Friday, January 14, 2022

अनुशासनात्मक ज्ञान का मुख्य पहलू जो स्वयं को अपने नियम के तहत चलाना होता है जो मनुष्य अपने जीवन में कुछ नियम का पालन करता है

अनुशासनात्मक ज्ञान प्रकृति और कार्यक्षेत्र में मानव का विकाश 

(Disciplinary Knowledge Nature and Scope)


अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका में मानव जीवन 

(Nature and role of disciplinary knowledge)

अनुशासनात्मक ज्ञान का मुख्य पहलू है। स्वयं को अपने नियम के तहत चलाना होता है। जो मनुष्य अपने जीवन में कुछ नियम का पालन करता है। जिसके अनुसार अपना दिनचर्या निर्धारित करता है। उसको अनुशासनात्मक ज्ञान कहते है। स्वयं के ऊपर अनुशासन कर के सुबह जल्दी उठता है, जो जरूरी कार्य है, उसको पूरा कर के अपने काम धाम में लग जाता है। जो भी कार्य करता है स्वयं के बनाये हुए नियम से ही करता है। भले वो नियन दूसरो को अच्छा लगे या नहीं लगे पर अपने नियम पर चलना ही ज्ञान है। अनुशासनात्मक ज्ञान के तहत स्वयं का नियम सकारात्मक होना चाहिए। तभी अनुशासन बरक़रार रहता है। नियम सकारात्मक होगा तो सब अच्छा और समय पर होगा। सुबह जल्दी उतना। स्नान आदि करके दिनचर्या करना। नास्ता समय पर करना। अपने काम पर समय पर जाना। दोपहर का भोजन समय पर खाना। अपने काम काज को नियम के तहत कायदे से करना। लोगो से सकारात्मक हो कर मिलना। अच्छा व्यावहार करना। माता पिता की सेवा करना। बच्चो के पढाई लिखाई का ख्याल रखना। घर में सबके आदर करना। सभी से प्यार से बात करना। बड़े बुजुर्गो को आदर भाव देना। मन सम्मान देना। मेहनतकश बने रहना। रात का भोजन समय से खाना। समय से रात को सोना। ताकि दुसरे दिन फिर नए दिन की सुरुआत करना होता है। अनुशासनात्मक ज्ञान के तहत ऐसा दिनचर्या रख सकते है।

 

अनुशासनात्मक ज्ञान का अर्थ में प्रकृति के नियम बहूत अटल होते जाते है 

(Laws of nature are very constant)

जिसको कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है। समय समय पर प्रकृति में परिवर्तन स्वयं होता है। पर जल्दी प्रकृति में परिवर्तन नहीं होता है। कुछ परिवर्तन होता है। जैसे शर्दी के बाद गर्मी। गर्मी के बाद बरसात। फिर बरसात के बाद फिर शर्दी और दिन-रात ये मुख्या प्रकृति के परिवर्तन है। पर ये भी प्रकृति के नियम ही है। जो सबको संतुलित कर के रखता है। वैसे ही मनुष्य के नियम मनुष्य को संतुलित और संघठित रखता है। संगठन और संतुलन में किसी  परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होता है। मनुष्य के अन्दर सकारात्मक ज्ञान होगा तो ये स्वयं ही चरितार्थ होगा। चुकी मनुष्य को ज्ञान ही नियम बनाने के लिए प्रेरित करता है। जब प्रकृति के नियम संतुलित है। तो मनुष्य के भी नियन संतुलित हो कर संघठित होने चाहिए। तभी मनुष्य का जीवन चलेगा। मनुष्य के जीवन के  बहूत सरे आयाम होते है। समस्त आयाम को संतुलित होकर संघठित होना ही एक सफल ब्यक्ति की पहचान है।

 

कार्यक्षेत्र में अनुशासन बहूत जरूरी आयाम रखता है 

(Discipline is a very important dimension in the workplace)

अपने जीवन में अनुशासित होने के साथ साथ प्रकृति के नियम के अनुसार आगे बढ़ना। जिसके जरिये ब्यक्ति उपार्जन करता है। कमाता खाता है। जिसके जरिये अपने परिवार का भरण पोसन करता है। कार्यक्षेत्र में कामगार और कारीगर को काम धाम देता है। जीवन में अनुशासन के साथ साथ कार्यक्षेत्र में भी अनुशासन होना बहूत  अनिवार्य है। जब तक कार्यक्षेत्र में अनुशासन नहीं होगा। तब तक कार्यक्षेत्र में सफलता नहीं मिलेगा। अनुशासित ब्यक्ति का व्यावहार संतुलित, व्यवस्थित और संघठित होता है। जिससे कार्यक्षेत्र में संपर्क ज्यादा बनता है। बात विचार संतुलित होने से संपर्क करने वाले को अच्छा लगता है। जिससे संपर्क में आने वाला ब्यक्ति आकर्षित होता है। प्रतिष्ठान में अछे लोग जुड़ते है। जिससे कार्यक्षेत्र का विकाश और उन्नति होता है। कारीगर और कामगार के बिच संतुलन बना रहता है। सबके हित का ख्याल रखा जाता है। जिससे कारीगर और कामगार अछे से अपना काम मन लगाकर करते है। अनुशासनात्मक ज्ञान कार्यक्षेत्र में इसलिए जरूरी है। तब जा कर अनुशासित ब्यक्ति सफल और विकशित होता है।


अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति से जीवन प्रभावित होता है 

(Nature of Disciplinary Knowledge)

अनुशासनात्मक किसी बस्तु को बिलकुल उसी रूप में पहचानना ही ज्ञान है वह किस रूप में है? कैसा दिख रहा है? उसके गुन क्या है? ये अनुशासनात्मक ज्ञान के पहलू है। इसी प्रकार जीवन को भी अपने उसी रूप में पहचानना चाहिए। हम अपने जीवन में क्या कर रहे है? क्या सोच रहे है? अपना जीवन कैसा है? क्या जीवन कल्पना के अनुरूप चल रहा है या किसिस और दिशा में आगे बढ़ रहा है? उस और ध्यान दे कर जीवन अपने सही मार्ग में अनुशासन के अनुरूप ढाल कर आगे बढ़ना ही वास्तविक जीवन है।   


स्कूली विषय में अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका हिंदी भाषा में 

(Nature and role of disciplinary knowledge in school subject in Hindi)

स्कूल के विषय में अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और भूमिका के द्वारा विद्यार्थी के अन्दर ज्ञान का विकाश स्कूल के विषय बच्चो के ज्ञान के विकाश के लिए होता है जिससे बुद्धि सक्रीय हो और एकाग्रता से किसी कार्य के करने के लिए मन लगे। विषय के ज्ञान में जीवन के उपलब्धि के रहस्य छुपे रहते है। जिसे पढ़कर और शिक्षक से समझकर जीवन का गायन भी बढ़ता है। हिंदी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषा के विषय में भाषा के सिखने के साथ साथ जीवन के उतार-चढ़ाव, सुख-दुःख, उन्नति-अवनिति का ज्ञान कहानी के माध्यम से सिखाया जाता है। किसी भी प्रकार के माहौल में जीवन यापन कैसे होता है? सभी शब्द भेद भाषा के किताब के माध्यम से बच्चे को बचपन में सिखाया जाता है। जिससे आगे के जीवन में आने वाले परेशानी दुःख तकलीफ में कैसे जीना होता है इन सभी बात का ज्ञान भाषा के किताब से ही शिक्षक के द्वारा कराया जाता है

 

वास्तविक जीवन के ज्ञान में अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और जीवन के भूमिका का बहूत बड़ा योगदान है

(Nature of disciplinary knowledge and the role of life have a great contribution to the knowledge of life)

 

बचपन से बच्चो में अनुशासन के प्रति सजगता का अभ्यास माता पिता बड़े बुजुर्ग और अध्यापक के द्वारा कराया जाता है। जिसे बच्चे का मन कही और किसी अनुचित विषय में न लग जाये। इन सभी बातो को उजागर करने के लिए बच्चे के भाषा के किताब का चयन कर के शिक्षा विभाग के द्वारा बच्चो के उम्र और कक्षा के अनुसार डिजाईन और प्रकाशित किया जाता है। कौन से उम्र में कौन सा ज्ञान आवश्यक है ये ये विशेषग्य के द्वारा ही चयनित किया जाता जिसे बच्चे का मन भाषा के किताब में लगा रहे है। छोटे बच्चो को कार्टून के माध्यम से सही और गलत का पाठ भाषा के किताब में छपे रहते है जिसे पढने, लिखने और याद करने से सही गलत के ज्ञान का विकाश होता है। बच्चो के उम्र बढ़ने के साथ साथ कक्षा में भी उन्नति होती है। इसके अनुसार आगे के भाषा के किताब में ज्ञान का आयाम और समझदारी का दायरा बढाकर बच्चो में जीवन के प्रतेक पहलू को उजागर कर के शिक्षा में दायरा बढाकर बच्चो को ज्ञान कराया जाता है।  

 

जीवन के ज्ञान के आयाम में अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और जीवन के भूमिका का अध्ययन

(Study of the nature and role of life in disciplinary knowledge in the dimension of life)

 

बच्चो के उच्च कक्षा में जाने के साथ साथ उम्र के बढ़ते आयाम में शिक्षा में जरूरी के अनुसार विषय का चयन में गणित जिसे जोड़ने, घटाने, गुना और भाग करने के विभिन्न तरीके का विकाश कराया जाता है जिससे बच्चे हिसाब किताब के मामले में भी होशियार और बुद्धिजीवी बने अंक गणित और रेखा गणित से विषय वास्तु के मापने समझने बनाने का अभ्यास कराया जाता है। जिससे बच्चे अपने मापन पद्धति में किसी भी प्रकार के खरीद फरोक्त में कमी महाश्सुश नहीं करे और हिसाब किताब सही से समझ सके। ऐसे ही विज्ञान और उसके तीन भाग जिव विज्ञानं, प्राणी विज्ञानं, भौतिकी विज्ञानं और रसायन विज्ञानं के जरिये विषय वस्तु के समझ और ज्ञान कराया जाता है। विषय वस्तु का ज्ञान से ही बच्चो में समझ का आयाम बढ़ता है। गुणधर्म प्रकृति स्वभाव, जीवित और निर्जीव प्रकृति का अध्यन भी इसी विषय इ होता है। प्राणी का ज्ञान से समझ में आता है। कौन से प्राणी खतरनाक और कौन से प्राणी फायदेमंद है? उसके स्वभाव और प्रकृति समझाया जाता है। ऐसे ही समाज में क्या हो रहा है? पौराणिक और वर्तमान में क्या अंतर है? विशिस्थ लोगोग ने क्या किये है? भोगोलिक प्रकृति क्या है? ये समझ शास्त्र में समझाया जाता है।   



वास्तविक जीवन संघर्स से ही भरा हुआ है. ये जरूरी नहीं की कठिन परिश्रम के बाद पूरा सफलता मिले

जीवन और मौसम में अंतर


जीवन और मौसम लगभग एक सामान ही होते है. 

जीवन में सुख दुःख होता है तो मौसम में भी पतझड़ और वसंत बहार होते है. जीवन में कभी कभी बड़े दुःख का भी सामना करना पड़ता है जैसे इस कोरोना महामारी में सब भुगते थे वैसे ही मौसम में भी चक्रवाती तूफ़ान भी बहूर बड़ा नुकसान पहुचाता है. बढ़ और सुनामी में बहूत कुछ बर्बाद हो जाता है.

 

जीवन में जैसे सुख के पल कम समय के लिए होते है. 

वैसे ही मौसम में वसंत ऋतू ही एक ऐसा समय है जो सबको अच्छा लगता है. मौसम में लगातार परिवार्तन लोगो को झेलना पड़ता है वैसे ही जीवन में संघर्ष सबको करना पड़ता है.

 

प्रकृति के नियम सबके लिए एक सामान है. 

प्रकृति के नियम को सबको समझना चाहिए. जैसे जीवन में कभी-कभी ख़ुशी, गम, सुख, दुःख लगा रहता है. वैसे ही मौसम में समय दर समय परिवर्तन होता रहता है. कभी लोगो को अच्छा लगता है तो कभी लोगो को परेशान भी करता है.

 

जीवन में कभी ऐसा भी होता है की बहूत परिश्रम में किया गया कार्य हर समय में कोई न कोई रूकावट आता ही रहता है. 

अंत में वो कार्य ख़राब भी हो जाता है. वैसे ही इस साल बिहार भारत में मौसम के कारन धान के खेती पर बहूत बड़ा प्रभाव पड़ा. सुरु में धान के बोआई में पानी नहीं बरसा, जिससे बिज ठीक से हुए नहीं मौसम भी बहूत गरम था. लोगो ने मशीन से पानी चलाये खतो में, कैसे भी कर के धान को उगाने का प्रयास किया. अंत में कुछ धन हुए पर खेत में धान के कटाई के बाद सूखने के दौरान तेज बारिस और पानी बरस जाने से सारे पके हुए धान खेत में उग गए. जिससे कारन सब धान कि खेती ख़राब हो गये.

 

वास्तविक जीवन तो संघर्स से ही भरा हुआ है. 

ये जरूरी नहीं की कठिन परिश्रम के बाद पूरा सफलता मिले. हो सकत है मन के अनुसार सफलता नहीं मिले पर एक किसान के जीवन को देखिये उनके जीवन में ख़ुशी के पल कम और पतझड़ ज्यादा होता है. इसका मतलब किसान खेती कारन नहीं छोड़ते है. क्योकि खेती ही उका जीवन होता है. यदि वो खेती नहीं करेंगे तो मनुष्य को भोजन कहाँ से मिलेगा. इसलिए जीवन में चाहे जीतना भी संघर्स करना पड़े, इससे भागना नहीं है. सफ़लत और असलता तो अपने कर्मो का होता है. जीवन सक्रीय होना चाहिए. आज पतझड़ है तो कल वसंत जरूर आयेगा.

 

जीवन के आयाम में सबको सब सुख प्राप्त नहीं है. 

किसी को कम तो किसी को ज्यादा. इससे घबराकर जीवन से भागना नहीं है. जीवन में आने वाले समय में सभी संघर्स को झेलना ही जीवन है. और यही जीवन है.

नेल्लईअप्पार मंदिर तमिलनाडु राज्य के तिरुनेलवेली में स्थित है। मंदिर में भगवन शिव की मंदिर ७वी शताब्दी में पांड्यों के द्वारा बनाया गया था।

खंभों से तबला के धुन जैसी मधुर ध्वनि निकलता है।


नेल्लईअप्पार मंदिर तमिलनाडु राज्य के तिरुनेलवेली में स्थित है

मंदिर में भगवन शिव की मंदिर ७वी शताब्दी में पांड्यों के द्वारा बनाया गया था। भगवान शिव की एक प्रतिमा इस मंदिर में स्थापित है। नेल्लईअप्पार मंदिर अपनी खूबसूरती और वास्तु कला का नायब नमूना है। मंदिर के खम्बे से संगीत के स्वर निकलते है। पत्थरो के बने खम्बे जो अन्दर से खोखला है ये बात का पता तब चला जब अंग्रेजो ने ये पता लगाने के लिए की स्वर कहाँ से आते है? आजादी के पहले इसके दो खम्बे को तोड़े थे तो वो अन्दर से खोखला पाया गया था

 

 

नेल्लईअप्पार मंदिर का घेरा 14 एकड़ के क्षेत्र के चौरस फैला हुआ है

मंदिर का मुख्य द्वार 850 फीट लंबा और 756 फीट चौड़ा है मंदिर के संगीत खंभों का निर्माण निंदरेसर नेदुमारन ने किया था जो उस समय में श्रेष्ठ शिल्पकारी थे मंदिर में स्थित खंभों से मधुर धुन निकलता है जिससे पर्यटकों में कौतहूल का केंद्र बना हुआ है। इन खंभों से तबला के धुन जैसी मधुर ध्वनि निकलता है। आप इन खंभों से सात तरह के संगीत की धुन सा, रे, ग, म, प, ध, नि जैसे धुन पत्थरो के स्तम्ब को ठोकने पर निकलते हैं।

 

नेल्लईअप्पार मंदिर की वास्तुकला का विशेष उल्लेख है कि एक ही पत्थर से 48 खंभे बनाए गए हैं 

सभी 48 खंभे मुख्य खंभे को घेरे हुए है। मंदिर में कुल 161 खंभे हैं जिनसे संगीत की ध्वनि निकलती है। आश्चर्य की बात यह है कि अगर आप एक खंभे से ध्वनि निकालने की कोशिश करेंगे। तो अन्य खंभों में भी कंपन होने लगती है

 

नेल्लईअप्पार मंदिर के पत्थर के खंभों को तीन श्रेणी में बिभाजित गए हैं

जिनमें पहले को श्रुति स्तंभ, दूसरे को गण थूंगल और तीसरे को लया थूंगल कहा जाता है इनमें श्रुति स्तंभ और लया के बीच आपसी कुछ संबंध हैजिससे श्रुति स्तंभ पर कोई ठोकता है तो लया थूंगल से भी आवाज निकलता है उसी प्रकार लया थूंगल पर कोई ठोकता है तो श्रुति स्तंभ से भी ध्वनि निकलता है

Thursday, January 13, 2022

गरीब स्थान मंदिर ३०० साल पुराना है दन्त कथाओ के अनुसार इस मंदिर के जगह पर एक समय ७ पीपल के पेड़ थे

गरीब स्थान मुजफ्फरपुर बिहार

(Garibsthan Muzaffarpur Bihar) 


मान्यताओ के अनुसार गरीब स्थान मनोकामना शिव जी के शिवलिंग यहाँ स्थापित है. बिहार के देव घर के नाम से भी प्रचलित है.

 

श्रावण महीने में पूरा महिना यहाँ भक्तो और श्रधालुओ का भीड़ लगा रहता है. डाकबम और बोलबम वाले और कवर उठाने वाले शिव भक्त हाजीपुर, सोनपुर, पटना में स्थित गंगा नदी जो पहलेजा में पड़ता है वहां से गंगा जल लेकर ७० किलोमीटर पैदल चल कर २४ घंटे में गरीब स्थान मुज़फ्फरपुर पहुचते है. शिव भक्त बाबा को गंगा जल अर्पित करके खुद को बेहद खुशनुमा महशुशकरते है.   

 

गरीब स्थान मंदिर ३०० साल पुराना है 

दन्त कथाओ के अनुसार इस मंदिर के जगह पर एक समय ७ पीपल के पेड़ थे जिन्हें लोगो ने जब कटा तो इसमे से रक्त के जैसा कोई तरल लाल पदार्थ निकला था बाद में जमीन के मालिक को बाबा स्वप्न में दर्शन दिए थे और बताये थे की यहाँ पर एक बड़ा शिवलिंग है. खुदाई कर के शिवलिंग प्राप्त हुआ तब वहा पर शिवलिंग के स्थानपर मंदिर का निर्माण ३ शताब्दी पहले गरीब स्थान मंदिर का निर्माण हुआ.

 

अन्य दन्त कथाओ के अनुसार बहूत समय पहले वह पर एक बरगद का पेड़ था जो अभी भी है. 

बाबा के मंदिर के ठीक सामने बाये तरफ बरगद का पेड़ है. वही बाबा के मंदिर स्थान के सामने एक नंदी भी विराजमान है. कहा जाता है की इस बरगद के पेड़ को जब जमींदार कटवा रहा था तो उसमे से लाल पानी निकला था जिसके बाद पेड की कटाई रोक दी गई. खुदाई के दौरान शिव लिंग को जमीन से प्राप्त हुआ जो की क्षत बिक्षत हालत में था. फिर जमींदार को बाबा स्वप्न में आये और बताये की चुकी मेरा खुदाई एक गरीब आदमी के द्वारा हुआ है इसलिए इसे गरीब नाथ के नाम से स्थापित करो. तब यहाँ मंदिर गरीब स्थान के नाम से मंदिर बना.

 

मनोकामना पूर्ण कने वाला बाबा के कृपया से बहूत लोगो के मनवांछित इच्छा पुरे हुए है. बिहार के मुजफ्फरपुर में देवघर के नाम से प्रचलित बाबा गरीब नाथ सबके मनोकामना पूर्ण करते है.


भक्ति के रस में डूबे शिव भक्त दूर दूर से गरीब स्थान मंदिर घुमने आते है.

साल भर यहाँ शिव भक्त का ताता लगा हुआ रहता है. शादी ब्याह में मुजफ्फरपुर के गाँव में रहने वाले लोग अपने बाल बच्चे के शादी ब्याह अवसर पर विशेष सत्यनारायण भगवन की पूजा यहाँ जरूर करते है. जिसके लिए मंदिर प्रशासन के द्वारा शेष व्यवस्था मदिर पहले और दुसरे मंजिल पर किया गया है. गरिब स्थान यहाँ के लोगो के विशेष आस्था रहने से मुजफ्फरपुर के नजदीक रहने वाले लोग यहाँ दिनभर में एक बार जरूर दर्शन करने आते है. 

 

गरीब स्थान देव घर जाने के लिए 

मुजफ्फरपुर स्टेशन से इस्लामपुर या कंपनी बाग़ होते हुए १.५ किलोमीटर पड़ता है. बेहद नजदीक है. दोनों रस्ते से जाया जा सकता है.

जीवन और मन के लिए सफल जीवन के लिए बुद्धि विवेक का प्रभाव मन पर पड़ना चाहिए

जीवन और मन

(Life and mind)


जिंदगी जीवन और मन की सच्चाई है.

कल्पना मन का श्रोत है. मन कुछ और कहता है पर जीवन जिम्मेदारी का नाम है. संघर्स जीवन के लिए है. जब की मन ख्याली पुलाव खाते रहता है. जीवन दिन रात मेहनत करना चाहता है पर मन उसे ऐसा करने से रोक भी सकता है. जीवन सच्चाई और यथार्थ ही होता है पर मन आडम्बर भी कर सकता है.

 

जीवन के जरीय मन को मन को नियंत्रित किया जा सकता है.

मन के जरिये चल रहे जीवन में परिवर्तन करना आसन नहीं होता है. मन का संसार आज तक कोई नहीं समझ पाया है. जीवन को समझने का प्रयास करे तो मन जरूर समझ में आने लग जाता है.

 

जीवन का सच्चा मददगार बुद्धि विवेक ही होता है.

मन चाहे जितना सोचे पर कार्य तो जीवन में बुद्धि विवेक से ही करना चाहिए. समृद्धि के लिए मन को जीवन के अनुसार ही चलाना चाहिए. ज्यादा मन का बढ़ना समृद्धि के रास्ते में रोरा भी अटका सकता है. जीवन का सफल संघर्स तो मन पर नियंत्रण पाना ही होता है. जीवन के उत्थान के लिए मन पर नियंत्रण बहूत जरूरी है.

 

मन को उस ओर जरूर व्यस्त रखे जो जीवन यापन में कार्य कर रहे है.

मन लगाकर कार्य करना और अपने अस्तित्व को बनाये रखने में बुद्धि विवेक हर जगह साथ देता है. जीवन में कभी भी ऐसा कुछ नहीं करे की जिससे बुद्धि विवेक में कोई विकार आये. मन का भरोसा नहीं करना चाहिए, मन का तो आकर, विकार और निराकार भी होता है. पर जीवन के लिए बुद्धि विवेक एक आधार स्तम्भ होता है.

 

सफल जीवन के लिए बुद्धि विवेक का प्रभाव मन पर पड़ना चाहिए.

ऐसा कभी नही हो की मन का प्रभाव बुद्धि विवेक पर पड़े. मन स्वयं का अपना होता है पर जीवन के अंश बहूत लोगो से जुड़ा होता है जिससे जीवन चलता है. जीवन के उत्थान और सफलता के लिए बुद्धि विवेक को सक्रीय करना ही अच्छा है. 

Wednesday, January 12, 2022

बाइक चलाते समय कभी भी मोबाइल फ़ोन नहीं इस्तेमाल करना चाहिए और नहीं गाड़ी चलते समय हैडफ़ोन से कोई भी संगीत सुनना चाहिए

हेलमेट बाइकर्स के लिए कम कीमत का ब्लूटूथ हेडसेट

 

वैधानिक कारन बताऊ तो बाइक चलाते समय 

कभी भी मोबाइल फ़ोन नहीं इस्तेमाल करना चाहिए और नहीं गाड़ी चलते समय हैडफ़ोन से कोई भी संगीत सुनना चाहिए. इससे पीछे से आने वाले गाड़ी के हॉर्न नहीं सुनाई देते है. ड्राइविंग के समय चौकाने हो कर रहन पड़ता है. संगीत सुनाने से इसमे गड़बड़ी भी आ जाती है. सबसे अच्छा है की बाइक चलते समय मोबाइल का इस्तेमाल करना है तो लोकेशन को समझने के लिए कर सकते है. पर संगीत बिलकुल भी नहीं सुनना चाहिए. इससे चालक के वाहन को और दुसरे वाहन पर सवार जिंदगी को भी खतरा है.

 

एक कहावत कहा गया है "महंगा रोये एक बार और सस्ता रोये बारम्बार"

सस्ता सामान कभी उपयोग नहीं करा चाहिए इसके गुणवत्ता में डिफेक्ट और कमी हो सकती है. एक बार खर्च करे और अच्छा हैडफ़ोन ले जिससे लम्बे समय तक ठीक से चलता रहे ब्रांडेड सामान का ही उपयोग करे.

 

कोई भी सामान अच्छा गुवात्ता वाला ही ठीक होता है. 

खासकर इलेक्ट्रॉनिक सामान जिसके तरंगे भी खतरनाक होते है. हो सकता है सस्ता सामान से उत्पन्न असंतुलित तरंग कान में घुसकर मस्तिष्क को नुकशान पहुचाये. इसलिए हेड फ़ोन को बहूत सोच समझकर ही खरीदना चाहिए. ब्लूटूथ की वायरलेस तरंगे से चलते है जो की स्वस्थ के लिए बेहद खतरनाक भी हो सकता है. तरंगे संतुलित और अच्छे से संगठित किया गया है और उसके फ्रीक्वन्सी सही है तो मस्तिष्क को नुकसान नहीं पहुचायेगा.

 

सजग रहे सतर्क रहे अच्छे सामान का उपयोग करे. वाहन चलते समय हैडफ़ोन का कभी उपयोग नहीं करे.

बंदरिया बाबा के कहे अनुसार कोई भी व्यक्ति मालिक के आज्ञा के बगैर कुछ नहीं कर सकता है मनुष्य जीवन ज्ञान प्राप्त करने के लिए है

रहस्य से भरा बंदरिया बाबा


पीलीभीत का रहने वाला बंदरिया बाबा 

दो साल पहले बहराइच जिला के मिहीपुरवा सुजौली थाना रामगाँव में मोटर साइकिल से आकर एक दिन पीपल पेड़ के उपार चढ़ कर बिल्कुली उची छोटी के फुनगी पर बैठ गये. इसको देखने के लिए लोगो की भीड़ जुटाने लग गई. जहा कोई पक्षी भी अपना घोसला नहीं बनाते है. प्रशासन के कारवाही के बाद उन्हें उतरना पड़ा और उनहे सुजौली थाना में बंद कर दिया.

 

बंदरिया बाबा इसके बाद 

इलाहबाद के खासाह मोहम्मदपु के विस्नुपुर्वा गाँव मेहसी में भी ऐसे ही पीपल के पेड़ पर चढ़ गये. पहले जैसा फिर पेड़ के उची छोटी पर रात भर रहे. वहा पूजा आरती हवन किये और पूरा रात पेड़ पर ही रहे. इसके निगरानी में प्रशासन पूरी रात वही रही की बाबा कही गिर नहीं जाये या कोई अप्रिय घटना न हो. ऐसा होने के बाद लोगो वहा भी बाबा को देखने जुटने लगे.

 

बंदरिया बाबा पुनः चार महीने के बाद 

फिर बहराइच जिला के मिहीपुरवा सुजौली थाना में रामगाँव में पहुचे और पुनः वैसे ही पेड़ पर चढ़ कर पूजा अर्चना किये. बात चर्चा तब आया जब बंदरिया बाबा दोबारा बहराइच पहुचे. खुद को पीलीभीत का रहने वाला बताने वाला बाबा खुद के बारे में कुछ नहीं बताये. सिर्फ बताये की वे हनुमान जी के भक्त है और उनकी मर्जी से वे पीपल के पेड़ पर चढ़े थे. बंदरिया बाबा के इस आश्चर्यजनक कारनामा से लोग उन्हें प्रेत बाबा, भूत बाबा, नट बाबा, बंदरिया बाबा इत्यादि बुलाने लगे.

 

बंदरिया बाबा के कहे अनुसार 

कोई भी व्यक्ति मालिक के आज्ञा के बगैर कुछ नहीं कर सकता है. मनुष्य जीवन ज्ञान प्राप्त करने के लिए है. उन्होंने यहाँ तक कहा की टट्टी में पालने वाला कीड़ा भी मेरे से आगे है. मै तो हनुमान जी का एक छोटा भक्त हूँ. उनके मर्जी से ही पेड़ पर रहता हूँ. उन्होंने ये भी बात कहा की समाधी के बगैर कोई भी मनुष्य ज्ञान हासिल नहीं कर सकता है. उसके बाद चाहे तो पेड़ तो क्या हवा में भी रुक सकता है. मालिक के मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिल सकता है.

 

बंददिया बाबा के कारनामे 

प्रशासन को भी उनके कारनामे पर पूरा विस्वास हो गया. श्रद्धा और विश्वास से बंदरिया बाबा को देखने के लिए लोगो की भीड़ उमड़ने लगे. बाबा से पूछा गया की बाबा आप चार महिना काहा थे तो उन्होंने बताया की बद्री नारयण हिमालय में था और यहाँ से चित्रकूट जाना है.

 

एक आम इन्सान के जैसा दिखने वाला बंदरिया बाबा

बंदरिया बाबा  के पास इतने अद्भुत शक्ति को देखने के लिए लोगो में चर्चा होने लग गया. मिहीपुरवा सुजौली के पास ही एक हनुमा मंदिर में रहने लगे और वही एक अशोक के पेड़ के निचे अपना स्थान बाबा बना लिया. रात को उसी पेड़ की छोटी पर रहने लगे पूरा रात पेड़ की छोटी पर ही रहते थे. कुछ दिन बाद वो वह से चले गए.

Tuesday, January 11, 2022

वनस्पति विशेषग्य के अनुसार अनजान वृक्ष एडंसोनिया डिजिटाटा प्रजाति का वृक्ष है

मुजफ्फरपुर का अंजान वृक्ष

 

किंवदंती के अनुसार ये मुजफ्फरपुर का अंजान वृक्ष ३०० साल पुराना था.

प्राचीन समय में कुछ लोगो से सुना गया था की एक साधु यहाँ आये और दातुन कर के लकड़ी को यहाँ गाड दिये थे. जिससे ये वृक्ष हो गया और बढ़ने लग गया. निचे से बहूत मोटा दिखने वाला यहाँ अंजान वृक्ष दो मुख्या शाखा थे उसमे से कई छोटे छोट शाखा थे. जिसके पत्ते सेमल के जैसा था और इसमे कद्दू जैसे फल लगते थे. कनेर के जैसे फूल लगते थे. वृक्ष के छाल को काटने या छिलने के बाद इसमे से रक्त जैसा तरल पदार्थ निकालता था. बाद में यहाँ कोई साधू आये और इस पेड़ के निचे रहने लगे. बच्चे वृक्ष के फल पर पत्थर मरते थे. इस बात से व्यथित हो कर साधू ने वृक्ष को ही शाप दे दिए. जिसके बाद वृक्ष से फल आना बंद हो गया. 

 

अंजान वृक्ष औषधी गुणों से भरा था. 

पत्ते के सेवन से पेट के कई प्रकार के दुःख दूर हो जाते थे. इसके रस से चर्म रोग दूर होते थे. बाद में इस वृक्ष में लोगो के आस्था बढ़ने से कुछ लोग पूजा पाठ भी करते थे. बहूत समय पहले यहाँ पर लोगो के आस्था होने से महायज्ञ भी हुआ था. लगभग २० साल से ज्यादा हो गया है.

 

मुजफ्फरपुर कुढनी प्रखंड के अंतर्गत तुर्की पंचायत में एक गाँव है जिसका नाम चैनपुर है. तुर्की स्टेशन से बेहद करीब है. अंजान वृक्ष वही पर है. एक बालिका विद्यालय है जो वृक्ष से बिलकुल लगा हुआ है.

 

वनस्पति विसेशग्य के अनुसार अनजान वृक्ष एडंसोनिया डिजिटाटा प्रजाति का वृक्ष है. पर ये उससे अलग है.

 

दुर्भाग्यवास अंजान वृक्ष कीड़े लगने से Jan 3, 2018 को ये वृक्ष दो टुकरा में फटकार बालिका विद्यालय पर सुबह ६ बजे गिर गया. 

सौभाग्यवास स्कूल में कोई बच्चे नहीं थे बिलकुल सुबह का समय था. जिसमे वृक्ष का बहूत बड़ा हिस्सा छतिग्रस्त हो गया. फिर दोबारा ये वृक्ष २४ सितम्बर २०१९ को पूरी तरह गिर कर ख़त्म हो गया. इस तरह से ३०० साल पुराना अनजान वृक्ष अपने अंजान रहस्यों को लेकर ख़त्म हो गया.

ज्ञान का आयाम कोई न कोई तथ्य से जुड़ा होता है

तथ्यात्मक ज्ञान और विशेषताएं

 

ज्ञान का आयाम कोई न कोई तथ्य से जुड़ा होता है. जब तक ज्ञान का समझ सार्थक नहीं होता है तब तक उसका तथ्य उजागर नहीं होता है.

ज्ञान के तथ्य को समझे तो जैसे कोई काम कर रहे है उसमे होने वाला क्रिया कलाप में हर जगह कोई न कोई तथ्य जुड़ा होता है जिसको पूरा करने से वो कार्य पूरा होता है. कार्य को पूरा करने के लिए कई प्रकार के ज्ञान की आवश्यकता होता है. सभी ज्ञान के मेलजोल से जो आयाम बनता है उससे वो कार्य पूरा होता है. यद्यपि कार्य को मानव ही पूरा करता है पर जब तक समुचित ज्ञान का आयाम का अभ्यास न हो तो वो कार्य कही न कही रुक सकता है और आगे बदने में दिक्कत महशुश होने लगता है कारन ज्ञान का सही तरीके से उपयोग नहीं होना. एक कार्य को पूरा करने के लिए लगे ज्ञान में कई प्रकार के तथ्य होते है सबके अपना अपना विशेषता है. सभी का क्रम और अनुशासन भी बिगड़ जाने से कार्य में गड़बड़ी आता है. तथ्य के क्रम में परिवर्तन कभी नहीं करना चाहिए. ज्ञान उससे भी जुड़ा हुआ है.

 

तथ्य का अपना अनुशासन होता है वही से ज्ञान उजागर होता है.

Monday, January 10, 2022

Factual knowledge and characteristics dimension of knowledge is related to some fact or the other

Factual knowledge and characteristics


 

The dimension of knowledge is related to some fact or the other. Until the understanding of knowledge is meaningful, its fact is not revealed.

If one understands the fact of knowledge, then as one is doing some work, there is some fact attached to it everywhere in the activity which is completed by completing that task. To complete the task, many types of knowledge are required. The dimension that is created by the combination of all knowledge, that task is completed. Although the work is completed by human beings, but unless the proper dimension of knowledge is not practiced, then that work can stop somewhere and there is a problem in moving forward, due to the lack of proper use of knowledge. There are many types of facts in the knowledge engaged in completing a task, each has its own specialty. Due to the deterioration of everyone's order and discipline, there is a disturbance in the work. The order of facts should never be changed. Knowledge is also related to that.

 

Fact has its own discipline from which knowledge emerges.


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