Thursday, January 6, 2022

ज्ञान हमें सिखाता है की विश्वास हमें बहुत सोच समझकर करना चाहिए

कोई विश्वास तोड़े तो उसका भी धन्यवाद करना चाहिए, क्योकि वही हमें सिखाता है की विश्वास हमें बहुत सोच समझकर करना चाहिए.

 

विश्वास एक बहूत बड़ी चिज है. इसपर पूरी दुनिया कायम है. 

आमतौर पर बगैर सोचे समझे जो मन को अच्छा लगा तो उस पर विश्वास कर लेते है. परिणाम जब बाद में कुछ और निकलता है तो ज्ञान होता है की हमने क्या कर बैठा. इससे अपना ज्ञान ही बढ़ता है साथ में समझ भी बढ़ता है.

 

समझदारी का एहसास होता है.

मन चलायेमान होता है. हर किसी चीज को अपने तरफ आकर्षित करता है. भले बाद में दिल टूट जाये तो पता चलता है की हृदय पर कितना बड़ा आघात लगा है. फिर भी मन विश्वास करने से हटता नहीं है ये ज्ञान ही है. इससे समझ बढ़ता है की क्या सही है? क्या गलत है? मन सही गलत नहीं समझता है. उसे जो अच्छा लगे उस तरफ आकर्शित हो ही जाता है. गलती करने से ही विवेक बुद्धि बढ़ता है और सही गलत का अनुमान लगता है. एक बार गलती हो जाने के बाद उस गलती का एहसास हो जाता है और बाद में वो गलती दोबारा नहीं होता है.

स्वार्थी लोग जब देखते है की अब उनका बुरा समय आ गया है

जो लोग आपका वक़्त देखकर इज्जत दे, वो आपके अपने कभी नहीं हो सकते है. वक़्त देखकर तो मतलब पुरे किये जाते है, रिश्ते नहीं निभाए जा सकते है.

 

वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता है कभी ख़ुशी कभी गम. 

ये जीवन का ज्ञान है. समय के अनुसार लोग मिलते है और बिछरते भी है. कुछ मदद करते है तो कुछ मज़बूरी का फायदा उठाते है. स्वार्थी लोग अक्सर भले इन्सान के बुरे वक़्त का फायदा उठाकर उससे अपना उल्लू सीधा करने में लग जाते है. जितना हो सकता है उसका फायदा उठाने के बाद चले जाते है. स्वार्थी इन्सान का काम ही यही है. ऐसे लोग अक्सर उन लोगो को ढूंडते रहते है जिनसे कुछ न कुछ हमेशा मिलते रहे. खुद के फायदे के अलावा उनका कोई व्यवहार नहीं होता है. सुख के पल में वो हमेशा साथ देते है. यहाँ तक की गुलाम भी बनाने में उन्हें शर्म नहीं आती है. उनका कर्म सदा दुशारो से फायदा उठाना ही होता है.

 

स्वार्थी लोग जब देखते है की अब उनका बुरा समय आ गया है. 

ऐसे गायब हो जाते है जैसे गधे के सिर से सिंग जैसे उनसे कोई मतलब ही नहीं हो. उनके येहशान और मदद के कोई महत्त्व नहीं रखते है. 

 

कर्जदार तो समझना दूर की बात उन्हें सुक्रिया तक नहीं कहते है. 

मददगार के कमजोरी का फायदा उठा कर उनको लुटते रहते है. ऐसे लोग कभी भी रिश्ता रखते है, सिर्फ अपने फायदे के लिए.

 

रिश्ते के काविल वो लोग होते है जो सुख या दुःख में सदा साथ दे. 

सच्चे रिश्ते की पहचान तो तब होती है. जब कोई अपने दुःख में साथ दे. तभी रिश्ता कारगर और सच्चा होता है. सच्चे लोग न केवल रिश्ता निभाते है बल्कि समय समय पर एक दुसरे की खोज खबर भी लेते रहते है.

 

भले दूर देश में ही क्यों न हो पर जब मन में आये फ़ोन कर के हाल चाल लेते रहते है. उहे वास्तविक रिश्ते की कदर होती है. रिश्ता कैसे निभाया जाता है? हरेक पहलू उन्हें मालूम होता है. सुख हो या दुःख हो कभी साथ नहीं छोड़ते है.

 

बेटा एक समय अपने माँ से रिश्ता तोड़ सकता है. 

ऐसे लोग देखे भी गए है. पर ऐसी माँ सायद ही कोई होगी जो अपने बेटे से मतलब नहीं रखती हो. बेटा भले माँ को भूल जाये पर माँ अपने बेटे को कभी नहीं भूलती है. सुख हो या दुःख माँ को हमेशा अपने बेटे की फिक्र लगा रहता है, भले वो कही भी रहे. 

 

जिस माँ का बेटा सुख या दुःख में अपने माँ की फिक्र रखता है. 

उनके हर तकलीफ की खोज खबर रखता है. भले वो बहूत दूर ही क्यों न अपने माँ से रहता हो. इससे उसके माँ को बहूत खुशी मिलती है. जिस घर में ऐसे रिश्ते है तो वो परिवार सफल होता है और माँ बनना सफल कहलाता है. ये है सच्चे रिश्ते की पहचान.   

Wednesday, January 5, 2022

समस्या क्या होता है? हर समस्या का समाधान स्वयं के पास ही होता है.

सूझ बुझ से अपनी समस्या का समाधान सिर्फ अपने पास ही होता है, दूसरो के पास तो केवल देने के लिए सिर्फ सुझाव होते है.

 

सूझ बुझ से समस्या का समाधान अपने पास ही होता 

किसी काम में या किसी विषय पर फस जाना और कोई रास्ता नहीं निकलता है की वो काम पूरा कैसे हो. ज्ञान और तजुर्बा होने के बाबजूद भी जब सब कुछ धरा रह जाता है और कोई विकल्प नहीं रहता है. ऐसे में समस्या खड़ा होना लाजमी है.

 

समस्या कहाँ से होता है?

ज्ञान का सही इस्तेमाल नही होने से समस्या खड़ा होता है. तजुर्बा बहूत बड़ी चीज है यदि तजुर्बा का सही ढंग से इस्तेमाल नहीं हुआ तो भी समस्या खड़ा हो जाता है. विषय की बरिकियत को ठीक से नहीं समझने से समस्या खड़ा हो जाता है. गलत समझ से भी समस्या खड़ा हो जाता है. कई बार किसी काम में ठीक से मन नहीं लगने से और इधर उधर ध्यान भटकने से भी जो एकाग्रता भंग होता है इससे भी समस्या खड़ा होता है.

 

सूझ बुझ से किये गए कार्य में हर समस्या का समाधान स्वयं के पास ही होता है.

विषय को ठीक से समझ कर सूझ बुझ से किये गए कार्य में सफलता मिलता है. किसी भी कार्य या विषय में मन का लगाना बहुत जरूरी है इससे एकाग्रता बढ़ता है जो सफलता की निशानी है. इससे विषय से हटकर मन इधर उधर नहीं भटकता है. काम सफल होता है. जटिल कार्य या विषय को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत और बरिकियत का अनुभव की आवश्यकता होता है. इन्सान जीवनभर अपने और दुसरे के अनुभव से कुछ न कुछ दिन प्रतिदिन सीखता ही रहता है जो तजुर्बा बनकर नये सृजन का निर्माण करता है.

 

कोई जरूरी नहीं की दिय गया कार्य एक ही पद्धति से हो.

दुसरे जरिये या ज्ञान से भी पूरा होता है तो नया तजुर्बा जन्म लेता है. यही प्रगति की निशानी भी है. इससे काम सरल और कम समय में भी पूरा होता है जो दूसरो के लिए प्रेरणा का काम करता है. एक रास्ता बंद हो रहा है तो कही न कही से दुसरे रास्ता स्वयं खुलने लग जाता है. ज्ञान और तजुर्बा सही ढंग से कार्य कर रहा है तो दूसरा रास्ता स्वयं खुल जाता है. 

 

विकत परिस्तिथि में समस्या होने पर क्या होता है?

कोई दुसरा, अपने या सुभचिन्तक अपने को रास्ता ही बता सकता है या अच्छा विचार दे सकता है. उस कार्य को तो स्वयं को ही पूरा करना होता है. विपरीत परिस्तिथि में दूसरो के पास केवल देने के लिए सिर्फ सुझाव ही होते है. जिससे मार्ग प्रदर्शन मिलता है. कार्य तो स्वयं को करना होता है.

धूर्त ये समझे की मैं जित गया हूँ और सामने वाला मेरे दर से हार गया है तो भी कोई बात नहीं है.

समझदार व्यक्ति अपनी समझदारी के वजह से चुप हो जाते है. मुर्ख को लगता है कि मेरे दर के वजह से चुप हो गया है.

 

समझदारी सरल व्यक्ति के सकारात्मक गुण है.

कभी कभी ऐसा भी होता है की कुछ मामले में चुप रहने में ही भलाई है. भले चुप रहने से अपना कुछ नुकसान हो रहा तो भी फिक्र करने की जरूरत नहीं है. ज्ञानवान व्यक्ति उसे दोबारा अर्जित कर सकते है. पर धूर्त व्यक्ति से किसी विषय वस्तु पर उलझना कभी भी ठीक नहीं होता है. ज्ञान सकारात्मकता को बढ़ावा देता है. अज्ञान अंधकर की ओर धकेलता है. जिससे निकल पाना इतना आसन नहीं होता है.

 

ज्ञान ही साझदारी है, और समझदारी ही ज्ञान है.

ज्ञान और समझदारी एक दुसरे से ऐसा संबंध रखते है मनो ये दोनों एक दुसरे के लिए ही बने हो. जिनके अन्दर समझदारी है वही ज्ञानी भी है ऐसा समझना चाहिए. समझदारी कभी भी नहीं कहता है की नासमझ बनो. जो काम शांति से बन सकता है उसमे उलझने की कोई जरूरत नहीं है. यही व्यक्तित्व में मर्यादा भी होना चाहिए. जो काम सुलह से बन सकता है उसमे बहस करने से कोई मतलब नहीं है. बहस करने में शक्ति परिक्षण होता है. शक्ति का दुरूपयोग बिलकुल भी ठीक नहीं है इसके स्थान पर शक्ति का सकारात्मक उपयोग होना चाहिए. जिससे मन को शांति मिले और सुलह कामयाब हो सुलह करने में भले अपना कुछ जाता है तो भी कोई बात नहीं है. अपने पास शक्ति है तो वो दोबारा प्राप्त किया जा सकता है. पर एक तुच्छ वस्तु के लिए किसी धूर्त से बहस करना बिलकुल भी ठीक नहीं है.

 

धूर्त ये समझे की मैं जित गया हूँ और सामने वाला मेरे दर से हार गया है तो भी कोई बात नहीं है. 

जगत विदित है की नकारात्मक प्रवृति वाले लोग के पास शक्ति ज्यादा होता है साथ में उसके शक्ति भी सक्रीय होते है पर वो किसी के भले के नहीं हो सकता है. अच्छाई के लिए तो बिलकुल भी नहीं होता है. आमतौर पर ऐसे लोग जित ही जाते है. चुकी एक भला इन्सान गलती कभी नहीं करता है उसके अन्दर सहनशीलता अपार होता है. वो कुछ खो कर भी बहूत कुछ प्राप्त कर लेता है इससे उसका ज्ञान ही बढ़ता है. सबसे बड़ी बात ये है की उसके हृदय में ख़ुशी और उत्साह के लिए जगह होता है. जिसे वो कभी भी ख़राब नहीं कर सकता है.

 

इसके विपरीत धूर्त व्यक्ति निर्दय, क्रोधी, जिसके मन में दूसरो से लेने और छिनने की भवन होता है.

जो दिन प्रति दिन बढ़ता ही जाता है. संभव हो तो ऐसे धूर्त लोगो को सदा निरादर करे इससे दुरी बना के रखे. किसी भी तरह से उससे उलझे नहीं. ऐसे लोगो से कोई मतलब नहीं रखे. यदि ऐसे लोगो को सजा देने या दिलाने में सक्षम है तो ऐसा जरूर करे. इससे समाज कल्याण भी होगा धीरे धीरे बुराई भी घटने लगेगा. 

मन में ईस्वर का नाम और बगल में छुरी ऐसे भी व्याख्या है.

दिलो में वही बसते है जिनके मन साफ़ होसुई में वही धागा प्रवेश करता है, जिसमे कोई गाठ नहीं हो.

 

सच्चे मन की व्याख्या उस धागा से कर सकते है, जिसमे कोई गाठ नहीं हो. बिलकुल सीधा साधा सरल सहज होने पर ही मन शांत और उत्साही होता है. जिसे किसी को भी एक नजर में अच्छा लगने लग जाता है. वो सबके दिलो पर राज करता है. सच्चा और सरल होना ये बहूत बड़ी बात है.

 

मन में ईस्वर का नाम और बगल में छुरी ऐसे भी व्याख्या है.

उन लोगो के लिए जो होते कुछ और है, पर दखते कुछ और ही. ऐसे लोग न जल्दी किसी के दिल में बसते है और नहीं समझ में आते है. ये कब क्या कर बैठेंगे. ऐसे लोगो के पास शक्ति अपार होती है. पर वो कभी भी सकारात्मक पहलू के लिए नहीं होते है. हमेशा कुछ न कुछ खुरापाती ही करते रहते है. ऐसे लोगो से बच कर रहे तो उतना ही अच्छा है.

 

मन के हारे हार और मन के जीते जित.

जिनको किसी से कुछ मिले नहीं तो भी खुश और कुछ मिले जाये तो भी खुश. संतुलित व्यक्ति सरल और सहज होते है. वो कुछ भी करते है भले उसमे कोई फायदा हो या न हो पर मन में आ गया तो वो कर गुजरते है. इससे मन को शांति और उत्साह महशुस होता है. अच्छा करने वाला अच्छाई के लिए ही जीते है. कुछ भी करते है. वो अच्छाई के लिए ही होता है. इसलिए ऐसे सरल व्यक्ति किसी के दिल में एक वर में बैठ जाते है. जिनका प्रसंसा और जिक्र हमेशा होता रहता है.

जो रिश्ते को महत्त्व देते है उनके बिच भी नाराजगी होती है रिस्तो की नाराजगी ज्यादा दिन तक नहीं चलता है उनमे सुलह हो कर फिर एक जैसे हो जाते है.

रिश्ते का महत्त्व

 

दोस्तों किसी से ज्यादा देर तक नाराज नहीं रहना चाहिए.

इससे स्वयं खुद का भी मन व्यथित रहता है. भले लोग अपने हो या पराये ये मायने नहीं रखता है. किसी को जानते या पहचानते है तो कही न कही आत्मीयता से जरूर जुड़े हुए है. तभी कभी कवल उनका याद भी आता रहता है. जब किसी अपने या पराये से नाराज हो जाते है तो वो सदा याद रहते है. ऐसे लोगो का याद हरदम मन में रहता है जिनसे नाराज होते है. नाराजगी एक नकारात्मक गुण है जो सकारात्मक गुण से ज्यादा सक्रीय होता है. भले उनसे आप नाराज रहे पर उनकी याद सदा आपके मन में रहेगा ही. इसलिए नाराजगी ठीक है पर उतना ही की वो नाराजगी अपने मन में न बैठ जाये. इससे खुद का भी दिमाग ग्रसित होने लग जाता है. इसलिए सभी के साथ नाराजगी छोडिये और मिलजुल कर रहिये.

 

ताली दोनों हाथ से बजता है. रिस्तो में इस बात का भी ध्यान रखिये.

एक तरफ़ा सम्बन्ध कभी मत रखिये. आप चाहे तो मदद कर सकते है, पर उतना ही जो उचित हो और किसी प्रकार का अपना नुकसान नहीं होता हो. यहाँ तक ठीक है. जब सामने वाला अपको कोई महत्त्व नहीं दे रहा है. तो उससे मतलब रखना बिलकुल ठीक नहीं है. ऐसे व्यक्ति को दिल से निकल देना चाहिए. ये नुकसान दायक होता है. आप मदद करते जा रहे है. वो किसी भी प्रकार से आपके लायक ही नहीं है तो वो मदद किस काम का. जबरदस्ती रिश्ता कभी ठीक नहीं होता है. भले अपने से हो या पराये से रिश्ता दोनों तरफ सामान और आदर्श होना चाहिए, तभी वो रिश्ता महत्त्व रखता है.

 

जो रिश्ते को महत्त्व देते है उनके बिच भी नाराजगी होती है.

रिस्तो की नाराजगी ज्यादा दिन तक नहीं चलता है. उनमे सुलह हो कर फिर एक जैसे हो जाते है. ये बात उतना ही सही है, जैसे जहा कई बर्तन हो तो आपस में टकराते भी है. वैसे ही रिश्ता भी होता है. कभी ख़ुशी तो कभी नाराजगी पर वो नाराजगी नहीं समझ का फेर होता है और कुछ नहीं होता है.

Tuesday, January 4, 2022

असमय आ रहे गुस्सा को नियंत्रित किया जा सके समय समय पर व्यायाम अवस्य करे इससे भी मन शांत रहता है

गुस्सा क्यों आता है?


सहनशीलता की कमी ही गुस्सा का मुख्या कारण है. 

विषय को न समझना भी गुस्सा का कारण हो सकता है. समझ की कमी भी गुस्सा का कारण होता है. विषय वस्तु को पूरी तरह से नहीं समझ आने पर भी गुस्सा आता है. कोई कार्य अपने समय पर पूरा नहीं हुआ तो भी गुस्सा आता है. किसी कार्य में व्यवधान आने पर भी गुस्सा आता है. किसी कार्य में मन का ठीक से नहीं लगने पर भी गुस्सा आता है. मन के अनुसार कोई कार्य नहीं हुआ तो भी गुस्सा आता है.

 

गुस्सा मन का एक नकारात्मक भाव है जिसे बुद्धि विवेक से कार्य लेने पर और सहज बोध अपनाने पर गुस्सा कम होने लग जाता है.

किसी कार्य में मन का लगाना बहूत जरूरी है मन को समझे और बुद्धि विवेक से कार्य करे तो गुस्सा कम होने लग जाता है. मन जिद्दी होता है. इसलिए मन में थोडा उदार भाव लाये इससे मन का दायरा बढेगा. इसका मतलब ये नहीं की जिस बात से गुस्सा आ रहा है उसके बारे में सोचे, कुछ ऐसा भी सोचे जिससे मन को अच्छा और प्रसन्नता महशुस हो तो गुस्सा कम होने लग जाता है.  

 

हर्बल और ऑर्गेनिक तेल सिर पर लगाने से दिमाग ठंडा रहता है.

खासकर जो तेल ठंडा महशुश कराये ऐसे तेल सिर में जरूर लगाना चाहिए. जिससे असमय आ रहे गुस्सा को नियंत्रित किया जा सके समय समय पर व्यायाम अवस्य करे इससे भी मन शांत रहता है. मन के शांति के लिए मैडिटेशन सबसे अच्छा जरिया है, रोज करने से मन शांति से रहने देता है.

ज्ञान में सुधार के लिए उज्ज्वल विचार. ज्ञान का समझ हरेक इन्सान के लिए अलग अलग होता है. होना तो चाहिए की कोई कुछ बात या विचार बता रहा है

ज्ञान का महत्त्व क्या है? ज्ञान अंतहीन है. 


ज्ञान मे जितना डूबा जाये उतना ही कम है. 

ज्ञान कोई मायने नहीं रखता है की किसी के पास कम ज्ञान और किसी के पास ज्यादा ज्ञान है. ज्ञान के मायने कम नहीं है. ज्ञान ही है की हम बोलते है, सुनते है, समझते है, स्वाद लेते है, देखते है, महशुस करते है. ये सभी शारीरिक ज्ञान है. मानसिक ज्ञान भाव, मोह, आकर्षण, प्रत्याकर्सन, सुख, दुःख ये भी ज्ञान ही है. इससे बढ़कर जीवन के विकाश में प्राप्त करने वाले जानकारी ज्ञान ही है. सोचना समझना, कल्पना करना, प्रेरित होना, ज्ञान के ही रूप है.  

 

अतिरिक्त ज्ञान क्या कहलाता है?

ज्ञान किसी भी प्रकार के जानकारी को ही कहते है. कम जानकरी वाले इन्सान अपने जीवन को संतुलत कर के जिता है. अपने जीवन में वही विषय वस्तु को महत्व देता है जो जीवन के निर्वाह के लिए जरूरी है. इससे बढ़कर जिनमे अच्छी जानकारी और विशेषता होता है वो अपने जीवन को खुल कर जीते है. हर प्रकार के पावंदी और रुकावट को उनमे दूर करने की खासियत होता है. जिससे वे बहुआयामी होते है. जिनसे लोग अपने उलझे सवाल या मुसीबत में विचार विमर्स करते है. ऐसे लोग विचारक भी होते है. अपने काम और व्यवस्था में ज्ञान के अच्छे जानकारी के वजह से बहूत सफल भी होते है. समय और विशेषता के अनुसार वे अपने काम का नेतृत्व करते है और लोगो को उनके काम से और ज्ञान से मदद मिलता  है. इसे ही अतिरिक्त ज्ञान भी कहा जाता है.

 

ज्ञान की प्रकृति का कोई अंत नहीं है. 

ज्ञान की प्रकृति ज्ञान ही है जो विशेषग्य भी बनता है. किसी वस्तु के निर्माण में गुणवत्ता कायम करना बहूत बड़ी बात है. ये सभी उच्च ज्ञान के कारण ही होता है. वे विशेष और महत्वपूर्ण जानकारी वाले होते है. वे आविष्कारक भी होते है. 

 

ज्ञान के एकीकरण से संबंधित समस्याएं क्या हैं?

ज्ञान भले सकारात्मक हो या नकारात्मक पर वो ज्ञान ही है. इसमे समझ का अंतर होता है. संसार में बहुआयामी भाव वाले मनुष्य भी होते है. जब किसी ज्ञान का प्रसारण किसी अच्छे विद्वान के द्वारा किया जाता है तो लोगो के विचार जरूरी नहीं की समान हो. इसके पीछे कारण है लोगो का अपना अपना समझ. इस कारन से ज्ञान के एकीकरण में समस्याए उत्पन्न होते है.

ज्ञान में समय और हालात के अनुसार समय समय पर जानकार और ज्ञानी परिवर्तन चाहते है. 

ज्ञान उत्पन्न समस्या को कम करने के लिए नए विकल्प लोगो को देते है. जिससे सबका जीवन सुलभ होता है. पर होता क्या है? हरेक मनुष्य का समझ एक जैसा नहीं होता है. ये मन की प्रकृति है. जिसके कारण लोग अपने अपने अनुसर उस विचार पर क्रिया या प्रतिक्रिया करते है. कुछ लोगो को अच्छा तो कुछ लोगो की अच्छा नहीं लगता है. यही सभी समस्याए ज्ञान के एकीकरण में उत्पन्न होते है.

 

ज्ञान में सुधार के लिए उज्ज्वल विचार.

ज्ञान का समझ हरेक इन्सान के लिए अलग अलग होता है. होना तो चाहिए की कोई कुछ बात या विचार बता रहा है तो उसको समझे बगैर प्रतिक्रिया नहीं दे. यदि नहीं मानते है तो कोई बात नहीं पर दूसरो को नहीं मानने के लिए प्रेरित नहीं करे. ज्ञान का आयाम असीमित है. लोग के समझ पर आधारित है की उसको लोग कैसे समझते है. इस बहुआयामी दुनिया में लोगो के मन के भाव भी अलग अलग है. यदि कोई विद्वान, विचारक या ज्ञानी कोई विचार प्रस्तुत करता है तो पहले समझे. उस समझ से अपने समझ को परिस्कृत करे. मानना या नहीं मानना लोगो का अपना मत है. सुझाये बात विचार को नहीं मानने के लिए दूसरो को प्रेरित कभी नहीं करे. यदि बात सही तो समझने वाले को प्रेरणा अपने आप मिल जाता है.

प्रभावी खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए विचार नेतृत्व संगोष्ठी.

बुद्धि और बुद्धिमान

मनुष्य को बुद्धिमान होना ही चाहिए.

जीवन निर्माण में मनुष्य के जन्म के साथ दिमाग भी मिला हुआ है, जिसकी देन बुद्धि है. सकारात्मक मन के भाव में अच्छा और तीक्ष्ण बुद्धि होता है. मन में किसी भी प्रकार के कुंथित्पना बुद्धि में विकार ला सकता है जिससे मस्तिष्क ठीक से काम नहीं करता है, जिसकी उपज विक्क्षिप्त बुद्धि होता है. जिससे कोई भी कार्य सफल नहीं होता है. किसी भी कार्य को सफल होने के लिए बुद्धि सकारात्मक होना चाहिए.

 

हिंदी में प्रभावी खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए विचार नेतृत्व संगोष्ठी.

किसी एक विषय पर काम करने के लिए यदि पेचीदा विषय है तो बहूत सोच समझकर काम करना होता है. जहा विषय एक है और उसे पूरा करने के लिए कई लोगो की जरूरत है तो वहा किसी न किसी ऐसे जानकार का नेतृत्व जरूरी हो जाता है. साथ में जानकर होने के साथ विशेषग्य भी हो तो उनका नेतृत्व बहूत जरूरी होता है. जरूरी खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए कार्य से सभी व्यक्ति विश्वासपात्र होना चाहिए. तीक्ष्ण बुद्धि वाला होना चाहिए. सभी हाजिर जवाब व्यक्ति होना चाहिए. कार्य बिलकुल संतुलित और बताये हुए मार्गदर्शन से ही करना चाहिए. कार्य के लिए मनोनीत सभी व्यक्ति के अन्दर समन्वय सामान होना चाहिए. इसमे बेहद जरूरी है की कोई भी व्यक्ति किसी को छोटा या बड़ा नहीं समझे. अपने मार्गदर्शक के हरेक बात का अनुशरण करना चाहिए. एक दुसरे के संपर्क में हमेशा रहना चाहिए. स्वयं पर पूर्ण विस्वास होना चाहिए.       

 

प्रथम बुद्धि परीक्षण के विकासकर्ता के रूप में किसे श्रेय दिया गया है?

1916 में अमेरिका के मनोवैज्ञानिक टर्मेन ने बिने के बुद्धि परीक्षण को अपने देश की परिस्थितियों के अनुकूल बनाकर इसका उचित प्रकाशन किया. यह परीक्षण स्टेनफोर्ड बिने परीक्षण कहलाता है. जिस परीक्षण का संशोधन स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टर्मेन ने किया था. इस आधार पर इस परीक्षण को स्टेनफोर्ड बिने परीक्षण कहा गया है. प्रथम बुद्धि परीक्षण के विकाशकर्ता के रूप में अमेरिका के प्रोफेसर टर्मेन को श्रेय दिया गया है.

 

शिक्षा में बुद्धि परीक्षण के लाभ

शिक्षा मन से कापी और किताब से पढने और लिखने से होता है. जब तक पढाई के समय समय पर परीक्षा नहीं होगा, तब तक न बच्चे में जिम्मेवारी आएगी और न उनका बुद्धि बढेगा. निम्न कक्षा से उच्च कक्षा में पदोन्नति परीक्षा माध्यम होता है. परीक्षा में प्राप्त अंक सामान्य अंक से कम होने पर पदोन्नति नहीं होता है. और एक साल फिर उसी कक्षा में बैठना पड़ता है. परीक्षा बच्चे का बुद्धि विवेक का एक परिक्षण है. जिसके प्रभाव से बच्चे में बुद्धि विवेक और जिम्मेवारी बढ़ता है. परीक्षा न केवल बुद्धि का विकाश करता है बल्कि बच्चे को स्वयं पर नियंत्रण करने का तरीका और ज्ञान भी सिखाता है.

कौशल जहां जानना और सोचना समझना सफल प्रदर्शन के मुख्य निर्धारक हैं

कौशल ज्ञान सीखना दो प्रकार से प्रचलित है.

एक पुस्तक पढ़कर, लिखकर और विद्वान ब्यक्ति के ज्ञान से भरी बाते को सुनकर अपने ज्ञान को बढाया जाता है. जिसे शिक्षा कहते है. दूसरा होता है अध्ययन जिसमे लिखने पढने के साथ प्रयोग और कुछ करने की भूमिका हो ज्ञान सीखना कहते है. वास्तविक ज्ञान में मानव जीवन में जब तक कुछ करने की क्षमता नहीं होगा, तब तक वो एक सफल इन्सान नहीं बनेगा. प्रयोग और वस्तु निर्माण ही उसे उपार्जन का माध्यम दे सकता है. सेवा और वस्तु के निर्माण में जब योग्यता बढ़ता है तो उसे कौशल कहते है. कौशल एक पूर्ण ज्ञान हो सकता है, वही तक जहा तक वो वस्तु सफल तरीके से निर्मित हो. बारिकियत और गुणवत्ता का कोई अंत नहीं होता है. ऐसे कौशल वाले महान पुरुस होते है. कौशल हर क्षेत्र में होता है. विशेषता और गुणवत्ता बढ़ने से उसका स्तर उचा होता है. यही कौशल है.

 

कौशल जहां जानना और सोचना समझना सफल प्रदर्शन के मुख्य निर्धारक हैं.

ज्ञान अनंत है. सोचने और समझने से ज्ञान बढ़ता है. इससे कुछ निर्माण करते है तो वो उसके कौशल का पहचान बनता है. किसी विषय वस्तु के अच्छी पहचान और हरेक पहलू को दर्शाना जिससे देखने वाले को उसके बारिकियत का अंदाजा लगा सके तो उसे विशिस्थ कौशल कहते है. जिसके लिए परिश्रमी व्यक्ति दिन-रात मेहनत कर के कुछ सीखते है और अपने कार्य में पारंगत होते है. तभी गुणवत्तापूर्ण कौशल जीवन में स्थापित होता है. इसके लिए मन की एकाग्रता है के साथ जानने, सोचने, समझने का अच्छा ज्ञान होना अतिआवश्यक है. तभी अपने कौशल के प्रदर्शन को लोगो के बिच प्रदर्शित कर सकते है. यही कौशल का ज्ञान है.  

 

सह छात्रों की सोच कौशल

विद्याथी एक समूह में तभी होते है जब सबके विचार और सोच एक जैसे होते है. जब एक साथ कई विद्याथी ज्ञान और शिक्षा के बारे में विचार विमर्स करते है, तो सभी के बात विचार में जो सहमति बनता है वो उत्क्रिस्थ होता है. जो सभी के लिए गुणकारक भी होता है. इससे भी कौशल का निर्माण होता है. सोच भी एक ज्ञान है. जब कई लोग के विचार से एक मजबूत बिंदु मिलता है वही सटीक निश्कर्ष निकालता है. इसलिए सह छात्रों की सोच कौशल का काम करता है.

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