Monday, August 9, 2021

अपने काम की कल्पना जीवन के उत्थान और सफलता व्यवहारिक जीवन में सकारात्मक महत्त्व रखता है

काम पर कल्पना

 

अपने काम के बारे में कल्पना करना आज के समय के हालत के अनुशार से बहुत जरूरी हो गया है। एक तरफ महा बीमारी ने अपना जगह बना लिया है। तो दूसरी तरफ उद्योग कही न कही सब नुकसान झेल रहे है। कुछ ही उपक्रम ठीक चल रहे है। ऐसे माहौल में बेरोजगारी उत्पन्न होना कोई नई बात नहीं रह गया है। कर्मचारी हो या तकनिकी विशेषज्ञ कही न कही बेरोजगारी के वज़ह से पड़ेशान है। ऐसे हालात में आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी हो गया है।

 

काम धंदा के प्रगति के लिए कल्पना करने के लिए बहुत ऐसे विषय है। जो अपने अपने क्षेत्र से जुड़े हुए है। हर ब्यक्ति किसी न किसी क्षेत्र में कुछ जानकर या विशेषज्ञ जरूर है। अपने प्रतिभा को माध्यम बनाकर आगे बढ़ना चाहिये। कोई भी व्यवसाय या उपक्रम एका एक आगे नहीं बढ़ता है। व्यवसाय धीरे धीरे बढ़ता होता है। पहले कोई एक शुरुआत करता है। मेहनत और लगन से आगे बढ़ता है। धीरे धीरे प्रगति करता है। जो कार्य व्यवसाय अपने मन को अच्छा लगता है। उसकी कल्पना प्रयास को बढाता है। कही न कही से व्यवसाय क्यों नहीं मिलेगा? मेहनत और प्रयास कभी ब्यर्थ नहीं जाता है। जैसा कल्पना घटित होता है। मन का झुकाओ भी उसी क्षेत्र में होता है। मन एक बार अपने कार्य में लग जाए। तो उत्पादन अवश्य होगा। इससे जीवन में उन्नति होगा ही। इसलिए अपने काम व्यवसाय सेवा से जुड़े हुए क्षेत्र में प्रगति के लिए कामना करना ही चाहिये।   

मन मस्तिष्क की सक्रियता मन में एकाग्रता काल्पन जीवन में डर भय दूर होता है बात विचार सरल सहज और आकर्षक होता है ग्राहक आकर्षित होते है।

कल्पना सोच समझ के बारे  कहा जाता है की कभी भी अच्छे शब्द ही बोलता चाहिए

कल्पना सोच समझ के बारे  कहा जाता है की कभी भी अच्छे शब्द ही बोलता चाहिए। किसी से भी भले अनजान से ही क्यों नही। साफ़ सुथरा बात चित करना चाहिए। कब कौन अपने साथ मददगार हो जायेगा क्या पता। जीवन सदा एक जैसा नहीं होता है। उतार चढ़ाओ होता ही रहता है। यही अपना बोलना साफ सुथरा होगा तो कोई भी अपना साथ देगा। भले जान पहचान के हो या अनजान सभी को अच्छे शब्द पसंद है। हो सकता है। अपने बुरे समय वो कभी भी अपना साथ मददगार हो। एक बात और है की जब अपना  बोली वचन ठीक ठाक  होगा।  सुख हो या दुःख अपने को एहसास नहीं होगा। चुकी अच्छे बोल वचन  अपने को ज्ञान भी देता है।


जीवन के कल्पना में सब अपने स्वयं के सुधार के लिए सोचते है

जीवन के कल्पना में सब अपने स्वयं के सुधार के लिए सोचते है। कभी पिछली बात को याद करते है। तो कभी आने वाले भविष्य की कल्पना करते है।  अक्सर ऐसा तब करते ही जब अपना मस्तिष्क विकशित होता है। सोच  समझ का ज्ञान समझने लग जाते है।  तो  आगे का रास्ता निकालने के लिए  भविष्य की कल्पना करते है। जिसका मुख्य उद्देश्य होता है। जीवन का विकास करना।


जीवन के कल्पना में अपने काम धंदे के बारे में सोचते है आर्थिक स्तिथि मजबूत हो

जीवन के कल्पना में अपने काम धंदे के बारे में सोचते है। जिससे आर्थिक स्तिथि मजबूत हो। घर परिवार खुशहाल ।जीवन के विकास में बहुत सारे ऐसे उद्योग धंदा है। जैसे विपणन और सामान के बिक्री से जुड़े उद्योग धंदा और ब्यापार सेवा।  इस व्यवसाय में मुख्या तौर पर महत्त्व होता है की  ग्राहक को कैसे आकर्षित करते है।  खरीदारी के लिए और सामान के बिक्री की मात्रा को बढ़ाते है। विपणन के व्यवसाय में अपना बात चित करने का तरीका ही अपने व्यवसाय को बढ़ाने में भूमिका निभाता है।  जिससे सामान की बिक्री का मात्रा बढ़ता है। आवश्यकता बात करने की कला होता है।  जीवन में बात विचार के कला और ज्ञान के लिए किसी के प्रेरणा का सहारा लिया जा सकता है। आत्मज्ञान पर पूर्ण विस्वाश करना होता है। स्वयं के मन में झांककर वो सभी प्रकार के गन्दगी को निकालना होता है। जो कल्पना के  दौरान सोच समझ  में रोड़ा अटकने वाला विचार आता है।  उसकी सफाई कर के सकारात्मक विचार को बढ़ाया जाता है। मन को सरल और सहज रखने का  प्रयास किया जाता है।  विपणन के व्यवसाय में कभी भी खली समय को व्यर्थ नहीं गवाना चाहिये  खली समय में भी कुछ न कुछ कार्य करते रहना चाहिए। जिससे मन मस्तिष्क सक्रिय रहता है।  हमेशा मन में एकाग्रता का ख्याल रहना चाहिये  जिससे मन का डर भय दूर होता है।   बात विचार सरल सहज और आकर्षक होता है। ग्राहक आकर्षित होते है।

कबीर दास जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा दया लेकिन जब मैंने खुद अपने मन के अंदर में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है दुनिया में

कबीर दस जी कहते है। कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा दया। लेकिन जब मैंने खुद अपने मन के अंदर में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है दुनिया में। मैं ही सबसे स्वार्थी और बुरा हूँ। हम लोग दूसरों की बुराइयां बहुत देखते हैं। लेकिन अगर हम खुद के मन के अंदर झाँक कर देखेंगे तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई इंसान इस दुनिया में नहीं है।

कल्पना के जरिये ज्ञान को अपने जीवन में स्थापित किया जाता है मन लीजिये की पढाई लिखाई कर रहे है परीक्षा देना पढाई लिखाई का मुख्या उद्देश होता है

कल्पना ज्ञान से बेहतर है


कल्पना ज्ञान से बेहतर ही है ज्ञान हासिल करना ही चाहिये 

ज्ञान से ही सब कार्य होते है। जब तक ज्ञान नहीं होगा। तब तक कोई कम को पूरा भी नहीं कर सकते है। चाहे छोटा हो या बड़ा काम सब ज्ञान से जुड़ा हुआ है। पढाई लिखाई से ज्ञान मिलता है। खेलने कूदने से भी बहूत ज्ञान मिलता है। शारीर चुस्त दुरुस्त रहता है। मन साफ रहता है। शारीर के तंत्रिका तंत्र सक्रीय रहते है। खेलने कूदने से शारीर में चुस्ती फुर्ती मिलता है। कही न कही खेलने कूदने से ज्ञान ही मिलता है। भले वो भौतिक ज्ञान है। सबसे पहले शारीर होता है। शरीर से ही सब कुछ जुड़ा हुआ है। ज्ञान ही है। समाज में लोगो से बात विचार करने से भी नए नए ज्ञान मिलता है। क्या अच्छा है? क्या बुरा है? अछे बुरे का ज्ञान होता है। घर में संस्कार का ज्ञान मिलता है। आदर भाव का ज्ञान मिलता है। माता बच्चे को प्यार दुलार कर के अच्छे बात सिखाते है। ये भी ज्ञान ही है।


कल्पना ज्ञान से बेहतर क्यों है? सवाल बहूत अच्छा है 

कल्पना के जरिये ज्ञान को अपने जीवन में स्थापित किया जाता है। मन लीजिये की पढाई लिखाई कर रहे है। परीक्षा देना पढाई लिखाई का मुख्या उद्देश होता है। जिससे की आगे के कक्षा में स्थान मिले। अच्छा अंक मिले। इसके लिए विषय के पाठ को याद करना होता है। जब विषय के पाठ याद नहीं होता है। तब बारम्बार अपने पाठ को पढ़ा जाता है। अपने मन में विषय के पाठ को याद करने का प्रयाश किया जाता है। याद करने का प्रयास करना कल्पना ही है। जब कल्पना करते है। तब विषय के पाठ के शब्द मन में उभरने लगते है। क्योकि मन विषय के पाठ को कई बात पढ़ चूका होता है। तब कल्पना कर के याद को ताजा किया जाता है। ज्ञान एक बार में मिल जाता है। जब तक ज्ञान को तजा नहीं करेंगे। तब तक ज्ञान कोई कम का नही है। ज्ञान है। तो ज्ञान सक्रीय होना चाहिए। जब तक ज्ञान सक्रीय नहीं होगा। तब तक ज्ञान किस काम का होगा। ज्ञान को सक्रीय करने के लिए कल्पना करना ही होगा। इसलिए कल्पना ज्ञान से बेहतर है।        

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Thursday, August 5, 2021

वास्तविक जीवन ज्ञान प्राप्त कर ले कई प्रकार के विशेषज्ञ भी बन जाये अपने काम धंदा के लिए उच्च से उच्च अध्ययन कर ले ये सभी ज्ञान अपने काम धंदा के लिए सिर्फ सहारा ही देता होता है

कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

 

जीवन में चाहे जितनी भी ज्ञान प्राप्त कर ले। कई प्रकार के विशेषज्ञ भी बन जाये। अपने काम धंदा के लिए उच्च से उच्च अध्ययन कर ले। ये सभी ज्ञान हमें अपने काम धंदा के लिए सिर्फ सहारा ही देता होता है।  ज्ञान के प्रमाण पत्र ज्ञान में सक्षमता के है। 


वास्तविक जीवन ज्ञान

कल्पना वास्तविक जीवन ज्ञान में वास्तविकता से तब सामना होता है।  जब इस ज्ञान के माध्यम से कुछ करना होता है।तब उस कार्य के लिए विशेष अनुभव की आवश्यकता होता है। जब तक पूरी तारीके से अपने काम धंदा पर ध्यान नहीं देंगे। चिंतन मनन नहीं करेंगे।  तब कुछ नहीं हो सकता है।  चाहे जितना ज्ञान क्यों न हो।  ज्ञान सिर्फ उस कार्य को पूरा करने का माध्यम है।  जिससे काम करने के लिए उपयुक्त साधन मिलते है।  जब तक स्वयं प्रयास नहीं करेंगे।  कैसे कुछ होगा।  किसी कार्य को करने के लिए जब काम को अपनी जिम्मेवारी में लेते है। तो उससे जुड़े बहुत से दुविधाएं रूकावट पड़ेशानी भी आते है।  इसके लिए एक एक विषय पर चिंतन मनन करना पड़ता है।  उस कार्य के गहराई में जाने के लिए  मन में कल्पना करना पडता है।  कल्पना करने के लिए एकाग्र होना जरूरी होता है।  चुकी सक्रिय काम में सकारात्मक कार्य का दबाव होता है। इसमे एकाग्रता का पूरा सहारा मिल जाता है।  मन में चिंतन करने के लिए  किताबी ज्ञान तो मस्तिष्क में होता ही है।  जब तक उस कार्य के बारे में नहीं सोचेंगे। तब तक  उससे जुड़े ज्ञान मस्तिष में कैसे उभरेगा। इसलिए अपने कार्य को करने के लिए  एक एक विषय पर चिंतन मनन करना पड़ता है। मनम करने से मन कार्य के अनुकूल होता है।  जिससे कल्पना में उस कार्य को एकाग्र कर के कार्य से जुड़े उपयुक्त साधन के बारे में विचार करने से उस कार्य को पूरा करने में सक्रियता बढ़ जाता है।  फिर मन कार्य के अनुसार कार्य करता है। जिससे वो काम पूरा होता है। इसलिए कल्पना सोच समझ ज्ञान से महत्वपूर्ण है।

कल्पना और यथार्थ में बहुत अंतर होता है। मन की उड़ान ज्यादा हो तो अंतर और बढ़ जाता है।अपने इच्छ और मन पर नियंत्रण होना चाहिए।

वास्तविक कल्पना 

वास्तविक जीवन ज्ञान

कल्पना और यथार्थ में बहुत अंतर होता है। मन की उड़ान ज्यादा हो तो अंतर और बढ़ जाता है।अपने इच्छ और मन पर नियंत्रण होना चाहिए सकारात्मक सोच से इच्छा शक्ति काम करने लग जाता है।  सकारात्मक सोच से मन की कल्पना यथार्थ में परिवर्तित होने लग जाता है। 


कल्पना कैसे होता है? 

कल्पना क्या है? मन के सकारात्मक कल्पना जीवन के महत्वपूर्ण करि है। कल्पना मनुष्य को  अंतर मन से बाहरी मन को और बाहरी मन को अंतर मन से जोड़ता है।  मन के बाहरी हाव भाव से अंतर  मन को संकेत मिलता  है।  जिसके कारण बाहरी मन के भाव  गहरी सोच से  मन में कल्पना घटित होता है।  कल्पना से अंतर मन प्रभावित होता है। जिससे मनुष्य का  कल्पन बढ़ जाता है।  कल्पना को सही और सकारात्मक रहने के लिए मन का भाव सकारात्मक और संतुलित रहना चाहिए।  जिससे अंतर्मन अपने कल्पना को सही ढंग से स्थापित करे।  कल्पना में कोई नकारात्मक भाव प्रवेश करता है। तो उससे अपने मन की भावना में परिवर्तन आता है। जिससे गतिशील कल्पना बिगड़ने लगता है।  इसलिए कल्पना के दौरान या मन में कभी कोई नकारात्मक भावना उत्पन्न नही होने देना चाहिए। 

 

कल्पना कैसे काम करता है?

मन एकाग्र करके जब कुछ सोचते है।  कल्पना का भाव अंतर मन अवचेतन मन तक जाता है।  बारम्बार किसी एक बिषय पर विचार करने से वह विचार सोच कल्पना के धारणा बन जाते है। कुछ दिन के बाद उससे जुड़े विचार स्वतः आने लग जाते है। उस दौरान अपने कल्पना को साकार करने के के लिए मन में सोचने लगते है।  कुछ नागतिविधि भी शुरू कर देते है।  कल्पना और कर्म साथ साथ चलने लगता है।  मन में नकारात्मक भाव भी उत्पन्न होते है। मन नकारात्मक भव के तरफ भी गतिविधि करता है। 

 

दिमाग का समझ क्या है? 

सही और गलत का ज्ञान अपने दिमाग से प्राप्त होता है। तब दिमाग के सकारात्मक पहलू को अनुशरण कर के आगे बढ़ना चाइये।  दिमाग के समझ दो प्रकार के होते है। एक सकारात्मक दूसरा नकारात्मक दिमाग के समझ है। उसमे से सकात्मक समझ को ग्रहण कर के आगे बढ़ना चाहिये। नकारात्मक भाव भी दिमाग में रहते ही है। दिमाग हर विचार भाव को दो भाग में कर देते है। तब मन को निर्णय लेना होता है। कौन से भव, कल्पना, समझ सकारत्मक है।  सकारात्मक समझ की ओर बढना चाहिए।   

 

कल्पना के दौरान दिमाग के समझ कैसे होते है? 

कल्पना और दिमाग के समाज बहुत जटिल होते है।  कल्पना के दौराम दिमाग हर वक्त समझ को दो भाग में कर देता है।  एक सकारात्मक समझ दूसरा नकारात्मक समझ।  कभी कभी दोनों समझ साथ में चलते है तो मन में उत्पीड़न होने लगता है। लाख चाहने के बाद भी नकारात्मक समझ को हटाना मुश्किल पड़ जाता है। ज्ञान के दृस्टी से देखे तो समझ एक बहुत बड़ा ज्ञान।  जो  कल्पना कर रहे होते है। वह कल्पना संतुलित न हो कर कल्पनातीत होता जाता है। तब नकात्मक समझ बारम्बार आते है।  संतुलित कल्पना के लिए एकाग्रता शांति, निश्चल मन, संतुलित दिल और दिमाग, मन में किसी व्यक्ति विशेष के प्रति कोई बैर भाव न हो। गलत धारणाये पहले से मन में बैठा न हो। स्वयं पर पूरा नियंत्रण हो। बहुत सजग रहना पड़ता है। तब कल्पना सकारात्मक होते है। कल्पना साकार होते है। कल्पना फलित होते है। कर्म का भाव जागता है। मन के सकारात्मक सोच कल्पना के भाव कि ओर बढ़ता है। तब कल्पना साकार होता है। कल्पना फलदायक होता है। 

 

सकारात्मक कल्पना और सकारात्मक सोच समझ के लिए क्या करना चाहिए  ? 

बहुत सजग रहने की आवश्यकता है। 

बड़े हो या छोटे, अपने हो या पराये, सब के लिए एक जैसा भाव होना होता है।

मन में कोई गन्दगीगलत भावनाए, धारणाये पड़े हुआ है तो निकलना पड़ता है।   

मन में दया का भाव होना चाहिए। 

हर विषय वस्तु के प्रति सजग रहना चाहिए। 

सक्रिय रहना चाइये।  

किसी भी काम को अधूरा नहीं रखना चाहिए। 

कर्म के भाव मन में होना चाहिए।  

रात के समय पूरा नींद लेना चाहिए , देर रात तक जागना नहीं चाइयेदिन में कभी सोना नहीं चाहिए।

लोगो के साथ आत्मीयता से जुड़ना चाहिए। 

सकारात्मक बात विचार करना चाहिए। 

हर बात के प्रति सजग रहना चाहिए। 

किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए। 

 

सकारात्मक कल्पना के दिल और दिमाग पर क्या प्रभाव पड़ता है?

मन सकारात्मक हो कर प्रफुल्लित होता है। 

मन के भाव सकारात्मक होते है। 

सोच समझ सकारात्मक होते है। 

विचार उच्च होते है।  

अध्यात्मिल शक्ति बढ़ते है।  

मन शांत और एकाग्र होता है। 

जीवन से अंधकार दूर होता है।  

आत्म प्रकाश और आत्मज्ञाम बढ़ता है।   

नकारात्मक भाव समाप्त हो जाते है। 

मन सकारात्मक रहता है। 

सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होता है। 

दिमाग शांत और सक्रिय रहता है। 

वास्तविक जीवन ज्ञान प्राप्त होता है

Wednesday, August 4, 2021

Maharashtra board English medium master key for 10th SSC (S. S. C.) board Secondary School Certificate

MASTER KEY FOR SSC BOARD 10th 


10th class S. S. C.. Maharashtra board English medium master key for 10th board all book set

Master Key study book from, CHETANA  MASTER KEY


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Master key study book, For 10th Standard,  S S C Board, CHETANA   MASTER KEY, Marathi Akshar bharti Standard x  (मराठी अक्षरभारती इयत्ता दहावी )
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Master key study book, For 10th Standard,  S S C Board, CHETANA   MASTER KEY, Hindi Lokbharti Standard x  (हिंदी लोकभारती कक्षा दसवी )
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Master key study book, For 10th Standard,  S S C Board, CHETANA   MASTER KEY, Mathematics Part-II (Geometry) Standard x

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Master key study book, For 10th Standard,  S S C Board, CHETANA   MASTER KEY, Mathematics Part-I (Algebra) Standard x

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Tuesday, August 3, 2021

कल्पना जीवन में इच्छा का विस्तार करना कल्पना है इच्छा संगठित मन में गहन सकारात्मक विचार संग्रह करना

कल्पना का अर्थ


सकारात्मक कल्पना 

कल्पना जीवन में अपने इच्छा को विस्तार करने के महत्त्व को कल्पना कहते है इच्छा को संगठित करके मन में गहन सकारात्मक विचार संग्रह करना मन के इच्छा को पूर्ण करने के दिशा में जाना इच्छा पूर्ण करना कल्पना का अर्थ कहते है कल्पना सिर्फ करना ही नहीं होता है रचनात्मक कल्पना को साकार करने के लिए परिश्रम भी करना पड़ता है सकारात्मक सोच से रचनात्मक कल्पना पूर्ण होता है मन के सकारात्मक इच्छा पूर्ण होता है कल्पना का मुख्य उद्देश्य सकारात्मक इच्छा को संगठित करके मन में इच्छा पूर्ण करने के लिए सकारात्मक दिशा में कार्य किया जाता है उठो मन अपने सकारात्मक इच्छा को पूर्ण करने की दिशा में आगे बढ़ो मन को सक्रीय किया जाता है सकारात्मक इच्छा को पूर्ण करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं करना पड़ता है चुकी सकारात्मक इच्छा के कल्पना संतुलित होते है जो समय, पात्र और योग्यता के अनुसार उचित होते है कल्पना का भाव सकारात्मक और संतुलित होने से मन में सकारात्मक इच्छा सक्रय हो जाते है कोई रूकावट या व्यवधान नहीं आता है कर्म का भाव सकारात्मक इच्छा को पूर्ण करने की दिशा में आगे बढ़ जाता है कल्पना में इच्छा सत्कर्म से ही ज़ुरा होना चाहिए वास्तविक मन का भाव सकारात्मक ही होता है मन में चलने वाले हर तरह के इच्छा पर भरोसा नहीं कर सकते है इच्छा पर बाहरी मन का छाप होता है इसलिए इच्छा सकारात्मक, नकात्मक या मिश्रित भी हो सकता है सक्रिय मन के लिए कल्पना का अर्थ मन में उठाने वाला इच्छा को मन के भाव से सक्रीय करना ही कल्पना होता है     

कल्पना से परे होने का अर्थ जीवन सकारात्मक कल्पना से भरा हुआ हो सोच समझ कभी भी कल्पना से परे नहीं होना चाहिये जीवन में सोच और कल्पना संतुलित हो तो बहुत अच्छा है

आपकी कल्पना से परे


कल्पना से परे होने का अर्थ

जीवन सकारात्मक कल्पना से भरा हुआ होना ही चाहिये। सोच समझ कभी भी कल्पना से परे नहीं होना चाहिये। जीवन में सोच और कल्पना संतुलित हो तो बहुत अच्छा है। इससे जीवन में संतुलन बना हुआ रहता है। अपनी कल्पना से परे होने का मतलब जीवन अपनी जगह है। और कल्पना सातवे स्थान पर विचरण कर रहा होता है। मन का बहुत ज्यादा चलना भी अपनी कल्पना से परे होता है। अपनी कल्पना से परे सोचने से मन बेलगाम घोडा हो जाता है। जीवन में जो कुछ चल रहा होता है।  वास्तविक जीवन के संसार में वो मंद पड़ जाता है। जहाँ मन को अपने वास्तविक संसार में होना चाहिये। जो सक्रीय चल रहा होता है। तब मन अपने ही कल्पना के संसार में विचरण कर रहा होता है। इससे वास्तविक जीवन का संसार बिगड़ने लगता है। जो कल्पना में चल रहा होता है। कोई बाहरी सक्रियता नहीं होने के वजह से मन बेलाग हो जाता है। सक्रीय कार्य सुस्त पड़ जाता है। बात वही हुई जरूरत से ज्यादा खाना खाने से शरीर और मन दोनों में थकान लगता है। कोई काम करने के काविल नहीं होता है। तबियत ख़राब जैसा लगने लगता है। जो काम कर रहे होते है।  उसे भी तबियत ठीक होने तक छोड़ना पड़ता है। आमतौर पर जायदा खाना खाने से जो तबियत बिगड़ता है। जल्दी ठीक हो जाता है। पर मन के ख़राब होने पर जीवन पर प्रभाव पड़ता है। आपकी कल्पना से परे होने पर मन वास्तव में ख़राब होता जाता है।  मन के ख़राब होना से किसी कार्य में मन नहीं लगना है।  मन में उदाशी होना, एकाग्रता भंग होना, बिना कारन के गुस्सा आना, किसी से बात नहीं करना, हमेशा तनाव में रहना, लोगो का बात अच्छा नहीं लगना। मन के ख़राब होने से इनमे से कोई भी प्रभाव या कई प्रभाव जीवन पर हमेशा के लिए पड़ है। हर शारीरक विमारी का इलाज डॉक्टर के पास है। पर मन के विमारी का इलाज किसी भी डॉक्टर के पास नहीं है। इसलिए आपकी कल्पना से परे कभी नहीं जाना चाहिये।


कल्पना का अर्थ

आपकी कल्पना से परे होने अच्छा है। आपकी कल्पना से परे जीवन में सोच, समझ, बुध्दी, विवेक में संतुलन होना बहूत जरूरी है। जीवन वाही अच्छा है। जिसमे सब जरूरी क्रिया कलाप को ही लोग महत्त्व दे। जरूरत से जायदा सोचना या कुछ करना यदि जीवन के विकास में कोई करी जोर रहा है तो वो सकारात्मक है। बिना मतलब के कार्य या किसी से मिलना जुलना बिलकुल भी ठीक नहीं है। आपकी कल्पना से परे काम करने से या किसी से बात करने से व्यवस्था और मर्यादा दोनों बिगड़ता है। मन को गहरा ठेस पहुचता है। इसलिए जीवन में संतुलन बनाये रखे खुश रहे।  


मन के सोच भावानये के साथ 

व्यक्ति हर पल अपने मन में कुछ न कुछ सोच रहा होता है. पुराणी यादें को याद कर के कभी खुश होता है तो कभी दुखी होता है. वर्त्तमान में अपने उन्नति और जीवन में आगे बढ़ने के लिए सोचता है. भविष्य की चिंता में कुछ बचाने के लिए सोचता है. कभी सोचता है की कल हम क्या थे और हम क्या है? ये भी सोचता है की आने वाले समय में हम कैसे होने. व्यक्ति चाहे कुछ भी करे पर मिले हुए एकाकी समय में सोचना लगातार चलते रहता है.

 

व्यक्ति के मन के सोच कभी कभी सातवे आसमान पर भी चला जाता है.

मन की कलपनाये के साथ रहने वाला व्यक्ति का सोच कभी कभी सोच से पड़े होकर अपने मार्ग से भी अलग हो कर सोचता है. ये भी मन के कल्पना की कला है. दुखी और निराश इन्शान जब अपने जीवन में सफल नहीं हो पता है तो वो उस उर सोचने लग जाता है जो कभी जीवन में हो ही नहीं सकता है. वास्तविकता तो ये है की ऐसे सोच से उसको थोड़े समय के लिए अपने दुखी मन के भाव से अलग हो तो जाता है कल्पना के पृष्ठभूमि पर गलत और कल्पना से परे सोच भले उसे कुछ समय के लिए दिलशा दिला दे पर वास्तविक जीवन वो सोच सबसे बुरे पहलू को भविष्य में जन्म देता है. परिणाम स्वरुप वो जो सोचता है कभी करने का प्रयाश नहीं करता है जिससे खुशीके बिच में निराशा अपना जगह बनाने लग जाता है. जो अपने जीवन के पृष्ठभूमि पर कर रहा होता है उसमे सफलता से दूर होता जाता है. आने वाले समय समय में जब अपने जीवन के पृष्ठभूमि पर जब निराश होता है तो वही गलत और कल्पना से परे सोच उसके लिए दुःखदाई बन जाता है.

 

अनैतिक सोच, गलत और कल्पना से परे सोच की पृष्ठभूमि गुप्त होता है

व्यक्ति कभी दुसरे को बता नहीं पता है. ऐसे ब्यक्ति गुप्त रूप से गलत राह पकड़ कर अपने जीवन को बर्बाद भी कर लेता है इसका परिणाम उसके घर वाले पत्नी और बच्चे को ज्यादा भुगतना पड़ता है. अक्सर लोग गलत कार्य के लिए गुप्त मार्ग क प्रयोग करते है जिससे जानकर और समझदार लोगो को इसकी कभी भनक नहीं लगता है की व्यक्ति क्या कर रहा है? गलत कार्य के वजह से वो लोगो से दुरी रखने लग जाता है और समाज से भी भिन्न रहने लग जाता है जिससे समाज के लोगो के बिच उसके पहचान मिटने लग जाते और अनजान बनकर रहने लग जाता है. कहने का मतलब की कल्पना से परे सोच कभी पूर्णता की और नहीं जाता है. इस मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति अपने पहचान को छुपाने से सब जगह बचता रहता है. जिससे कारन इनके कार्य और मार्ग सिमित होते है. पर जिस दिन इनके कार्य का बखान उजागर होता है तो परिणाम समाज और शासन से भी इन्हें ही भुगतना होता है.

 

कल्पना से परे सोच जरूरी नहीं की गलत हो.

कल्पना से परे व्यक्ति कभी उस मार्ग पर चलने का प्रयाश नहीं करना है जो एक दिन निराशा का कारन ही बनता है जो सिर्फ मन को ही दुखी करता है साथ में सफलता का तो कोई अर्थ ही नहीं है जहा प्रयाश ही नहीं हुआ तो वहा सफलता कहा हो सकता है. कहने का मतलब की कल्पना से परे वो चीजे है जिसको व्यक्ति कही प्राप्त करने का प्रयाश ही नहीं करता है. कल्पना में रहकर मन को झूठी ख़ुशी देखर प्रसन्न तो हो जाता है पर उसका कोई पृष्ठभूमि नहीं बन पाता है. जिसका परिणाम सक्रीय जीवन पर भी पड़ता है वहा सफलता कम हो जाते है. सोचता कुछ और है करता कुछ और है तो परिणाम भी तो भिन्न ही निकालेंगे. ऐसे में तो वास्तविक जीवन में निराशा आना तय ही है.   


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