Friday, January 7, 2022

मन को कैसे समझने की कोर्शिस करे की मन में उठाते विचार को एक पुस्तक में लिखते जाये. जब भी मन में कोई नारात्मक विचार आ रहा है.

मन को कैसे समझे?

मन को समझने के लिए सबसे पहले मन में उठाते विचार को परखे. 

मन के विचार किस तरफ जा रहा है? उसका मुआयना करे. मन क्यों बारम्बार एक ही चीज को सोच रहा है? उससे क्या ज़ुरा हुआ है? उसको समझने का प्रयास करे. मन के एक एक बात को फिर समझने का प्रयास करे मन किस किस बात पर ज्यादा विचार कर रहा है. हर तारीखे से समझने का प्रयास करे उसमे से क्या उचित है? क्या अनुचित है? उसको भी समझने का प्रयास करे. कोर्शिस करे की मन में उठाते विचार को एक पुस्तक में लिखते जाये. जब भी मन में कोई नारात्मक विचार आ रहा है. जिससे दुःख या तकलीफ हो रहा है तो मन के विचार को परिवर्तित करने के लिए कुछ नया सोचे जिससे नकारात्मक विचार का प्रवाह कम हो और सकारात्मक दृष्टी पर जोर देने से नकारात्मक प्रवाह कम होने लग जाता है.

 

बारम्बार उठाते मन के नकारात्मक विचार से छुटकारा पाने के लिए. 

कोई अच्छी ज्ञानवर्धक पुस्तक पढ़े जिससे मन में उठाने वाला नकारात्मक ख्याल कम हो और ध्यान ज्ञानवर्धक पुस्तक पर लगने से सकरात्मक दृस्तिकोन बढ़ने लग जाता है. सदा अच्छा सोचे अच्छा करे. मन में अच्छे विचार के लिए जगह बनाये जिससे खली पड़ा हुआ मन का घनघोर अँधेरा कम होने लग जाता है. मन में जो भी अच्छा सोचे उसको पुरे करने के का प्रयास भी करे जिससे सक्रिय भी बढ़ने लगे. मन के सकारात्मक दृस्तिकोन से बढे सक्रियता का इस्तेमाल विषय वस्तु में करे जिसका निर्माण कर रहे है. जो भी मन में अच्छा सोच रहे है उसको पूरा करने का प्रयास करे इससे नकारात्मक प्रभाव कम होने लग जाता है और सकारात्मक प्रवाह बढ़ने लग जाता है.

 

मन में सोचने और समझने के बाद जब उस क्रिया को पूरा करने का प्रयास करे.

समझने के बाद जब उस क्रिया को पूरा करने लग जाते है तो मन उस विषय वस्तु में लगने लग जाता है. मन को सदा प्रसन्न रखने का प्रयास करे इससे भी सकारात्मक प्रभाव बढ़ता है. लोगो के साथ जुड़े उनसे अच्छा बात विचार करने से ज्ञान का आयाम बढ़ता है. सकारात्मकता को बढ़ने के लिए ये बहूत जरूरी है. मन के अन्दर कुछ चल रहा है जिससे छुटकारा पाना चाह रहे है तो उस बात को किसी को बता देने से उसका प्रभाव कम होने लग जाता है. मन के अन्दर कुछ भी नहीं रखे जो दुःख या तकलीफ दे रहा है. लोगो के बिच अपने बात विचार के माध्यम से मन में बैठे ख्याल जिससे छुटकारा पाना चाह रहे है लोगो को बताने से वो कम होने लग जाता है.

दरवाजा गैस क्रेटर सोवियत रूस के वैज्ञानिकों ने परिक्षण के बाद निकर्ष नकला की इस जगह पर तेल का बहूत बड़ा भंडार है

रहस्य से भरा दरवाजा गैस क्रेटर

 

नरक का दरवाजा के नाम से मशहूर ये गैस क्रेटर तुर्कमेनिस्तान में दरवाज़ा नाम का जगह है. 

जहा ये १९७१ के बाद से लगातार एक बहूत बड़े गढ्ढे में दिन रात मीथेन गैस जल रहा है. जिससे ये एक जलते हुए बहूत बड़े कुए के सामान है. जो की नरक का दरवाजा के जैसा दिख रहा है इसलिए इसे नरक का दरवाजा भी कहा जाता है.

 

सोवियत रूस के वैज्ञानिकों ने परिक्षण के बाद निकर्ष नकला की इस जगह पर तेल का बहूत बड़ा भंडार है. 

तब विज्ञानिक वहा जाकर खुदाई करने लगे. खुदाई सुरु होने के कुछ दिन के बाद ही ये गढ्ढा निचे धस गया. जिससे २२६ फीट के व्यास और ९८ फीट गहरा बहूत बड़ा कुआ के आकर का बन गया. जिसमे से मीथेन गैस लगातार निकल रहे थे. जो की मनुष्य जीवन और पशु पक्षी के जीवन के लिए बेहद घातक थे. जिसके कारन वैज्ञानिक ने आपसी विचार से और वैज्ञानिक समूह के विचार से इसमे आग लगाना ही उचित समझा जिससे जिव, जंतु को खतरनाक मीथेन गैस जो की ज्वलनशील और जहरीला होता है. इस जहर को फैलने से बचाया जा सके.

 

वैज्ञानिकों का अंदाजा था की कुछ दिन तक मीथेन गैस जलकर ख़त्म हो जायेगा. 

पर उन्होंने आग लगाने के पीछे ये परिक्षण नहीं किया की यहाँ मीथेन गैस की मात्र कितना है. असीमित मात्र से भरा मीथेन गैस कुछ दिन के बाद भी नहीं बुझा तब से ये लगातार दिन रात जल रहा है.

 

सैलानियों और पर्यटक के लिए बाद में आकर्षण का केंद्र 

आकर्षण का केंद्र  बन गया जहा का रोमांच सिर्फ रात को देखने को मिलता है. दिन में आग जलते ही रहते है पर अँधेरी रात और सुनसान इलाका होने के कारन रात में जलते रौशनी देखने का नजारा कुछ और ही होता है.   

 

देश विदेश के पर्यटक यहाँ इस नरक के दरवाजा 

नरक के दरवाजा को तुर्कमेनिस्तान के दरवाज़ा में देखने आते है. जो की रहस्य से भरा दरवाज़ा गैस क्रेटर है. जो की अब विश्वविख्यात हो चूका है.  

अंजान बाबा के बृक्ष पर रविवार और मंगलवार को रात को १२ बजे से भीड़ लगने सुरू हो जाते है जो सुबह तक लोग बृक्ष के पत्ते के दूध लेने के लिए आते है

अंजान बाबा और अनजान बाबा बृक्ष का रहस्य

 

अंजान बाबा का बृक्ष कानपुर के दौलतपुर और गोपाल पुर के बच स्तिथ अंजान बाबा का पेड़ आज कल बेहद चर्चा में है.

 

कुछ समय पहले राउतपुर के रहने वाली दो विकलांग लड़की में से एक ने कुछ सपना देखा तब उन्होंने अपने पिता जी को बुलाकर रात में ही पेड़ के पास आये और पत्ते के दूध का उपयोग किया जिससे एक सप्ताह में उनका विकलांगता दूर हो गया, तब उस परिवार ने आकर वहा पूजा अर्चन किये और झंडा लगा दिए.

 

अभी तक इस बात का पता नहीं चला है की ये बृक्ष कौन सा है. काफी जाच पड़ताल के बाद भी अभी तक बृक्ष का रहस्य बरक़रार है. दिन में बृक्ष के पत्ते से कम दूध निकलते है और रात में ज्यादा दूध निकलते है.

 

अंजान बाबा के बृक्ष पर रविवार और मंगलवार को रात को १२ बजे से भीड़ लगने सुरू हो जाते है जो सुबह तक लोग बृक्ष के पत्ते के दूध लेने के लिए आते है. दूध से सभी प्रकार के चार्म रोग, कुष्ट रोग और सफ़ेद दाग आदि एक सप्ताह में ठीक हो जाते है.

 

अंजान बाबा का रहस्य ये है की बहूत दिन पहले कोई बाबा इस बृक्ष के पास आये थे. काफी दिन तक इस बृक्ष के निचे रहे और बाद में वह से गायब हो गए फिर दोबारा किसी को नहीं मिले. अंजान बाबा बारे में कोई कुछ नहीं जनता है.

 

ये बात कहाँ तक सत्य है कह नहीं सकते है लोगो से सुना गया है अन्धविश्वास भी हो सकता है.

अनजान बृक्ष भी यही पर सीता रपटन, मंडला, मध्य प्रदेश में है. जिस पेड़ के निचे वाल्मीकि जी तपस्या किये थे और रामायण की रचना भी इसी पेड़ के निचे वाल्मीकि जी किये थे

सीता रपटन


मध्य प्रदेश के मंडला जिला में स्थित है. पौराणिक काल में इसका नाम रामगढ था. 

जो १९५१ में नाम बदल कर डिण्डोरी कर दिया गया बाद में इसका नाम फिर से बदल कर १९८८ में मंडला कर दिया गया. अब यह जिला माडला के नाम से ही प्रसिद्ध है. सीता रपटन मंडला जिले में ही पड़ता है.

 

वाल्मीकि ऋषि का आश्रम भी इसी जगह सीता रपटन में है. 

जहा भगवन राम की पत्नी सीता को महल से निष्कासित होने के बाद वनवास के दौरान वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में रही थी जहा सीता जी ने दो पुत्र लव और कुस को यही जन्म दिया था.

 

अनजान बृक्ष भी यही पर सीता रपटन, मंडला, मध्य प्रदेश में है. 

जिस पेड़ के निचे वाल्मीकि जी तपस्या किये थे और रामायण की रचना भी इसी पेड़ के निचे वाल्मीकि जी किये थे. जिस पेड़ के बारे में आज तक कोई भी वनस्पति वैज्ञानिक कुछ भी पता नहीं लगा सके है की ये कौन सा पेड़ है? यहाँ पर ऐसे दो पेड़ है जो आमने सामने है. एक पेड़ के निचे सीता जी की कुटिया बना हुआ है जो छोटा गुफा जैसा है. दुसरे पेड़ सामने है. इसमे ३ बार पतझड़ आता है. और नया पत्ता कब आ जाता है पता नहीं चलता है. झड़ने वाले पत्ते कहाँ उड़ जाते है ये बी पता नहीं है. पत्ते झाड़ते हुए आज तक किसी ने नहीं देखा है.   

 

सीता रपटन का नाम जगह का इसलिए पड़ा था.

सीता रपटन में एक पहाड़ है जो बेहद ऊपर से निचे फिसलने वाला है. जैसा बच्चे के लिए उद्यान में खेलने के लिए बना होता है, जिसपर बच्चे चढ़कर बाद में फिसलकर निचे आते है. जो काले पत्थर का है. थोड़ी खुरदुरी पर कोई भी इसपर फिसल कर निचे आ सकता है. बच्चे और बड़े बड़े मौज से इस प्राकृतिक रपटन पर ऊपर से फिसलकर निचे आते है. पौराणिक समय में एक बार सीता जी पानी भरने के दौरान इसी जगह से मटका लेकर पीछे फिसल गई थी जिससे इसका नाम सीता रपटन पड़ा है.    

सयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित येलो स्टोन नेशनल पार्क लगभग ३५०० स्कवायर माईल में फैला हुआ है.

येलो स्टोन नेशनल पार्क

सयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित येलो स्टोन नेशनल पार्क लगभग ३५०० स्कवायर माईल में फैला हुआ है. जो ३ राज्य में मिला हुआ है. मुख्य रूप से ये व्योमिंग राज्य में पड़ता है. थोडा हिस्सा मोंताना और आयडाहो राज्य में पड़ता है. येलो स्टोन नेशनल पार्क में जाने के लिए पाच रस्ते है जिसे उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पशिम और उत्तर पूर्व से पार्क में दाखिल हो सकते है.

येलो स्टोन पार्क गरम पानी के झरना के लिए प्रसिद्ध है. लगातार कुछ समय रुक रुक कर गरम पानी में से वाष्प के फब्बारे निकलते रहते है. जिन्हें ओल्ड फेथफुल कहा जाता है. जहा पर बहूत सरे गरम पानी के झील और झरना है जो पुरे क्षेत्र में फैला हुआ है.

फायरहोल नदी और मायरिअद क्रीक के पास मौजूद ओल्ड फेथफुल गीजर पास मौजूद झरना और गीजर जिन्हें अलग अलग नाम दिए हुए है.

जंगली जानवर को देखने के लिए ये एक प्राचीन पार्क है जो दुनिया में पहला पार्क का दर्जा मेल हुआ है. दुनिया में सबसे ज्यादा ईसी पार्क के क्षेत्र है जो तीन राज्य के सीमा के अन्दर दाखिल है. अनुपन दृश्य और मनोहारी छवि निकलने के लिए दुनिया भर से लोग येलो स्टोन नेशनल पार्क में घुमने और मजा लेने जाते है.

Thursday, January 6, 2022

ज्ञान हमें सिखाता है की विश्वास हमें बहुत सोच समझकर करना चाहिए

कोई विश्वास तोड़े तो उसका भी धन्यवाद करना चाहिए, क्योकि वही हमें सिखाता है की विश्वास हमें बहुत सोच समझकर करना चाहिए.

 

विश्वास एक बहूत बड़ी चिज है. इसपर पूरी दुनिया कायम है. 

आमतौर पर बगैर सोचे समझे जो मन को अच्छा लगा तो उस पर विश्वास कर लेते है. परिणाम जब बाद में कुछ और निकलता है तो ज्ञान होता है की हमने क्या कर बैठा. इससे अपना ज्ञान ही बढ़ता है साथ में समझ भी बढ़ता है.

 

समझदारी का एहसास होता है.

मन चलायेमान होता है. हर किसी चीज को अपने तरफ आकर्षित करता है. भले बाद में दिल टूट जाये तो पता चलता है की हृदय पर कितना बड़ा आघात लगा है. फिर भी मन विश्वास करने से हटता नहीं है ये ज्ञान ही है. इससे समझ बढ़ता है की क्या सही है? क्या गलत है? मन सही गलत नहीं समझता है. उसे जो अच्छा लगे उस तरफ आकर्शित हो ही जाता है. गलती करने से ही विवेक बुद्धि बढ़ता है और सही गलत का अनुमान लगता है. एक बार गलती हो जाने के बाद उस गलती का एहसास हो जाता है और बाद में वो गलती दोबारा नहीं होता है.

स्वार्थी लोग जब देखते है की अब उनका बुरा समय आ गया है

जो लोग आपका वक़्त देखकर इज्जत दे, वो आपके अपने कभी नहीं हो सकते है. वक़्त देखकर तो मतलब पुरे किये जाते है, रिश्ते नहीं निभाए जा सकते है.

 

वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता है कभी ख़ुशी कभी गम. 

ये जीवन का ज्ञान है. समय के अनुसार लोग मिलते है और बिछरते भी है. कुछ मदद करते है तो कुछ मज़बूरी का फायदा उठाते है. स्वार्थी लोग अक्सर भले इन्सान के बुरे वक़्त का फायदा उठाकर उससे अपना उल्लू सीधा करने में लग जाते है. जितना हो सकता है उसका फायदा उठाने के बाद चले जाते है. स्वार्थी इन्सान का काम ही यही है. ऐसे लोग अक्सर उन लोगो को ढूंडते रहते है जिनसे कुछ न कुछ हमेशा मिलते रहे. खुद के फायदे के अलावा उनका कोई व्यवहार नहीं होता है. सुख के पल में वो हमेशा साथ देते है. यहाँ तक की गुलाम भी बनाने में उन्हें शर्म नहीं आती है. उनका कर्म सदा दुशारो से फायदा उठाना ही होता है.

 

स्वार्थी लोग जब देखते है की अब उनका बुरा समय आ गया है. 

ऐसे गायब हो जाते है जैसे गधे के सिर से सिंग जैसे उनसे कोई मतलब ही नहीं हो. उनके येहशान और मदद के कोई महत्त्व नहीं रखते है. 

 

कर्जदार तो समझना दूर की बात उन्हें सुक्रिया तक नहीं कहते है. 

मददगार के कमजोरी का फायदा उठा कर उनको लुटते रहते है. ऐसे लोग कभी भी रिश्ता रखते है, सिर्फ अपने फायदे के लिए.

 

रिश्ते के काविल वो लोग होते है जो सुख या दुःख में सदा साथ दे. 

सच्चे रिश्ते की पहचान तो तब होती है. जब कोई अपने दुःख में साथ दे. तभी रिश्ता कारगर और सच्चा होता है. सच्चे लोग न केवल रिश्ता निभाते है बल्कि समय समय पर एक दुसरे की खोज खबर भी लेते रहते है.

 

भले दूर देश में ही क्यों न हो पर जब मन में आये फ़ोन कर के हाल चाल लेते रहते है. उहे वास्तविक रिश्ते की कदर होती है. रिश्ता कैसे निभाया जाता है? हरेक पहलू उन्हें मालूम होता है. सुख हो या दुःख हो कभी साथ नहीं छोड़ते है.

 

बेटा एक समय अपने माँ से रिश्ता तोड़ सकता है. 

ऐसे लोग देखे भी गए है. पर ऐसी माँ सायद ही कोई होगी जो अपने बेटे से मतलब नहीं रखती हो. बेटा भले माँ को भूल जाये पर माँ अपने बेटे को कभी नहीं भूलती है. सुख हो या दुःख माँ को हमेशा अपने बेटे की फिक्र लगा रहता है, भले वो कही भी रहे. 

 

जिस माँ का बेटा सुख या दुःख में अपने माँ की फिक्र रखता है. 

उनके हर तकलीफ की खोज खबर रखता है. भले वो बहूत दूर ही क्यों न अपने माँ से रहता हो. इससे उसके माँ को बहूत खुशी मिलती है. जिस घर में ऐसे रिश्ते है तो वो परिवार सफल होता है और माँ बनना सफल कहलाता है. ये है सच्चे रिश्ते की पहचान.   

Wednesday, January 5, 2022

समस्या क्या होता है? हर समस्या का समाधान स्वयं के पास ही होता है.

सूझ बुझ से अपनी समस्या का समाधान सिर्फ अपने पास ही होता है, दूसरो के पास तो केवल देने के लिए सिर्फ सुझाव होते है.

 

सूझ बुझ से समस्या का समाधान अपने पास ही होता 

किसी काम में या किसी विषय पर फस जाना और कोई रास्ता नहीं निकलता है की वो काम पूरा कैसे हो. ज्ञान और तजुर्बा होने के बाबजूद भी जब सब कुछ धरा रह जाता है और कोई विकल्प नहीं रहता है. ऐसे में समस्या खड़ा होना लाजमी है.

 

समस्या कहाँ से होता है?

ज्ञान का सही इस्तेमाल नही होने से समस्या खड़ा होता है. तजुर्बा बहूत बड़ी चीज है यदि तजुर्बा का सही ढंग से इस्तेमाल नहीं हुआ तो भी समस्या खड़ा हो जाता है. विषय की बरिकियत को ठीक से नहीं समझने से समस्या खड़ा हो जाता है. गलत समझ से भी समस्या खड़ा हो जाता है. कई बार किसी काम में ठीक से मन नहीं लगने से और इधर उधर ध्यान भटकने से भी जो एकाग्रता भंग होता है इससे भी समस्या खड़ा होता है.

 

सूझ बुझ से किये गए कार्य में हर समस्या का समाधान स्वयं के पास ही होता है.

विषय को ठीक से समझ कर सूझ बुझ से किये गए कार्य में सफलता मिलता है. किसी भी कार्य या विषय में मन का लगाना बहुत जरूरी है इससे एकाग्रता बढ़ता है जो सफलता की निशानी है. इससे विषय से हटकर मन इधर उधर नहीं भटकता है. काम सफल होता है. जटिल कार्य या विषय को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत और बरिकियत का अनुभव की आवश्यकता होता है. इन्सान जीवनभर अपने और दुसरे के अनुभव से कुछ न कुछ दिन प्रतिदिन सीखता ही रहता है जो तजुर्बा बनकर नये सृजन का निर्माण करता है.

 

कोई जरूरी नहीं की दिय गया कार्य एक ही पद्धति से हो.

दुसरे जरिये या ज्ञान से भी पूरा होता है तो नया तजुर्बा जन्म लेता है. यही प्रगति की निशानी भी है. इससे काम सरल और कम समय में भी पूरा होता है जो दूसरो के लिए प्रेरणा का काम करता है. एक रास्ता बंद हो रहा है तो कही न कही से दुसरे रास्ता स्वयं खुलने लग जाता है. ज्ञान और तजुर्बा सही ढंग से कार्य कर रहा है तो दूसरा रास्ता स्वयं खुल जाता है. 

 

विकत परिस्तिथि में समस्या होने पर क्या होता है?

कोई दुसरा, अपने या सुभचिन्तक अपने को रास्ता ही बता सकता है या अच्छा विचार दे सकता है. उस कार्य को तो स्वयं को ही पूरा करना होता है. विपरीत परिस्तिथि में दूसरो के पास केवल देने के लिए सिर्फ सुझाव ही होते है. जिससे मार्ग प्रदर्शन मिलता है. कार्य तो स्वयं को करना होता है.

धूर्त ये समझे की मैं जित गया हूँ और सामने वाला मेरे दर से हार गया है तो भी कोई बात नहीं है.

समझदार व्यक्ति अपनी समझदारी के वजह से चुप हो जाते है. मुर्ख को लगता है कि मेरे दर के वजह से चुप हो गया है.

 

समझदारी सरल व्यक्ति के सकारात्मक गुण है.

कभी कभी ऐसा भी होता है की कुछ मामले में चुप रहने में ही भलाई है. भले चुप रहने से अपना कुछ नुकसान हो रहा तो भी फिक्र करने की जरूरत नहीं है. ज्ञानवान व्यक्ति उसे दोबारा अर्जित कर सकते है. पर धूर्त व्यक्ति से किसी विषय वस्तु पर उलझना कभी भी ठीक नहीं होता है. ज्ञान सकारात्मकता को बढ़ावा देता है. अज्ञान अंधकर की ओर धकेलता है. जिससे निकल पाना इतना आसन नहीं होता है.

 

ज्ञान ही साझदारी है, और समझदारी ही ज्ञान है.

ज्ञान और समझदारी एक दुसरे से ऐसा संबंध रखते है मनो ये दोनों एक दुसरे के लिए ही बने हो. जिनके अन्दर समझदारी है वही ज्ञानी भी है ऐसा समझना चाहिए. समझदारी कभी भी नहीं कहता है की नासमझ बनो. जो काम शांति से बन सकता है उसमे उलझने की कोई जरूरत नहीं है. यही व्यक्तित्व में मर्यादा भी होना चाहिए. जो काम सुलह से बन सकता है उसमे बहस करने से कोई मतलब नहीं है. बहस करने में शक्ति परिक्षण होता है. शक्ति का दुरूपयोग बिलकुल भी ठीक नहीं है इसके स्थान पर शक्ति का सकारात्मक उपयोग होना चाहिए. जिससे मन को शांति मिले और सुलह कामयाब हो सुलह करने में भले अपना कुछ जाता है तो भी कोई बात नहीं है. अपने पास शक्ति है तो वो दोबारा प्राप्त किया जा सकता है. पर एक तुच्छ वस्तु के लिए किसी धूर्त से बहस करना बिलकुल भी ठीक नहीं है.

 

धूर्त ये समझे की मैं जित गया हूँ और सामने वाला मेरे दर से हार गया है तो भी कोई बात नहीं है. 

जगत विदित है की नकारात्मक प्रवृति वाले लोग के पास शक्ति ज्यादा होता है साथ में उसके शक्ति भी सक्रीय होते है पर वो किसी के भले के नहीं हो सकता है. अच्छाई के लिए तो बिलकुल भी नहीं होता है. आमतौर पर ऐसे लोग जित ही जाते है. चुकी एक भला इन्सान गलती कभी नहीं करता है उसके अन्दर सहनशीलता अपार होता है. वो कुछ खो कर भी बहूत कुछ प्राप्त कर लेता है इससे उसका ज्ञान ही बढ़ता है. सबसे बड़ी बात ये है की उसके हृदय में ख़ुशी और उत्साह के लिए जगह होता है. जिसे वो कभी भी ख़राब नहीं कर सकता है.

 

इसके विपरीत धूर्त व्यक्ति निर्दय, क्रोधी, जिसके मन में दूसरो से लेने और छिनने की भवन होता है.

जो दिन प्रति दिन बढ़ता ही जाता है. संभव हो तो ऐसे धूर्त लोगो को सदा निरादर करे इससे दुरी बना के रखे. किसी भी तरह से उससे उलझे नहीं. ऐसे लोगो से कोई मतलब नहीं रखे. यदि ऐसे लोगो को सजा देने या दिलाने में सक्षम है तो ऐसा जरूर करे. इससे समाज कल्याण भी होगा धीरे धीरे बुराई भी घटने लगेगा. 

मन में ईस्वर का नाम और बगल में छुरी ऐसे भी व्याख्या है.

दिलो में वही बसते है जिनके मन साफ़ होसुई में वही धागा प्रवेश करता है, जिसमे कोई गाठ नहीं हो.

 

सच्चे मन की व्याख्या उस धागा से कर सकते है, जिसमे कोई गाठ नहीं हो. बिलकुल सीधा साधा सरल सहज होने पर ही मन शांत और उत्साही होता है. जिसे किसी को भी एक नजर में अच्छा लगने लग जाता है. वो सबके दिलो पर राज करता है. सच्चा और सरल होना ये बहूत बड़ी बात है.

 

मन में ईस्वर का नाम और बगल में छुरी ऐसे भी व्याख्या है.

उन लोगो के लिए जो होते कुछ और है, पर दखते कुछ और ही. ऐसे लोग न जल्दी किसी के दिल में बसते है और नहीं समझ में आते है. ये कब क्या कर बैठेंगे. ऐसे लोगो के पास शक्ति अपार होती है. पर वो कभी भी सकारात्मक पहलू के लिए नहीं होते है. हमेशा कुछ न कुछ खुरापाती ही करते रहते है. ऐसे लोगो से बच कर रहे तो उतना ही अच्छा है.

 

मन के हारे हार और मन के जीते जित.

जिनको किसी से कुछ मिले नहीं तो भी खुश और कुछ मिले जाये तो भी खुश. संतुलित व्यक्ति सरल और सहज होते है. वो कुछ भी करते है भले उसमे कोई फायदा हो या न हो पर मन में आ गया तो वो कर गुजरते है. इससे मन को शांति और उत्साह महशुस होता है. अच्छा करने वाला अच्छाई के लिए ही जीते है. कुछ भी करते है. वो अच्छाई के लिए ही होता है. इसलिए ऐसे सरल व्यक्ति किसी के दिल में एक वर में बैठ जाते है. जिनका प्रसंसा और जिक्र हमेशा होता रहता है.

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