कौशल ज्ञान सीखना दो प्रकार से प्रचलित है.
एक पुस्तक पढ़कर, लिखकर और विद्वान ब्यक्ति के ज्ञान से भरी बाते को सुनकर अपने ज्ञान को बढाया जाता है. जिसे शिक्षा कहते है. दूसरा होता है अध्ययन जिसमे लिखने पढने के साथ प्रयोग और कुछ करने की भूमिका हो ज्ञान सीखना कहते है. वास्तविक ज्ञान में मानव जीवन में जब तक कुछ करने की क्षमता नहीं होगा, तब तक वो एक सफल इन्सान नहीं बनेगा. प्रयोग और वस्तु निर्माण ही उसे उपार्जन का माध्यम दे सकता है. सेवा और वस्तु के निर्माण में जब योग्यता बढ़ता है तो उसे कौशल कहते है. कौशल एक पूर्ण ज्ञान हो सकता है, वही तक जहा तक वो वस्तु सफल तरीके से निर्मित हो. बारिकियत और गुणवत्ता का कोई अंत नहीं होता है. ऐसे कौशल वाले महान पुरुस होते है. कौशल हर क्षेत्र में होता है. विशेषता और गुणवत्ता बढ़ने से उसका स्तर उचा होता है. यही कौशल है.
कौशल जहां जानना और सोचना समझना सफल प्रदर्शन के मुख्य निर्धारक हैं.
ज्ञान अनंत है. सोचने और समझने से ज्ञान बढ़ता है. इससे कुछ निर्माण करते है तो वो उसके कौशल का पहचान बनता है. किसी विषय वस्तु के अच्छी पहचान और हरेक पहलू को दर्शाना जिससे देखने वाले को उसके बारिकियत का अंदाजा लगा सके तो उसे विशिस्थ कौशल कहते है. जिसके लिए परिश्रमी व्यक्ति दिन-रात मेहनत कर के कुछ सीखते है और अपने कार्य में पारंगत होते है. तभी गुणवत्तापूर्ण कौशल जीवन में स्थापित होता है. इसके लिए मन की एकाग्रता है के साथ जानने, सोचने, समझने का अच्छा ज्ञान होना अतिआवश्यक है. तभी अपने कौशल के प्रदर्शन को लोगो के बिच प्रदर्शित कर सकते है. यही कौशल का ज्ञान है.
सह छात्रों की सोच कौशल
विद्याथी एक समूह में तभी होते है जब सबके विचार और सोच एक जैसे होते है. जब एक साथ कई विद्याथी ज्ञान और शिक्षा के बारे में विचार विमर्स करते है, तो सभी के बात विचार में जो सहमति बनता है वो उत्क्रिस्थ होता है. जो सभी के लिए गुणकारक भी होता है. इससे भी कौशल का निर्माण होता है. सोच भी एक ज्ञान है. जब कई लोग के विचार से एक मजबूत बिंदु मिलता है वही सटीक निश्कर्ष निकालता है. इसलिए सह छात्रों की सोच कौशल का काम करता है.