जीवन के उतार चढ़ाव में कल्पना का बहुत बड़ा महत्त्व होता है
जीवन में आखिर किसी भी असफलता का कारन क्या होता है
सबसे पहले सोचना चाइये की कहाँ क्या कमी रह गया है कहाँ पर क्या करना था और क्या हो गया है यही सोच विचार जब करते है तो उसको कल्पना कहा जाता है मनुष्य चाहे किसी भी स्तर पर क्यों न हो चाहे काम धंदा ब्यापार, समाज के बिच रहना बात बिचार करना, पढाई लिखाई, खेल कूद, उन्नति अवनति हर क्षेत्र में ब्यक्ति विकास करने के लिए कुछ न कुछ विचार करता है उस सोच समझ को ही कल्पना कहते है।
सबसे गहन सोच कल्पना तब होता है
जब किसी का बहुत बड़ा नुकशान होता है मगर उस समय ज्यादाकर लोग विवेक बुद्धि के आहात होने के वजह से लोग कल्पनातीत भी हो जाते है जिनके अंदर मनोबल कमजोर होता है या एकाग्रता का अभाव होता है बहुत ज्यादा नुकशान होने से लोग नकारात्मक भी सोच लेते है या कल्पना में नकारात्मक भाव आता है इसका मुख्य कारण मनोबल का कमजोर होना ही होता है जो एकाग्रता को भंग कर देता है मन तो वास्तव में ऐसा होना चाइये की जो दुःख में हतोत्साहित न हो और सुख में उत्तेजना न हो दोनो ही स्तिथि में सम रहने से जीवन में स्थिरता का निर्माण होता है विवेक बुद्धि सक्रिय होता है जीवन में सरलता और सहजता आता है जो ब्यक्ति को निर्भय बनता है आत्मबल और मनोबल मजबूत करता है।
मन पर अक्सर दो प्रकार का प्रभाव होता है
एक सकारात्मक दूसरा नकारात्मक सकारात्मक प्रभाव वाले लोग अच्छे होते है उनके अंदर ज्ञान होता है उनका सोच समझ विचार कल्पना सब संतुलित होते है वे कभी कल्पनातीत नहीं होते है सकारात्मक ब्यक्ति के बात विचार करने का ढंग सौम्य होता है जो सबको अच्छा लगता है।
जिनके मन में नकारात्मक प्रबृत्ति होता है
ऐसे ब्यक्ति के मन एक जगह नहीं ठहरते है उनके मन बिचलित रहते है ऐसे ब्यक्ति अपने मन के पीछे भागता है मन जैसा करता है उस और भागता है ऐसे ब्यक्ति के मन पर कोई नियंत्रण नहीं होता है इसके पीछे मुख्या कारण है ज्यादाकर कल्पनातीत रहना जो कभी पूर्ण हो नहीं सकता है उस विषय या कार्य के बारे में ज्यादा सोच विचार कल्पना करना इससे बुद्धि विवेक कमजोर रहता है मन में हमेशा उथल पुथल रहता है ऐसे ब्यक्ति ज्यादा तर्क वितर्क करता है स्वाभाविक है ज्यादा तर्क वितर्क से बनाबे वाला काम भी बिगड़ सकता है किसी भी काम में सफलता या परिणाम तक पहुंचने के लिए सटीक सोच की आवश्यकता होता है जब कोई काम समझ कर करने पर भी पूरा नहीं होता है तो स्वाभाविक है तर्क वितर्क उत्पन्न ही होगा इसलिए मन में नकारात्मक प्रबृत्ति कभी नहीं होनी चाइये।
बहुत ज्यादा सोचना या कल्पना करना भी उचित नहीं होता है
इससे मन के भाव में बहुत फड़क पड़ता है भले सरे सोच सकारात्मक ही क्यों न हो सोच विचार के साथ किया गया कल्पना ही फलित होता है बहुत जायदा सोचना या कल्पना करने से मस्तिष्क के साथ साथ मन पर भी बहुत असर होता है जिससे स्वस्थ भी ख़राब हो सकता है ऐसा तब होता है जब सूझ बुझ कर किया गया कार्य या किसी विषय पर निर्णय के वजह से वह सब ख़राब हो जाता है जिससे बर्बादी का कारण बन जाता है नाम मन मर्यादा प्रतिष्ठा सब दाव पर लग जाता है जब की इस बर्बादी के पीछे कारण कुछ और होता है उस समय जो सोच समझ या कल्पना में विचार कुछ नही हो पता है बहुत सोच विचार करने पर भी कोई जवाब नहीं मिल पता है तब लोग कुछ गलत कदम भी उठा लेते है जिनके मनोबल कमजोर होता है जिनके पास आत्मबल और मनोबल मजबूत होता है उनके मन पर किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता है।