Showing posts with label सकारात्मक. Show all posts
Showing posts with label सकारात्मक. Show all posts

Friday, August 20, 2021

कल्पनाशील गुण सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के सोच समझ और मन की क्रियाओ पर पूर्ण आधारित होता है जैसा मन का भाव सोच समझ भी वैसा ही प्रभाव देता है

क्या कल्पनाशील एक सकारात्मक या नकारात्मक गुण है?

  

कल्पनाशील गुण सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के होते है। 

सोच समझ और मन की क्रियाओ पर पूर्ण आधारित होता है। जैसा मन का भाव होता है। सोच समझ भी वैसा ही प्रभाव देता है। जिसका परिणाम कल्पना पर पड़ता है। कल्पना आतंरिक मन का भाव होता है। जिसको बाहरी मन के भाव को कल्पना के माध्यम से अंतर्मन को संकेत देता है। कल्पना का प्रभाव बाहरी मन पर पड़ता है। कल्पना के अनुसार बाहरी मन कार्य करता है। कल्पना सकारात्मक हो रहा है या नकारात्मक मन के क्रियाओ पर आधारित होता है। मनुष्य बाहरी मन सचेत मन में रहता है। सचेत मन सक्रीय होता है। बाहर के समस्त घटनाओ का प्रभाव बाहरी सचेत मन पर पड़ता है। मनुष्य के जीवन में प्रभाव ज्ञान के अनुसार पड़ता है। जैसा मनुष्य का ज्ञान होता है, जो उसका बाहरी सचेत मन स्वीकार करता है, उसी के अनुरूप उसका भाव हो जाता है। समय के अनुसार सकारात्मक या नकारात्मक भाव दोनों हो सकता है। बाहरी सचेत मन के भाव से मन कार्य करता है। कल्पना गतिशील कार्य को बढ़ने का कार्य करता है। जब ब्यक्ति कल्पना करता है तो बाहरी मन का प्रभाव कल्पना पर भी पड़ता है। जिससे कल्पना में रुकावट या बारम्बार विषय का बदलना मन को न अच्छा लगनेवाला विषय सामने आना। इस प्रकार के बहूत से प्रभाव कल्पना में बारम्बार होता है। जो की नकारात्मक गुण है। कल्पना के दौरान हो रहे घटना से सचेत रहने वाला ब्यक्ति जिसके अन्दर ज्ञान होता है। क्या सही क्या गलत है? तो हो रहे घटना से सचेत रहकर घटना को देखते हुए आगे बढ़ता जाता है। उसे पता है क्या स्वीकार करना है। और क्या छोड़ते जाना है। तभी वो संतुलित और सकारात्मक कल्पना होता है। ऐसे ब्यक्ति के बाहरी घटना से मन को सचेत कर के रखते है। कल्पना को साफ और संतुलित रखने के लिए मन को संतुलित होना अति आवश्यक है। चाहे बाहरी मन हो या अंतर मन सक्रीय दोनों होते है, कार्य तभी सफल होता है जब बाहरी मन और अंतर मन एक जैसा होते है। तो उस कार्य में कोई रुकावट नहीं होता है। निरंतर चलता रहता है। अंतर्मन और बाहरी मन का असंतुलन कार्य में रुकावट पैदा करता है। कल्पना अंतर मन और बाहरी मन का संपर्क सूत्र जो सोच से उत्पन्न होता है। जिससे दोनों मन को नियंत्रित करने का प्रयाश जो क्रिया और घटना के अनुसार होता है। इसलिए ज्ञान के माध्यम से बाहरी मन को सचेत रखा जाता है। जिससे कल्पना में कोई रुकावट या बाधा न आये। ज्ञान से बाहरी मन को नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए मनुष्य को सदा ज्ञान के तरफ बढ़ना चाहिए। इस प्रकार से कल्पनाशील एक सकारात्मक और नकारात्मक दोनों गुण हो सकते है। 

Wednesday, August 18, 2021

हम भावावेश में कहाँ तक सोच जाते कुछ पता नहीं चलता कहा तक केवल इतना सोच जाते है

हम क्या कर रहे 

हम क्या कह रहे है? और हम कहा तक कह रहे है? कभी सोचे है? हम क्या है? हम भावावेश में कहाँ तक सोच जाते है? कुछ पता नहीं चलता है। कहा तक केवल इतना सोच जाते है। और सोचते ही रहते है। सारी की सारी सोच हवा में ही रह जाती है। जिसका कोई परिणाम नहीं निकलता है। और न फल देने वाला ही होता है। फिर क्यों इतना सोचते है। उससे तो बेहतर है। हम उतना हो सोचे जो की कोई परिणाम तक पहुंच जा सके। और नतीजा सबके लिए अच्छा हो। हम यही खुद से पूछते है। वो सोच और समझ किस काम का जो कोई परिणाम तक ही नही पहुंच पाए? सब हवा में ही रह जाये। उससे क्या फायदा होगा ? सब ब्यर्थ हो जायेगा। इसलिए कम सोचे, अच्छा सोचे, बढ़िया सोचे, फल देने वाला चीज सोचे जो अपने और दुसरो के लिए कारगर हो। जीवन सफल हो। समाज के लिए उन्नतिकारक हो। तभी सोच समझ सकारात्मक होगा।

Thursday, July 29, 2021

सकारात्मक सोच समझ और सकारात्मक कल्पना से बढ़ता है. एकाग्रता ज्ञान को बढाता है. ज्ञान से बुध्दी विवेक सकारात्मक और सक्रीय होता है. इसलिए विवेक बुद्धि से किया गया हर कार्य सफल होता है।

विवेक बुद्धि से किया गया हर कार्य सफल होता है. मन को सकारात्मक पहलू के तरफ ले जाए और सकारात्मक ही सोचे तो हर कार्य सफल होगा।  


विवेक बुद्धि बुनियादी ज्ञान है. 

जो की मस्तिष्क में ज्ञान के विकास से विवेक बुद्धि बढ़ता है. सही सोचन, सही करना, धरना को सकारात्मक रखना, मन में सेवा का भाव रखना, दुसरो के लिए सम्मान और हित का ख्याल रखें तो मन सकारात्मक होता है. सकारात्मक मन मस्तिष्क में सकारात्मक तरंगे उठाते है. जिससे मस्तिष्क शांत और सक्रीय होता है. सकारात्मक सोच विवेक बुध्दी को मजबूत बनता है. सकारात्मक सोच के साथ जो भी  कार्य होता है. उस कार्य को करने से मन में हर्स और उल्लास का महल पैदा होता है. जिससे कार्य को करने में मन लगा रहता है. किसी भी कार्य के सफलता के पीछे सबसे पहले मन का स्थिर होना अति आवश्यक है. मन के स्थिर रहने से से काम काज में मन लगता है. मन को स्थिर रखने के लिए सकारात्मक होना जरूरी है. सकारात्मक होने के लिए सोच को सकारात्मक रखना ही पड़ेगा तभी मन स्थिर होगा. एक तो सबसे बड़ी बिडम्बना है की मनुष्य का अचेतन मन, सचेतम मन से ज्यादा सक्रीय है. अवचेतन मन अचेतन मन और सचेतम मन से कही ऊपर होता है जिसका सीधा संपर्सक कल्पना से होता है. सचेतन को बढ़ाने का एक मात्र तरीका है. मन को एकाग्र भाव में स्थिर रखना. जब तक सोच और कल्पना सकारात्मक नहीं होगा. तब तक किसी एक विषय पर काफी समय रुकन बहूत मुश्किल है. इसलिए बेहतर है की अपने सोच को सकारात्मक करे तभी एकाग्रता का विकास होगा और जीवन में उन्नति होगी. एकाग्रता का मतलब है किसी एक विषय पर लम्बे समय तक रुकना. एकाग्रता एक सकारात्मक भाव है.


सकारात्मक सोच समझ और सकारात्मक कल्पना से बढ़ता है. 

एकाग्रता ज्ञान को बढाता है. ज्ञान से बुध्दी विवेक सकारात्मक और सक्रीय होता है. इसलिए विवेक बुद्धि से किया गया हर कार्य सफल होता है.

 

Post

Warm suit for ladies lightly pat the jacket with your hands and then hang it as it is designed bottom of the eiderdown garment adopts the unique crumple

   Warm suit for ladies is made of  100%  polyester fabric  Warm suit for ladies lining fabric of  zipper closure shell for body and sleeve ...