कल्पना का आधुनिक तरीका क्या है?
जीवन के विकाश के कल्पना में आधुनिक समय में
कल्पना का उतना ही महत्त्व है। जितना पौराणिक समय में हुआ करता था। सन्दर्भ तो सच्ची
भावना और सकारात्मक विचार धरना पर निर्भर करता है।
कल्पना करना आधुनिक समय में जो ब्यक्ति अपने
काम काज के प्रति और अपने कर्तब्य के प्रति जिम्मेवार है। उनके लिए कल्पना करना आसान है। पहले के मुकाबले कल्पना करना और खुद को प्रगतिशील विचार्धारना
में रखना पहले से आसान जरूर है।
कर्तब्य और कार्य के विकाश के कल्पना में
आज के समय में एक सबसे बड़ा समस्या है रोजगार, कम धंदा को प्रगति के रास्ते पर लाना। मनुष्य दिन प्रति दिन अपने काम धंदा में तरक्की के लिए नए नए
रास्ते निकलते रहते है। और प्रयोग करते रहते है। सबको पता है। मार्केट में खड़ा रहने के लिए और अपने बुनियाद को
मजबूत करने के लिए दिन रात मेहनत करन पड़ता है। मेहनत कभी ब्यर्थ नहीं जाता है। जैसा सोच और कार्य होता है। परिणाम वैसा ही मिलता है। उससे बड़ा समस्या तब होता है। जब मार्केट में खड़ा रहने के लिए प्रतियोगिता के दौर में सब एक
दुसरे से आगे बढ़ने में सक्रीय होते है। अब सवाल उठता है? कल्पना का आधुनिक तरीका क्या है ?
कल्पना, एकाग्रता, सोच, समझ, विवेक, बुध्दी, ज्ञान सब सक्रीय गुण है। एक दुसरे से गहरा
संबंध रखते है। किसी चीज के
प्राप्ति के लिए सक्रीय हो कर संघर्ष करने से सक्रीय गुण जरूर मददगार होते है। किसी भी चीज के प्राप्ति के लिए सक्रियता
न सिर्फ नकारात्मक प्रभाव को कम करता है। साथ में सजगता को भी बढ़ता है। एकाग्रता को कायम रखता है। सक्रियता सकारात्मक प्रभाव है। मनुष्य अपने कार्य और कर्तब्य के प्रति जीतना
सक्रीय रहेगा सफलता उतना ही साथ देगा। सक्रीय कल्पना को साकार करने के लिए सोच सबसे पहले सक्रीय होना चाहिए। जब जरूरत निश्चित और महत्वपूर्ण होता है।
तब सोच स्वतः ही सक्रीय हो जाता है। सक्रीय सोच सिर्फ मन को एकाग्र ही नहीं रखता है। मन पर नियंत्रण भी रखता है। जरूरत जब महत्वपूर्ण होता है। तब कार्य के
हर रस्ते पर प्रतियोगिता हो तो सक्रियता बढ़ाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बच जाता है। प्रतियोगिता में इस बात का हर पल एहसास रहता
है। सफलता हासिल करना है। तो जीतोर मेहनत करना ही पड़ेगा। और दूसरो से आगे निकलना है।,
जब तक सक्रीय नहीं होने। तब तक सफलता बहूत दूर है। यही कारण है की आधुनिक समय में कल्पना करना
आसान है। पौरानिक समय के अनुरूप, जीवन में कमी जरूरत
को दर्शाता है। जरूरत सक्रियता
बढ़ता है। सक्रियता कर्तब्य और
कार्य को बढ़ता है। वैसे ही सक्रीय
सोच हो तो कल्पना भी सक्रीय हो जाता है। जिसके प्रभाव से मन मस्तिष्क के काम करने का रफ़्तार बढ़ जाता
है। फिर जैसा सोच और समझ
सक्रिय होता है। परिणाम वैसा
ही मिलता है। इसका प्रभाव कार्य
और कर्तव्य पर पडता है।