल कल्याण मंडप का निर्माण रोकवा दिए. साथ में लेखाकार को सजा दे दिए, लेखाकार के दोनों आँख निकाल देने का फैसला सुना दिए. इससे लेखाकार दुखी हो कर स्वयं ही अपने दोनों आँख निकलकर वीरभद्र मदिर के एक दीवार पर मार दिया. जिससे दीवाल में दो निशान बन गए और एक निशान में रक्त के चिन्ह अभी भी देखे जा सकते है.   


लेपाक्षी के वीरभद्र मंदिर की विशेषताये.

वीरभद्र मंदिर वीरभद्र जी जो की भगवन शिव के एक रूद्र अवतार है उनको समर्पित है. मंदिर के गर्भगृह ने ३ कक्ष है जिसमे भगवन शिव, भगवन विष्णु और मध्य में वीरभद्र का मंदिर में कक्ष है. ऐसे से ही मंदिर ३ कक्ष में बिभाजित है जिसे मुख्या मंडप, अरदा मंतपा और गर्भगृह है.

 

गर्भगृह के प्रवेशद्वार पर भगवन शिव १४ अवतार के चित्र, दैविक प्राणी, संत, संगीतकार और नर्तकी के चित्र छत में चित्रित किये गए है. 

ऐसा विश्व में कही और किसी जगह नहीं मिला है. इसे भित्ति चित्र कहते है. जिसे दीवाल पर या छत में बनाया जाता है. इसका माप 23 फीटी x 13 फीट बताया गया है. जिसे निचे से देखने के लिए ऊपर छत की ओर देखना पड़ता है. बाकि पुरे मंदिर में रामायण महाभारत और पुरानो के पात्र के भित्ति चित्र छत में बने हुए है. कही कोई जगह खली नहीं है.

 

वीरभद्र मंदिर में एक स्तम्भ पर भृंगी के ३ पैर वाले मूर्ति है. 

पार्वती जी के मूर्ति है. जिसको महिला परिचालक के साथ दिखाया गया है. ब्रह्मा जी के मूर्ति एक ढोलकिया के साथ है. नृत्य मुद्रा में भिक्षाटन जैसे देवी देवताओं के मूर्ति बने हुए है.   

 

लेपाक्षी मंदिर में रहस्य अविरल बहती जलधारा सीता जी के पदचिन्ह.

लेपाक्षी के वीरभद्र मंदिर के प्रांगन में एक जगह सीता जी के पदचिन्ह बने हुए है. एक विशाल पदचिन्ह उस समय बना था. जब दैत्य रावन सीता जी को उठा कर ले जा रहे थे. तब जटायु के बिच में आने के बाद कुछ समय के लिए दैत्य रावन को जटायु से युद्ध करने के लिए रुकना पड़ा था. तब जहा सीता जी रुकी थी वही ये विशाल पद चिन्ह बने थे.

 

हलाकि उस युद्ध में दैत्य रावन से जटायु हारकर घायल हो गये थे. 

तब दैत्य रावन के द्वारा सीता जी को ले जाने के बाद भगवन राम के आने के बाद घायल अवस्था में जटायु ने बताया जी सीता माता जो दैत्य रावण उठा ले गया है जो लंकापति है.

 

जटायु के मृतु के समय कुछ बात ऐसी भी हुई की भगवन राम के मुख से एक शब्द निकल गई "ले पाक्षि"  जिसके नाम से उस जगह का नाम लेपाक्षी पड गया.

 

लेपाक्षी में जहा सीता जी के पदचिन्ह है. 

पदचिन्ह हमेशा गिला ही रहता है. अभी तक ये कोई नही पता लगा सका है की इस रहस्यमय पदचिन्ह में पानी कहाँ से आता रहता है. भले बेहद गर्मी का समय ही क्यों न हो तब भी पानी नहीं सूखता है. 

Post

   What can we do with valid knowledge?   General knowledge is there in everyone, general knowledge can also be acquired through a book. In ...